धोनी रे मोनी रे तू समझे न इशारे

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  • अविनाश वाचस्पति
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  • जिसे सब धोनी की चुप्‍पी माने बैठे हैं दरअसल, उसके लिए जिम्‍मेदार उनकी आस्‍तीन में छिपा कोई सांप भी हो सकता है जिसका उन्‍हें भी इल्‍म न हो।  बेपरों के उड़ने वाले सांपों का पता ही नहीं चलता कि वे कब कहां पर गुपचुप पहुंचकर बसेरा डाल लें। फिर भी जिन सांपों की जानकारी मिली है उन्‍हें धर दबोचा गया है। यह भी हो सकता है कि उड़ने वाले सांपों को जहां तहां फिक्‍स कर दिया गया हो। खेल स्‍पॉट फिक्सिंग का है इसलिए सांपों के फिक्‍स किए जाने की भरपूर संभावना है।  सांपों की मौजूदगी बहुत आसानी से सिर्फ चूहे और उड़ने वाले पक्षी ही भांप सकते हैं। ऐसा इसलिए संभव है क्‍योंकि सांप सामने पड़ने पर चूहों के बिल में बेधड़क घुस जाते हैं और चूहों को अपना भोजन बनाने से भी परहेज नहीं करते हैं। जबकि चिडि़याएं शोर मचा मचाकर उसका रेंगना मुश्किल कर देती हैं।

    धोनी आज तक अपने बैट फेसीय बहुरूपिये डंडे से बाल की जायज और नाजायज धुनाई करते रहे हैं। मालूम चला है कि उनके सपने में अब बैट नहीं, सांपों ने कब्‍जा जमा लिया है और कभी कभी उनके सपनों में सपेरे भी घूमते चले आते हैं। हम सब जानते हैं कि पुलिस के डंडे के सामने बड़े बड़े तीसमारखाओं और सूरमा भोपालियों (वे रामू हरिद्वारी भी हो सकते हैं) की बोलती फटाक से बंद हो जाती है और व‍ह ऐसा अवसर आने पर महिला वस्‍त्र धारण करके जान बचाना अपना पुनीत कर्तव्‍य समझते हैं क्‍योंकि मौजूदा प्रशासन के होते हुए इस कदम को युक्तिसंगत कहा जाएगा। हालिया स्थिति में धोनी अगर अपने सपने में अपना मजबूत बैट ले जाने में येन केन प्रकारेण सफल हो जाते हैं तो वह स्‍वप्‍नीय सांपों के कारण सक्रिय अपने मौन से जरूर निजात पा सकेंगे।

    इसके बावजूद कितने ही चिंतक धोनी की चुप्‍पी की तुलना पीएम के मौन से कर चुके हैं और इससे मिलने वाली खुशी का अनुमान लगाया जा सकता है क्‍योंकि कई गीतकारों ने खुशी खुशी में मुखड़ा लिखने सफलता हासिल कर ली है।  ‘धोनी रे मोनी रे तू समझे न इशारे’ क्‍योंकि उन्‍हें किसी मामले में ही सही पीएम के समकक्ष तो समझा जा रहा है। क्‍या सब नहीं जानते हैं कि पीएम का मौन दरअसल कुर्सी की साधना का सबब है और कुर्सी के डगमगाने से सबकी तरह वे भी भयभीत हैं। इसके विपरीत क्रिकेट के खेल में कुर्सी होती ही नहीं है, वह बात दीगर है कि खेल को खिलाने वाले बीसीसीआई सरीखे कुर्सियों पर कब्‍जा जमाए बैठे हैं। यह फिक्सिंग ने सामने आकर खुलेआम जाहिर कर दिया है। अगर पहले से ही कुर्सी फिक्‍स रही होती तो स्‍पॉट फिक्सिंग की जरूरत ही नहीं पड़ती। अब बिना कुर्सी के बैठने का जुगाड़ करना, किसी शैतान के बस का तो था नहीं, इसलिए एक संत ने यह जिम्‍मेदारी ओढ़ी थी। संत सब कुछ कर रहा था पर वह मौन नहीं था, उसकी शारीरिक हरकतें किसी के संसर्ग से उसके बदन पर सर्प की मानिंद रेंग रही थीं। वह संत से शैतान बना था। उसकी यह तान किसी को रास न आने की वजह उसके लिए वहां घोड़े का जुगाड़ होना नहीं था। 

    घोड़े के न होने के कारण संत को अपनी इस धींगामुश्‍ती के कारण जेल, जेल और जेल का मुंह ही नहीं देखना पड़ा, उसमें रहने के लिए मजबूर होना पड़ा। शैतान बने उस संत को ऐसी उम्‍मीद नहीं थी, सो वह जितनी देर जेल में रहा सुबक सुबक कर रोता रहा और इतना रोया कि उसे रोता देखकर अगले दिन आसमान भी रो पड़ा और सड़कें तालाब बन गईं। अगर वह मौन रहकर रोता तो ऐसी विकट स्थिति का सामना शरीफ सड़कों को नहीं करना पड़ता।

    सरकार में सारा खेल कुर्सी पर टिका रहता है और क्रिकेट में बिना कुर्सी के चमत्‍कार करने पड़ते हैं। जहां कुर्सी मौजूद रहती है वहां सारे चमत्‍कार कुर्सी के लिए किए जाते हैं। एक में मौन साधना है और दूसरे में चुप रहकर जान बचानी है। संत हो या शैतान अपनी रोनी सूरत सबको दारूण दुख देती है। इस दुख से निजात पाने के लिए बोलती बंद ही रहनी चाहिए।
    आप परिचित ही हैं कि नेताओं पर तभी जूते फेंके गए हैं जब वे बोलते पाए गए हैं। कारण नेताओं के बोलने को अब बकवास की सम्‍मानीय पहचान मिल चुकी है। वैसे बकवास पर जूते मारना यूं तो बनता नहीं है पर जूते मारने वाला बकवास सुनने का इंतजार करता नहीं है।

    कहा भी गया है कि नेता, जूता और पुलिस किसी का इंतजार नहीं करते हैं और जो इनका इंतजार करता है, वह बाद में हवालात में लात खाते पाया जाता है। आजकल घटी हुई घटनाओं से इस बात की पुष्टि हो रही है। क्रिकेट में जिस इकलौते के पास कुर्सी है उस श्रीनिवासन को इस्‍तीफा देकर निवास लौटने के लिए कहा जा रहा है, और वह इससे साफ इंकार करके अपने नाम के अंतिम अक्षर ‘न’ का अनुपालन ही सुनिश्चित कर रहे हैं।  चलते चलते एक रहस्‍य और खोल रहा हूं कि फिक्सिंग और कुछ नहीं पुराने जमाने का ‘कठपुतली’ गेम ही है जिसे नए अंदाज में क्रिकेट ने अपना लिया है। और इन पंक्तियों के लिखे जाने तक खबर आ चुकी है कि धोनी सांपों पर काबू पा चुके हैं और उनका मुंह खुल गया है।

    2 टिप्‍पणियां:

    1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
      आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (31-05-2013) के "जिन्दादिली का प्रमाण दो" (चर्चा मंचःअंक-1261) पर भी होगी!
      सादर...!
      डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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