नवम्बर के अंतिम सप्ताह के लिए मुझे अभी तक तीन निमंत्रण पत्र प्राप्त हो चुके हैं ,तीनों ही बहुत निकट के मित्र या संबंधी हैं। 28 को मेरे चाचाजी के लडके की बोकारो में , 29 को मामाजी की बिटिया की लखनउ में और 30 को मेरे पतिदेव के मित्र की बिटिया की दरभंगा में शादी हो रही है। अभी काफी दिन और बचे हैं , क्या पता कुछ और मिल जाएं , वैसे बहुत नजदीक के किसी के यहां की कोई संभावना नहीं है , दूर दराज के निकल जाएं , तो इतनी व्यस्तता में शुभकामना संदेश भेजने से भी काम चल जाएगा। मेरे अपने परिवार में चार लोग हैं। हमने आसानी से इन विवाहों में सम्मिलित होने का कार्यक्रम बना लिया। हमारा बडा बेटा दिल्ली में ही है , वह लखनउ के कार्यक्रम में सम्मिलित होगा , छोटा बोकारो के और हम दोनो पति पत्नी अपने मित्र के यहां चले जाएंगे।
पर मेरी छोटी बहन को कार्यक्रम बनाने में बहुत परेशानी आ गयी है। दो ही निमंत्रण पत्र पहुंचे हैं उसके पास , पर वह खुद दोनों में शामिल नहीं हो सकती , बच्चे छोटे छोटे हैं , उन्हें भी अकेले छोडा नहीं जा सकता। एकमात्र बोकारो की शादी में ही वह सम्मिलित हो सकती है। मेरी बहन के पति अपने माता पिता के एकलौते पुत्र हैं , कुछ दिनों पहले ही माताजी का देहांत भी हो गया है। पिताजी साथ ही रहते हैं , सिर्फ साथ ही नहीं रहते , बडी उम्र के बावजूद अपने व्यवसाय को संभालते हैं और हर प्रकार से स्वस्थ हैं।विवाह कार्यक्रम के दौरान ही उनका अपनी पुत्री के यहां इलाहाबाद का कार्यक्रम भी है , वहां से लखनउ काफी नजदीक है , पर वे विवाह में सम्मिलित होना नहीं चाहते , क्योंकि मेरी बहन को मामाजी ने जो निमंत्रण पत्र भेजा है , उसमें पिताजी का नाम न होकर उसके पति का नाम है और इस बात को वे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना चुके हैं। ऐसी स्थिति में मेरी बहन के समक्ष सिर्फ शुभकामना संदेश भेजने के अलावा और कोई चारा नहीं रह गया है।
भारत में शादी विवाह विदेशों की तरह मात्र एक लडके का एक लडकी के साथ जुडना नहीं है। यहां लडके लडकी के साथ पूरा परिवार, समाज, परंपरा और रीति रिवाजों का भी मिलन होता है। यदि यह नहीं होता तो विवाह के नाम पर इतने रस्मों का आखिर क्या महत्व है ? ये रस्म दोनो पक्ष के लोगों को एक करने के लिए ही तो बनाए गए हैं। इसलिए बहू और दामाद के परिवारों को भी अपना समझें। अगली बार निमंत्रण पत्र भेजने से पहले इस बात का ख्याल अवश्य रखें कि उस परिवार के वरिष्ठ सदस्य को ही निमंत्रण मिल पाए।
aapse sahmat hu
जवाब देंहटाएंregards
बहुत बढ़िया जानकारी!
जवाब देंहटाएंbilkul theek likha hai, jo aisa nahi karte, unhen dhyan rakhna chahiye
जवाब देंहटाएंबात तो सही लिखी है आपने ..पर कई बार लोग इस पर अधिक ध्यान नही देते अब ..
जवाब देंहटाएंवाकई उम्र के साथ जिस अहम का विगलन होना चाहिए, दुर्भाग्य से हमारे समाज में वह अहम उम्र के साथ साथ और बलीकृत होता है। वरना पिता को ऐसे कार्यक्रम में शामिल होने में हेठी न समझनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंजिसमें उनके पुत्र के नाम से निमंत्रण हो।
" good artical to read"
जवाब देंहटाएंRegards
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने, संगीता जी। भारतीय परंपरा का ऐसे ही निर्वाह होता है। वरिष्ठ जन को निमंत्रण देने से जहाँ एक ओर बड़ों का मान रह जाता है, वही उसे ‘एटेन्ड’ करने में भी सुविधा होती है। बहुमूल्य सूझाव के लिये आपको धन्यवाद।सादर। -सुशील कुमार।
जवाब देंहटाएंBouth Aacha Work Kiya Ji
जवाब देंहटाएंvisit my site
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baat bilkul sahi hai. ab bhale hi aisa n hota ho pahle aisa hi hota tha.or yahi tarika sabhay v hai.
जवाब देंहटाएंसही सुझाव है।
जवाब देंहटाएंकमाल है संगीता जी इस विषय पर ऐसा रोचक आलेख लिखा जा सकता है मुझे यक़ीन नहीं हो रहा
जवाब देंहटाएंआपको बधाई...
भारत में शादी विवाह विदेशों की तरह मात्र एक लडके का एक लडकी के साथ जुडना नहीं है। यहां लडके लडकी के साथ पूरा परिवार, समाज, परंपरा और रीति रिवाजों का भी मिलन होता है।
जवाब देंहटाएंअगली बार निमंत्रण पत्र भेजने से पहले इस बात का ख्याल अवश्य रखें कि उस परिवार के वरिष्ठ सदस्य को ही निमंत्रण मिल पाए।
मैंने आप की पोस्ट आज ही और अभी देखी .आपके लिखे शब्दों को मै फिर लिख रहा हूँ .इसमे मै सहमति और असहमति दोनों बिन्दुओं को रेखांकित कर रहा हूँ .सहमति वाले शब्द तो आप के ही हैं परन्तु मेरा मानना है की आज की तेज रफ्तार वाली जिंदगी में सब चल रहा है .यदि लोग नही समझते तब भी उनका स्वागत होना चाहिए और जान- बूझ कर यदि कोई ऐसा करता है तो उसे प्यार से नजरंदाज कर देना चाहिए .ऐसी बातों को मुद्दा बनाने से क्या फायदा .और भी गम हैं जमाने में .....