यमराज : आ गया मुन्ना, स्वागत है।
मुन्नाभाई : आ गया तो ऐसे कह रहा है जैसे मैं अपनी इच्छा से आया हूं तेरे राजलोक में।
यमराज : मुझसे तू तड़ाक मुन्ना।
मुन्नाभाई : मारने से अधिक तू कुछ कर नहीं कर सकता इसलिए तेरे से किस बात का डर, डर से ही किसी का आदर किया जाता है या किया जाता है प्रेम में। तेरे से मैं ही क्या कोई भी प्रेम करने वाला नहीं है इसलिए मैं डरूं क्यों, मारने से अधिक तू कुछ कर ही नहीं सकता। और प्रेम करने के लिए धरती पर प्रेम जनमेजय जी मौजूद हैं, फिर तेरे से कोई क्यों प्रेम करने की सोचेगा भी।
यमराज : इच्छा या बेमर्जी सफर में नहीं चला करती। होता वही है जो नियति है।
मुन्नाभाई : नियति मतलब जान बूझकर रेल, बस के नीचे आ मर कर तेरे पास आ जाओ और अपनी लापरवाही को नियति का नाम दे दो, यह भी कोई बात हुई।
यमराज : क्रोधित मत हो मुन्ना। मेरे पास भी तुझे अपनी मर्जी का काम ही करना है।
मुन्नाभाई : मेरी मर्जी का मतलब यहां पर भी पेट के गुलाम होकर तेरे इशारों पर ही आइटम डांस करना होगा। जब ऐसा ही करना है तो यह तो विशुद्ध बाबूगिरी ही हुई जो मैं धरती पर सरकारी कार्यालय में कर रहा था और तू मुझे पांच बरस पहले उठा लाया है। कम से कम सांतवें वेतन आयोग का फायदा तो लेने देता।
यमराज : धन इतना फायदेमंद नहीं है जितनी खुशियां। यहां पर तू बिना किसी बीमारी के डर के कुछ भी खा सकता हे क्योंकि तू एक बार मर चुका है, अब बार-बार तो मरने से रहा।
मुन्नाभाई : यहां पर खाने के लिए मां के हाथ के बने स्वादिष्ट व्यंजन कहां मिलेंगे। पत्नी जो इतने प्यार से कड़वे करेले के रस का पान कराती थी, वह कहां मिलेगा। अन्य मित्र और परिवारीगण जो मुझे आदर देते थे, वह ढूंढने तू मुझे पृथ्वी पर जाने देगा।
यमराज : परिवारीगण तेरा नहीं, तेरे से कमाई मिलने के कारण तेरा सम्मान करते थे। मित्रगण तेरे जब तक ही थे जब तक तू उनकी तारीफ करता था, उन्हें तुझसे फायदा होता रहा। तेरी तानाशाही के विरुद्ध तेरे ही घर में सब तेरे खिलाफ थे। वह तो तू बीमार होते हुए भी उनके लिए कमाऊ था, इसलिए तुझे झेलने को मजबूर थे।
मुन्नाभाई : पर मेरी नवजात पहली पोती रितिषा के बारे में तो तू ऐसा नहीं कह सकता।
यमराज : पोती क्या किसी भी बच्चे के बारे में मैं ऐसा न कह सकता हूं और न कह रहा हूं क्योंकि बच्चे मन के सच्चे होते हैं। वे आंख के तारे होते हैं, मन के सितारे होते हैं।
मुन्नाभाई : पर मेरी कमी उसे सबसे अधिक खलेगी।
यमराज : गेहूं के साथ घुन भी पिसता है पर तुझे यहां पर बाबूगिरी नहीं करनी है। हिन्दी ब्लॉग और एग्रीगेटर बनाने हैं। सबके फेसबुक एकाउंट खुलवाने हैं। ट्विटर, पिन्टरेट सरीखे सोशल मीडिया मंचों पर हमारे कारिन्दो को इतनी जानकारी देनी है कि हम उन सभी मंचों पर उसका उचित उपयोग कर सकें।
मुन्नाभाई : ब्लॉग और अन्य सोशल माध्यमों का तू और तेरे साथी धरती की पब्लिक को मारने के सिवाय क्या उपयोग करेंगे ।
यमराज : तू सच समझ रहा है मुन्ना और तेरी इसी तुरत बुद्धि के हम कायल हैं और तुझे यहां पर लाया गया है।
मुन्नाभाई : लाया गया है या मेरा अपहरण करवाया है।
यमराज : हम भी क्या करते, हमारे विभाग पर भी उपर से प्रेशर पड़ रहा था कि ब्लॉग, फेसबुक सरीखे सोशल मीडिया पर मानव की गतिविधियों के अनुसार उन्हें यमलोक में बुलाया जाए। उनके जीवन के कर्मों और कुकर्मों का हिसाब उनके इंटरनेट पर मौजूद खातों के आधार पर तैयार करके, उन्हें जिंदा रखने और मारने के फैसले लेकर क्रियान्वित किए जाएं।
मुन्नाभाई : मतलब मेरी काबलियत ही, मेरी जिंदगी की दुश्मन हो गई।
यमराज : दुश्मन क्यों यहां पर तुझे कुछ भी छिपकर नहीं खाना पड़ेगा। मिठाई खाने के लिए किसी की नजरों से बचकर या रातों को जागना नहीं होगा और तू खाने के मामले में अपनी मर्जी का मालिक होगा। यही तो तू चाहता था, हमें फेसबुक और ट्विटर एकाउंट पर तेरे स्टेटस से यही जानकारी मिली है।
