महुआ के फूलने के मौसम में (सुशील कुमार की कविता)
यह पेड़ों के नंगेपन की ओर
लौटने का मौसम है
अपने पत्ते गिराकर
पेड़ कंकाल- से खड़े हैं पहाड़ पर
पूरी आत्मीयता से
अपने सीने में
जंगल वासियों के पिछले मौसम की
दुस्सह यादें लिये
जंगलात बस्तियों तक पहुँचती
वक्र पगडंडियाँ
सूखे पत्तों और टहनियों से पूर गयी हैं
जिनमें सांझ से ही आग की लड़ियाँ
दौड़ रही हैं सर्पिल ।
दमक रही है पहाड़ की देह
रातभर आग की लपटों से ।
पहाड़ के लोगों ने जंगली रास्तों में
अगलगी की है
पहाड़ और जंगल फिर से
नये जीवन में लौट आने की प्रतीक्षा में है
पहाड़िया झाड़-झांखड़ भरे रास्ते
और जमीन साफ कर रहे हैं
पहाड़ी जंगलों में यह महुआ के फूलने का मौसम है
प्रवास से लौटी कोकिलें
बेतरह कूक रही हैं और
फागुन में ऊँघते जंगलों को जगा रही हैं
टपकेंगे फिर सफेद दूधिया
महुआ के फूल दिन - रात
पहाड़ी स्त्रियाँ, पहाड़ी बच्चे बीनते रहेंगे
पहाड़ के अंगूर
भरी साँझ तक टोकनी में
धूप में सूखता रहेगा महुआ दिनमान
किसमिस की तरह लाल होने तक ।
गमक महुआ की फैलती रहेगी
जंगल वासियों के तन-मन से
श्वाँस – प्रश्वाँस तक ,
जंगल से गाँव तक उठती पुरबाईयों के झोंकों में ।
गूजते रहेंगे महुआ के मादक गीत
बाँसुरी की लय मान्दर की थाप पर
घरों, टोलों, बहियारों में
वसंत के आखिरी तक यह होता रहेगा कि
नये पत्ते पहाड़ को फिर ढक लेंगे तेजी से ।
फल महुआ के कठुआने लगेंगे
जंगल के सौदागर मोल- भाव करने महुआ के
आ धमकेंगे बीहड़ बस्तियों तक
और औने - पौने दाम में पटाकर
भर -भर बोरियाँ महुआ बैलगाड़ियों - ट्रैक्टरों में लाद
कूच कर जायेंगे शहरों को
थोड़े बहुत महुआ जो बच पायेंगे
व्यापारियों की गिद्ध दृष्टि से
पहाड़िया के घरों में ,
ताड़ - खजूर के गुड़ में फेंटकर
भूखमरी में पहाड़न चुलायेंगी
हंडिया - दारू
और दिन -दुपहरी जेठ की धूप में
तसलाभर मद्द लिये भूखी -प्यासी
बैठी रहेगी हाट -बाट में
ग्राहकों की प्रतीक्षा में साँझ तक ।
नशे में ओघराया उसका मरद
पड़ा रहेगा जंगल में कहीं
अपने जानवरों की बगाली करता हुआ ।
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अच्छी पोस्ट ......याद दिला दी गांव में व्यतीत किए दिनों की।
जवाब देंहटाएंपहाड़ी जंगलों में यह महुआ के फूलने का मौसम है
जवाब देंहटाएंप्रवास से लौटी कोकिलें
बेतरह कूक रही हैं और
फागुन में ऊँघते जंगलों को जगा रही हैं
सुन्दर चित्र खेंचा हैं!
बहुत खूब। पढकर बहुत ही अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंथोड़े बहुत महुआ जो बच पायेंगे
व्यापारियों की गिद्ध दृष्टि से
पहाड़िया के घरों में ,
ताड़ - खजूर के गुड़ में फेंटकर
भूखमरी में पहाड़न चुलायेंगी
हंडिया - दारू
और दिन -दुपहरी जेठ की धूप में
तसलाभर मद्द लिये भूखी -प्यासी
बैठी रहेगी हाट -बाट में
ग्राहकों की प्रतीक्षा में साँझ तक ।
बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंप्रकृति के साथ श्रम-सौंदर्य का अद्भूत नमूना है यह जनजातीय पृष्ठभूमि पर लिखी कविता।..सुशील कुमार जी कोअन्यत्र भी पढती रही हूं।काफी उम्दा लिखते हैं।-अंशु भारती, झारखंड।
जवाब देंहटाएंmahua kab foolta hai?
