इन दिनों कुछ अहम् मुद्दों पर न्याय से सम्बंधित विभिन्न पहलू देखने को मिले। सबसे पहले तो मैं पूरे भारतवर्ष को मुबारकबाद देना चाहूंगी की संजय दत्त को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं मिली। ज़रा सोचिये, वह व्यक्ति जिस पर १९९३ के जघन्य काण्ड को अंजाम देने वाले गुंडों से बातचीत व हथियारों की खरीद फरोख्त का आरोप हो, उसकी हिम्मत भी कैसे हुई की वह स्वयं को निर्दोष साबित होने से पहले ही चल पडा उसी देश का प्रतिनिधि बनने! क्या हमारे देश की राजनीति इतनी गिर गई है की एक फ़िल्म में गांधीगिरी का अभिनय करने मात्र से आप चुनाव में स्वयं को गांधीजी का चेला बता दे, क्या जनता को अभिनय व वास्तविकता में फर्क नज़र नहीं आता?
दूसरी तरफ़ वरुण गाँधी यह भूल जाते हैं की भारतवर्ष का धर्म भारतीयता है व धर्मग्रन्थ संविधान है, जिसमें हर उस व्यक्ति के लिए जगह है जो स्वयं को पहले भारतीय व बाद में किसी धर्म का अनुयायी मानता हो। ऐसे धर्म व ऐसे धर्मग्रन्थ की अवहेलना करने की उन्हें उचित सज़ा मिल रही है।
एक अन्य बात देखने को मिली की अजमल कसब को वकील दिलवाने में कई लोगों को आपत्ति हो रही थी। अभी जो उसकी वकालत करेंगी उनकी सुरक्षा भी बढ़ा दी गई है। समझ में नही आता की जनता को क़ानून हाथ में लेने का इतना भी क्या शौक है। जब हर चीज के लिए हमारे संविधान में एक तरीका बताया गया है तो उसका पालन करने का विरोध क्यों? किस बात का डर है हमें, की अजमल बच जायेगा? कैसे बच सकता है वह जिसके अपराध की गवाही देने पूरा मुंबई उमड़ सकता है। फ़िर इतना अधीर क्यों बनें, क्यों न पड़ोसी देश को कुछ अच्छी बातें सिखाएं, न की उनके जंगलराज का अनुसरण करें। हमें अपने संविधान पर गर्व होना चाहिए जो धर्म व समुदाय से सर्वोपरि है व अनेकता में एकता का सूत्रधार है। यदि हम उदाहरण पेश न करेंगे तो लोग सीखेंगे कैसे?
दूसरी तरफ़ वरुण गाँधी यह भूल जाते हैं की भारतवर्ष का धर्म भारतीयता है व धर्मग्रन्थ संविधान है, जिसमें हर उस व्यक्ति के लिए जगह है जो स्वयं को पहले भारतीय व बाद में किसी धर्म का अनुयायी मानता हो। ऐसे धर्म व ऐसे धर्मग्रन्थ की अवहेलना करने की उन्हें उचित सज़ा मिल रही है।
एक अन्य बात देखने को मिली की अजमल कसब को वकील दिलवाने में कई लोगों को आपत्ति हो रही थी। अभी जो उसकी वकालत करेंगी उनकी सुरक्षा भी बढ़ा दी गई है। समझ में नही आता की जनता को क़ानून हाथ में लेने का इतना भी क्या शौक है। जब हर चीज के लिए हमारे संविधान में एक तरीका बताया गया है तो उसका पालन करने का विरोध क्यों? किस बात का डर है हमें, की अजमल बच जायेगा? कैसे बच सकता है वह जिसके अपराध की गवाही देने पूरा मुंबई उमड़ सकता है। फ़िर इतना अधीर क्यों बनें, क्यों न पड़ोसी देश को कुछ अच्छी बातें सिखाएं, न की उनके जंगलराज का अनुसरण करें। हमें अपने संविधान पर गर्व होना चाहिए जो धर्म व समुदाय से सर्वोपरि है व अनेकता में एकता का सूत्रधार है। यदि हम उदाहरण पेश न करेंगे तो लोग सीखेंगे कैसे?
बहुत खूब लिखा है!
जवाब देंहटाएंतर्क अच्छे हैं । कश्मीर की पीड़ा पर भी कुछ लिखिए
जवाब देंहटाएंजहाँ तक संजय दत्त और वरुण गाँधी की बात है...मैँ आपकी बात से पूर्णरुपेण सहमत हूँ लेकिन कसाब के मामले में मेरा विचार आपसे भिन्न...कुछ जुदा है।मुझे लगता है कि दूसरे देशों की नज़र में खुद को अच्छा साबित करने के लिए कुछ ज़्यादा ही लचीलेपन को अपनाया जा रहा है।मीडिया के कैमरों के सामने साफ दिखाई दे रहा है कि कसाब का क्या मकसद था?...वो किसी प्रकार का भजन-पूजन या कीर्तन करने नहीं बल्कि हम लोगों को मारने आया था और ऐसा उसने किया भी।
जवाब देंहटाएंमेरे ख्याल से ऐसे आदमी का अभी तक जीवित रहना ही हम सब के लिए शर्मनाक है।देश और इनसानियत के ऐसे दुश्मनों को सरे आम गोलियों से भून डालना जाना चाहिए और उसका लाईव टैलीकास्ट पूरे विश्व के तमाम टैलीविज़नों पर किया जाना चाहिए।आखिर ऐसे दरिंदों पर कैसा रहम?
ये कोई पहला मौका नहीं है जब हमारे यहाँ ऐसा हुआ हो।यहाँ जब श्रीमति इंदिरा गाँधी की हत्या करने वाले भी अपने जुर्म के बाद कई बरस ज़िन्दा रह सकते हैँ तो इसमें भी कोई आश्चर्य नहीं कि कसाब अपनी ज़िन्दगी के कई और बसंत महफूज़ हो के जिए।
क्या करें?...हमारे देश का कानून ही इतना लचर है
यहाँ जब संसद पर हमला करवाले वाले मास्टर माईंड की जान बक्शने के लिए एक राज्य का मुख्यमंत्री और देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी बेशर्मी से उसकी पैरवी करती है तो देश के हर जिम्मेवार नागरिक को अफसोस होगा कि उसने ऐसे कायर देश में जन्म ही क्यों लिया?
जय हिन्द