मुन्नाभाई : वह तो मेरी जिंदादिली है, वहां फेसबुक पर सब फेक चलता है। चलता ही नहीं, धरती से तेज स्पीड से भी दौड़ता है पर इनका चालक इन पर काबू नहीं रख पाता है। उसके संचालन विधि का संयमित ज्ञान देने के लिए बतौर विशेषज्ञ मैंने तुम्हें नियुक्त करके तेरी इच्छा का सम्मान ही किया है।
मुन्नाभाई : (स्वगत कथन : मुन्ना सोच रहा था कि कुछ बरस और जी लेता पर, हिन्दी ब्लॉग, फेसबुक और ट्विटर सरीखे माध्यमों पर लगाए गए स्टेटस ही उसे यहां पर लाए हैं। पर अब कुछ नहीं हो सकता है। वह अपने स्टेटस से इंकार भी तो नहीं कर सकता था। उसे क्या मालूम था जिस पर सक्रिय होकर उसे गुमान हो आया था, वही उसकी जान ले लेगा।) पर जब तक सब यमलोक में इन कलाओं में पारंगत होंगे,तब तक तो पृथ्वी की आबादी बेहिसाब बढ़ जाएगी।
यमराज : पर क्या उन्हें मारने के लिए इन माध्यमों का सामूहिक प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
मुन्नाभाई : किया तो सब कुछ जा सकता है। फिर आजकल तो मोबाइल पर सब इंटरनेट के जरिए इनका दुरुपयोग करते हैं।
यमराज : उसका फायदा लेना हमारे यमलोक वासियों को सिखलाओ।
मुन्नाभाई : यह बहुत आसान है। पृथ्वी पर सब मोबाइल फोन के इतने दीवाने हैं कि सब सड़कों पर,सीढि़यों पर, कारों में, वाहनों में, घरों में, श्मशान घरों में, अस्पतालों वगैरह मतलब सब जगह अपनी गर्दनें शुतुरमुर्ग की तरह घुसाए चल और दौड़ रहे हैं। हम उन्हें एक कमांड देकर सबको इधर उधर टकरा देंगे,उनके वाहन अनियंत्रित कर देंगे, सब बेकाबू होंगे और कोई रेल की पटरी के नीचे, कोई बस के नीचे सड़क पर कुचलकर, सीढि़यों से डगमगाते हुए गिरकर मर जाएगा और महीने भर का सारा बैकलॉग एक क्षण में कंट्रोल हो जाएगा। सब तहस-नहस हो जाएगा।
यमराज : फिर हमें सृष्टि के बिग बॉस से सम्मान और पुरस्कार मिलेंगे और जो हम भाग भाग कर,भूखे भैंसे पर बैठकर ढूंढ ढूंढ कर सबको मारने में अपनी ऐसी तैसी करवा रहे हैं। अब तनिक आराम से एक जगह बैठकर ही लैपटाप के जरिए उनके मोबाइलों को कमांड देकर निपटाकर कीर्तिमान स्थापित कर सकेंगे।
मुन्नाभाई : और जिनके पास मोबाइल नहीं है।
यमराज : उनके लिए हम उन नकारा यमदूतों का दौड़ाएंगे तो प्रगतिशील होते इस गैजेटों के युग में अब भी इनसे दूर भागते हैं और रात के अंधेरे में मोटर साइकिलों पर स्टंटबाजियां करते हैं। उन्हें भी अब तक यहां पर ला चुके होते, वह तो एक पुलिस वाले की गोली के कारण हमारा प्लान धरा रह गया और वे स्टंटबाज धरा पर ही धरे रह गए।
मुन्नाभाई : मतलब तकनीक के जानने से से तकलीफ भी और न जानने से विराट दिक्कतें भीं।
यमराज : तकनीक विज्ञान का ही बदला हुआ दूसरा नाम है। जो चमत्कार भी है और अभिशाप भी।
(तभी एकाएक दिन में मेरी नींद टूटी और मैं हड़बड़ाकर उठ बैठा। मैं तो घर में सो रहा था और चार बज गए थे। मेरे मोबाइल पर बहन किरण आर्य के फोन की घंटी घनघनाकर कह रही थी मुन्नाभाई आज पौने पांच बजे तुम्हें व्यंग्य वाचन के लिए सन्निधि के कार्यक्रम में पहुंचना है और तुम सोने में स्वर्ण का लुत्फ उठा रहे हो। मैं पांच मिनिट में तुरत फुरत तैयार हुआ बसें बदलते हुए और अंत में ऑटो में बैठकर चल पड़ा अपने गंतव्य की ओर।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (20-10-2013)
शेष : चर्चा मंचःअंक-1404 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अभी हाजिर होते हैं मयंक जी
हटाएंलोग धरती पर नहीं घूम पा रहे हैं और आप आकाश होकर आ जा रहे हैं ! बाबा जोगी शिव जी ने भी निमंत्रण भेजा है कैलाश पर्वत पर आने का किसी दिन उधर भी चले जाइयेगा भंग घुट रही है मलाईमार कर वहां आजकल !
जवाब देंहटाएंअवश्य सुशील भाई
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