जवाब देंहटाएंगांव का...गांव वालों का...
जवाब देंहटाएंमहुआ का....ताड़ी का सजीव चित्रण..
“महुआ के फूलने के मौसम में” सुशील कुमार की बहुत लोकप्रिय कविता है। इस कविता पर जयपुर की प्रतिष्ठित पत्रिका‘कृति ओर’संपादक-विजेन्द्र, के अंक -४७ में प्रखर जनवादी समालोचक डा. रमाकात शर्मा ने समीक्षा लिखी थी। अच्छी चर्चा हुई थी। आदिवासियों की समस्या गंभीरता यहां दर्शायी गयी है।बधाई ’नुक्कड़’ को-अशोक सिंह,दुमका से।
जवाब देंहटाएंसुन्दर, सजीव चित्रण
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता....प्रकृति के रंगों में पगी ऐसी कविता बहुत दिनों बाद पढ़ने को मिली। आभार...
जवाब देंहटाएंमालविका धर ने पूछा है- महुआ कब फूलता है?
जवाब देंहटाएंउत्तर- फरवरी से फूलना शुरु होता है और मई के मध्य तक कठुआने लगता है।-सुशील कुमार।
बहुत उम्दा!!
जवाब देंहटाएंhume bhi yehi yad tha ki march ke bad bagh me mahua ke fool tapakte aur safed se gulabi ho jate.madak khosbo faili rahati.per post dekhker laga shayad oct me to mahua nahi aagaya.
जवाब देंहटाएंbahut khuub..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता है। बधाई - नंद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता है। बधाई- राघव कुमार अनिल
जवाब देंहटाएंआपने तो घर की याद दिला दी. ये मौसम इतना सुहावना होता है कि पूछिये मत. इसी मौसम में जन्मदिन पड़ता है. इसलिए ये मौसम मुझे बहुत अच्छा लगता है.
जवाब देंहटाएंमहुआ कब महकता है
जवाब देंहटाएंकब बहकता है
कब बहकाता है
मौसम नहीं, कवि की कल्पना बताती है
जब पेट की भूख सताती है
तो बनती है और बिकती है दारू
इसके अलावा भी तो बहुत कुछ है दुनिया में
सच कहूं तो घर बैठे पहाड़ों के दर्शन करा दिये। बेहतरीन कविता है। बधाई
pardesh me rahne wale ko aapne ghar ki yaad dila di. achchhi baat hai
जवाब देंहटाएंआपकी कविता में जीवन और प्रक्रिति का स्प्स्ट अवलोकन होता है। बहुत सुंदर रचना है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआपकी कविता में जीवन और प्रक्रिति का स्प्स्ट अवलोकन होता है। बहुत सुंदर रचना है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंपाठकों ने मेरी इस कविता की सराहना की, इसके लिये उनका तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ।-सुशील कुमार।
जवाब देंहटाएंबहुत संभावनाशील रचनाकार हैं आप। अच्छा लिखते हैं। बधाई। रचना अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंआज ही आपकी
जवाब देंहटाएंइस कविता को पढा है
और बहुत अच्छी लगी
- लावण्या
हम इस कविता को आपके नाम से कही संग्रह में प्रकाशित करना चाहते है यदि आपकी स्वीकृति हो तो stswatitiwari@gmail.com अपनी अनुमति दीजिएगा प्लीज महुए पर एक पुस्तक लिखी जा रही है
जवाब देंहटाएंहम इस कविता को आपके नाम से कही संग्रह में प्रकाशित करना चाहते है यदि आपकी स्वीकृति हो तो stswatitiwari@gmail.com अपनी अनुमति दीजिएगा प्लीज महुए पर एक पुस्तक लिखी जा रही है
जवाब देंहटाएंहम इस कविता को आपके नाम से कही संग्रह में प्रकाशित करना चाहते है यदि आपकी स्वीकृति हो तो stswatitiwari@gmail.com अपनी अनुमति दीजिएगा प्लीज महुए पर एक पुस्तक लिखी जा रही है
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