हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग को छोड़ो , सोशल मीडिया से नाता जोड़ो (कविता नहीं सच)


मैं छोड़ रहा हूं अंतर्जाल
मैं मतलब नुक्‍कड़ब्‍लॉगडॉटकॉम
यह मत सोचिएगा कि मौजूद रहेगा
नुक्‍कड़ब्‍लॉगस्‍पॉटडॉटकॉम
जी हां, वह भी नहीं रहेगा
नहीं है जरूरत अब नुक्‍कड़ की
सब मुखिया बनना चाहते हैं
मुख्‍यधारा में बहना चाहते हैं
नुक्‍कड़ किसी को नहीं भाता
इसकी पोस्‍टों पर कमेंट करना नहीं सुहाता
मजबूरी में चले आते हैं
जिससे कोई जानकारी चाहिए हो तो
वह मिल जाए
कुछ नए रास्‍ते हो विचारों के
तो वह खुल जाएं
सब अब गूगल बाबा के पास मौजूद है
मैं दोहराव क्‍यों करूं
समय के साथ बदलूं।

सोशल मीडिया के बढ़ते वर्चस्‍व में
अब नहीं है कोई औचित्‍य ब्‍लॉग के बने रहने का
लगता है अब यह इतरा रहा है
फूला नहीं समा रहा है
इसलिए निकाल रहा हूं इसकी हवा
जिसकी नहीं मिलेगी कोई दवा

हां अगर कोई मित्र चाहते हों
यह बचा रहे
इसे भी जीने का
बने रहने का अधिकार है
तो वह इसका हक ले लें
और इसके साथ चाहे जैसे बिहेव करें

सब कुछ करें पर इस हकीकत को पढ़ कर
कमेंट मत करें
जब यह स्‍वचालित पद्धति से
प्रकाशित हो फेसबुक पर
ट्विटर पर, लिंकेदिन पर
या जहां भी यह पढ़ी जाए
तो इसे पढ़कर यूं ही दे सरकाय
जैसे देखा ही नहीं
मतलब करें अनदेखा
लाइक, अनलाइक भी मत करें।

इसे भी महसूस होना चाहिए
कि इसे ढोया जा रहा है
बोया गया था जिसके लिए
वह कार्य संपन्‍न हो चुका है
इसके करने के लिए
अब कुछ नहीं बचा है
इसके दिन बीत गए हैं
सुनहरे थे पहले
अब वह दिन रीत गए हैं।

एक एक करके सारे ब्‍लॉग कर दूंगा बंद
फेसबुक पर मैं भी मजे से विचरण करूंगा
यहां से जो समय बचेगा उसे भी सौंप दूंगा
आपको नहीं , फेसबुक को, ट्विटर को
पिंत्रेस्ट !

तकनीक और बदलाव के साथ बदलना बहुत जरूरी है
जैसे बंद किया गया है तार
जैसे उपयोगिता घटी है लैंडलाइन फोन की
पेजर की, चिट्टी की
वैसे ही ब्‍लॉग उपयोगी नहीं रहे।

अविनाश वाचस्‍पति

4 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसा भी नहीं है कि‍ ब्‍लॉग पढ़े नहीं जा रहे हैं या तथाकथि‍त सोशल मीडि‍या, ब्‍लॉग का स्‍थानापन्‍न हो सकता है. फ़ि‍ल्‍मों के आने से न थि‍येटर मरा है न ही रेडि‍यो और अखबार. समय के साथ उतार चढ़ाव आते रहते हैं. स्‍पेस इतना ज़्यादा है कि‍ बहुत सी चीज़े साथ साथ जी सकती हैं.

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  2. PS:- कल मेरे www.nbt.in/kajal ब्‍लॉग पर क़रीब 1400 लोग आए. जबकि‍ मैं कुछ भी sensational नहीं लि‍खता, सनसनी/ विवाद रहि‍त सीधे-सादे कार्टून बनाता हूं. http://www.kajal.tk पर नया कार्टून पोस्‍ट करने वाले दि‍न भी लगभग 300 पाठक देखते हैं. इसलि‍ए भी मैं तैयार नहीं हूं यह मानने के लि‍ए ब्‍लाग बंद हो रहे हैं या बंद कर दि‍ए जाने चाहि‍ए. हां यह ज़रूर है कि‍ अब पहले जि‍तनी प्रति‍क्रि‍याएं नहीं आतीं, उसके तीन मुख्‍य कारण नि‍श्‍चय ही हैं एक, दूसरे मीडि‍या माध्‍यमों का अवतरण; दो, नए पाठकों में तेज़ी से वृद्धि‍ न होना, और तीन, एग्रीगेटरों का अभाव.

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  3. अविनाश जी
    आप कैसे कमेट व् पढ़े न जाने का रोना रो सकते हैं .आप बताइए आप ने मेरे किस ब्लॉग पर ,कब कमेन्ट किया है .जब आप किसी को पढेंगें नहीं ,कमेन्ट करेंगें नहीं तो क्यों क्यों नुक्कड़ पर आएगा .

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