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सच्चाई की ताकत कलाकार को शिखर तक ले जाती है : आलोक भारद्वाज
डीडी नेशनल पर प्रसारित चर्चित धारावाहिक धारावाहिक ‘‘सुकन्या हमारी बेटियाँ‘‘ से बतौर अभिनेता अपने कैरियर की शुरुआत करके आलोक भारद्वाज ने सोनी टीवी पर प्रसारित ‘अदालत‘ और लाइफ ओके पर ‘सावधान इंडिया‘ में अभिनय किया। आलोक का मानना है कि प्रत्येक कलाकार को निरंतर अपनी अभिनय कला को निखारने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए । रोल के साथ प्रयोग को भी तरजीह देनी चाहिए, सच्चे कलाकार की यही ताकत उसे शिखर पर ले जाती है। टीवी इंडस्ट्री के माहौल को अच्छा बतलाते हुए उन्होंने यह भी जोड़ा कि माध्यम कोई भी हो पर प्रतिभा कलाकार को सफल मुकाम तक पहुंचाने में सहायक होती है। पेश है उनसे की गई बातचीत के महत्वपूर्ण अंश:
टी वी इंडस्ट्री में आपकी एन्ट्री कब हुई ?
आलोक: मैं काफी समय से इस इंडस्ट्री से जुड़ा हुआ हूँ । हालांकि 2012 में मुझे पहला ब्रेक मिला। वह साल मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण साल है।
आपका अभिनीत पहला टी वी धारावाहिक कौन सा है ?
आलोक: मेरा पहला टी वी धारावाहिक था ‘‘सुकन्या हमारी बेटियाँ‘‘ डीडी नेशनल पर एक वर्ष तक लगातार प्रसारित हुआ। यह धारावाहिक समाज की कुरीतियों के प्रति जागरूक करता है, इसमें मैंने विशाल नामक एक ऐसे नवयुवक की भूमिका अभिनीत की है जो कितनी ही कठिनाइयों का मुकाबला करते हुए अपने परिवार का साथ नहीं छोड़ता है और सबसे मिलकर चलता है। इस धारावाहिक से संयुक्त परिवार की अच्छाइयों के बारे में बेहतरीन संदेश निकलकर आता है।
क्या आपको लगता है कि ‘‘सुकन्या हमारी बेटियाँ‘‘ धारावाहिक को देखने के लिए अन्य धारावाहिकों के दर्शक इससे जुड़ हैं क्योंकि टीआरपी के हिसाब से डीडी नेशनल को इंडस्ट्री में इतना अधिक रिस्पांस नहीं मिलता है ?
‘‘सुकन्या हमारी बेटियाँ‘‘ धारावाहिक के बारे में साथी कलाकारों और दर्शकों की प्रतिक्रिया काफी सकारात्मक रही है। वैसे भी चैनल तो केवल एक जरिया भर है, दर्शक सिर्फ वही धारावाहिक देखना पसंद करते हैं जिनकी घटनाएं उनके दिल के करीब हों और रोजमर्रा की जिंदगी से ताल्लुक रखती हों और जिन समस्याओं से वह जूझ रहे हों, उनका सटीक हल निकालती हों।
इस धारावाहिक में काम करने के बाद आपका कैरियर उठान पर है, इस विषय पर क्या कहेंगे आप ?
