tag:blogger.com,1999:blog-7293001434674677831.post1718834304406853070..comments2024-03-07T19:38:46.484+05:30Comments on नुक्कड़: हिन्दी ब्लॉगिंग को छोड़ो , सोशल मीडिया से नाता जोड़ो (कविता नहीं सच) अविनाश वाचस्पतिhttp://www.blogger.com/profile/05081322291051590431noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-7293001434674677831.post-50237907090514499262013-06-20T21:37:51.515+05:302013-06-20T21:37:51.515+05:30अविनाश जी
आप कैसे कमेट व् पढ़े न जाने का रोना रो ...अविनाश जी <br />आप कैसे कमेट व् पढ़े न जाने का रोना रो सकते हैं .आप बताइए आप ने मेरे किस ब्लॉग पर ,कब कमेन्ट किया है .जब आप किसी को पढेंगें नहीं ,कमेन्ट करेंगें नहीं तो क्यों क्यों नुक्कड़ पर आएगा .Shikha Kaushikhttps://www.blogger.com/profile/12226022322607540851noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7293001434674677831.post-30944207201075888542013-06-20T20:55:57.730+05:302013-06-20T20:55:57.730+05:30aap kah rahe hain to sach hi hogaaap kah rahe hain to sach hi hogaalka mishrahttps://www.blogger.com/profile/01380768461514952856noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7293001434674677831.post-28435132676996246912013-06-20T20:52:34.509+05:302013-06-20T20:52:34.509+05:30PS:- कल मेरे www.nbt.in/kajal ब्लॉग पर क़रीब 140...PS:- कल मेरे www.nbt.in/kajal ब्लॉग पर क़रीब 1400 लोग आए. जबकि मैं कुछ भी sensational नहीं लिखता, सनसनी/ विवाद रहित सीधे-सादे कार्टून बनाता हूं. http://www.kajal.tk पर नया कार्टून पोस्ट करने वाले दिन भी लगभग 300 पाठक देखते हैं. इसलिए भी मैं तैयार नहीं हूं यह मानने के लिए ब्लाग बंद हो रहे हैं या बंद कर दिए जाने चाहिए. हां यह ज़रूर है कि अब पहले जितनी प्रतिक्रियाएं नहीं आतीं, उसके तीन मुख्य कारण निश्चय ही हैं एक, दूसरे मीडिया माध्यमों का अवतरण; दो, नए पाठकों में तेज़ी से वृद्धि न होना, और तीन, एग्रीगेटरों का अभाव. Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7293001434674677831.post-52202347936153687632013-06-20T20:38:43.387+05:302013-06-20T20:38:43.387+05:30ऐसा भी नहीं है कि ब्लॉग पढ़े नहीं जा रहे हैं या ...ऐसा भी नहीं है कि ब्लॉग पढ़े नहीं जा रहे हैं या तथाकथित सोशल मीडिया, ब्लॉग का स्थानापन्न हो सकता है. फ़िल्मों के आने से न थियेटर मरा है न ही रेडियो और अखबार. समय के साथ उतार चढ़ाव आते रहते हैं. स्पेस इतना ज़्यादा है कि बहुत सी चीज़े साथ साथ जी सकती हैं.Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.com