गांधी जी के स्मृति चिन्ह आखिरकार भारत वापस आये ......माल्या ने मारी बाजी

न्यूयॉर्क में बापू के स्मृति चिन्हों की विवादास्पद नीलामी में भारतीय उद्योगपति विजय माल्या ने 18 लाख डॉलर की बोली लगा कर बाज़ी मार ली। यह लगभग भारतीय रूपये साढ़े नौ करोड़ के बराबर है । हमारे लिए यह खुशी की बात है कि एक भारतीय ने इन स्मृति चिन्हों को खरीदने में रूचि दिखायी । जबकि भारत सरकार ने इस नीलामी को रोकने का प्रयास किया था जिसके जवाब में जेम्स ओटिस सरकार के सामने गरीबों के लिए कार्य करने की शर्त रखी थी । जिसे सरकार ने नहीं माना ।

जेम्स ओटिस ने कहा कि मैं यह नीलामी पैसे के लिए नहीं बल्कि गांधी जी के विचारों को आगे बढ़ाया जा सके और इसका प्रसार-प्रचार हो । नीलामी की बोली २० से ३० हजार डालर से शुरू हुई । और अन्तिम बोली विजय माल्या की रही ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. गांधी जी का मोबाइल

    ले आए होंगे वो अब

    है किसके पास
    ?
    हिंसा में रखा जाता

    है सदा ही साथ।

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  2. आप विजय माल्या के प्रति कृतज्ञ हो सकते हैं ,कम से कम मैं तो नहीं हो सकती । जिस गाँधी के दर्शनऔर आदर्श को देश सम्हाल नहीं सका हो,जिस "बापू के सपनों का भारत" यानी किसान और गाँव धीरे - धीरे दम तोड़ रहे हों । वहाँ चार चीज़ें आ भी जाएँगी ,तो क्या बनने बिगड़ने वाला है । दर असल हम सब बेहद स्वार्थी और दिखावा पसंद लोग हैं । हम भगवान और महापुरुषों की मूर्तियाँ लगाकर मान लेते हैं कि यही सच्चा स्मरण है । हम ढोंग- पाखंड को ही सच मानने के आदी हैं । इसी लिए माल्या की जय गाने के सच्चे अधिकारी हैं । शराब के घोर विरोधी की धरोहर शराब से कमाये धन से ही वापस आ रही हैं । क्या कहना है ,इस बारे में ? जिसे जश्न मनाना है वो मनायें ,मेरी नज़र में तो ये हम सब के लिए शर्मनाक है । करारी शिकस्त है - गाँधीवाद की । सच कहें तो लगता है देश में गाँधीवाद को धकियाकर गाँधीगीरी ने कब्ज़ा जमा लिया है ।

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  3. शराब ही काम आयी आखिर शराब विरोधी गाँधी बाबा के!!

    क्य विडम्बना है!!

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  4. गांधीवाद को तो हम वापिस ला नहीं सकते
    इसलिए गांधीगीरी ही सही
    यही तसल्‍ली कर लेंगे कि इसमें गांधी तो जुड़ा है
    खुश होने के लिए यही काफी है

    हम भी तो रिश्‍वत को गांधी ही कह सुन रहे हैं
    गांधीवाद न सही गांधीगीरी ही सही
    बतौर रिश्‍वत एक गांधी दो गांधी और गांधी पैकेट
    खूब लोकप्रिय हो रहे हैं।

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  5. किसी के प्रति सच्‍ची श्रद्धांजलि उनके विचारों और भावनाओं का कद्र करने से होती हैं ... बापू की इन वस्‍तुओं का वापस लाया जाना तब अच्‍छा माना जा सकता था ... जब उन्‍होने अपने जीवन में इन सब वस्‍तुओं को महत्‍व दिया होता ... उन्‍होने तो खुद कई अपनी वस्‍तुओं को बेचकर उन पैसों से जनता के लिए कल्‍याणकारी कार्य किए थे ।

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