मेट्रो पर भी ब्लूलाईन का रंग चढ़ रहा है
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मेट्रो पर भी ब्लूलाईन का रंग चढ़ रहा है : व्यंग्य प्रवक्ता में
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आप व्यंग्य सटीक लिखते हैं। यह भी उम्दा है।
जवाब देंहटाएंमेट्रो में यह सुविधा एक ख़ास बात को ध्यान में रखते हुए दी गई है. असल में उसके दरवाजों पर एक सेंसर लगाया गया है. जैसे ही लोग उस पर अपना पैर रखते हैं, वह सूंघ लेता है कि कहीं यह ब्लू लाइन का भूतपूर्व यात्री तो नहीं है. अगर वह भूतपूर्व ब्लू लाइनर निकला तो वह उसके साथ वैसा ही बर्ताव करता है, जैसे कि ब्लू लाइन में होता है या होता रहा है. उन्हें पता है कि इन्हें दूसरा बर्ताव पसन्द नहीं आएगा. ख़ास तौर से कवियों और व्यंग्यकारों को. आखिर उन्हें रचनात्मक प्रेरणा कहाँ से मिलेगी और मेट्रो जैसी ज़िम्मेदार यातायात सेवा दिल्ली की रचनाधर्मिता मारने के लिए कभी भी ज़िम्मेदार नहीं होना चाहेगी.
जवाब देंहटाएंise padne k baad to sirf yahi shabd nikalte he.......
जवाब देंहटाएंwwwwwwwaaaaaahhhhhh.........
अब इसमें कौन सी बड़ी बात है?....बड़े बुज़ुर्ग पहले से ही तो कह गए हैँ कि "दुर्घटना से देर भली"
जवाब देंहटाएंअब ब्लू लाईन वालों ने इसका उल्टा याने के "देरी से दुर्घटना भली" समझ लिया तो इसमें उनका क्या कसूर है?..
अब कईयों के लिए "आठ दूनी सोलह" होता है तो कुछ के लिए "सोलह दूनी आठ" भी तो होता ही है ना?
रही बात मैट्रो की...तो थोड़ी-बहुत कमी-बेसी तो हर जगह चलती ही रहती है लेकिन एक बात तो माननी पड़ेगी उस्ताद जी कि मैट्रो से नुकसान के मुकाबले फायदे ज़्यादा हैँ।
aap ki rachnaaye prasansniya hai.
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