आलोक: मैं अभी अपनी सफलता से संतुष्ट नहीं हूं बल्कि यूं कहूंगा कि कलाकार कभी अपने अभिनय से संतुष्ट नहीं हो सकता है। यह असंतोष ही जीवन में बेहतर करने के लिए जरूरी है। ‘‘सुकन्या हमारी बेटियाँ‘‘धारावाहिक का सफल प्रसारण हाल ही में संपन्न हुआ है। इस दौरान मुझे अन्य कई चैनलों पर छोटी-छोटी भूमिकाएँ मिली हैं और मैंने उन्हें भी मन लगाकर पूरा किया है। वैसे भी भूमिका छोटा या बड़ा होना उतना मायने नहीं रखता, जितना अभिनय में डूबकर अपना सर्वोत्तम दर्शकों के सामने प्रस्तुत करना जरूरी है। ‘‘सुकन्या हमारी बेटियाँ‘‘ धारावाहिक के जरिए मैं अभिनय कला की कई बारीकियों से परिचित हुआ हूं। ऐसा नहीं है कि इस धारावाहिक में अपने काम की सराहना पाकर खुद को बहुत बड़ा कलाकार समझने लगा होउफं। मेरे सामने अभी और भी अच्छा कार्य करने की संभावनाएं है और मुझे उनमें भी खरा उतरना है। मेरे ख्याल से हर कलाकार को निरंतर अपने कला को निखारने के लिए प्रयत्न करते रहना चाहिए। अभी मेरे पास कई अच्छे प्रोजेक्ट्स हैं । मुझे जीवन में नए नए प्रयोग करने में खूब आनंद मिलता है और मैं रोल के साथ प्रयोग को तरजीह देने का सदा पक्षधर हूँ। मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में मैं अपनी अभिनय कला को और अधिक क्षमताओं के साथ अपने रोल में जीवंत कर पाउंगा।
अभिनय के क्षेत्र में ही क्यों आए ?
आलोक: विद्यालयी जीवन से ही मैं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया करता था । जब बड़ा हुआ तो फैसला लेना था कि क्या करना है। मेरे माता-पिता, दोस्त-यार, शुभ चिंतकों ने सुझाव दिया कि मुझे अभिनय के क्षेत्र में जाना चाहिए । उन्होने सपोर्ट भी किया और ेअनुकूल अवसर मिलते ही मैं इस क्षेत्र में प्रवेश कर गया।
अभिनय में जीवन को आप कैसा महसूस करते हैं ?
आलोक: यह जीवन इतना आसान नहीं है जितना दिखलाई देता है। इसमें बहुत गहरा आकर्षण है पर मेहनत बहुत है। हर दिन आपको एक नया किरदार निभाना पड़ता है। बहुत से किरदार आप पर्दे पर निभाते है, पर आप अपनी असल जीवन में उन्हें निभाने से बचते हैं। जबकि पर्दे पर दिखाई देने वाला विलेन अपनी असल जिन्दगी में विलेन नहीं होता, इसे आप अभिनेता प्राण की मिसाल से बखूबी समझ सकते है ं? जिन्हें पिछले महीने भारत सरकार ने दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया है। अभिनय ही जीवन का एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें दुनिया को अनेक आयामों में जानने-समझने का मौका मिलता है। मैं खुद को खुशनसीब मानता हूँ कि मुझे यह अवसर मिला है।
फिल्म इंडस्ट्री में आपका अनुभव कैसा रहा ?
आलोक: वाचस्पति जी, बहुत अच्छा या यों कहिए कि अच्छाइयों से लबालब। यहाँ के लोग काफी सपोर्टिव हैं, जबकि बाहर इसके बारे में खूब सारी गलतफहमियां फेली हुई हैं। यहाँ हर कोई एक ही नाव में बैठता है इसलिए उसका तनिक भी नुकसान कोई बर्दाश्त नहीं कर सकता। जितना मैंने इस इंडस्ट्री से सीखा है और सीखता रहूंगा, मैं समझता हूं कि उतना शायद कहीं और नहीं सीख पाता ।
अन्य चैनलों पर प्रसारित आपका पसंदीदा धारावाहिक कौन सा है ?
आलोक: वैसे तो मुझे कई धारावाहिक पसन्द हैं पर साथियाँ साथ निभानामुझे बेहद आकर्षित करता है।
क्या आप हिन्दी या क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्में भी कर रहे हैं ?
आलोक: जी हाँ, हाल ही में मैंने एक हिन्दी फिल्म में छोटा सा किरदार निभाया है। उम्मीद करता हूँ कि वह भी दर्शकों को अवश्य पसंद आयेगा ।
भविष्य की आपकी योजनाएँ ?
आलोक: मैं अलग-अलग तरह के किरदार निभाना चाहता हूँ , चाहे टी वी हो या सिनेमा। मुझे अपने पर पूरा भरोसा है कि प्रोड्यूशर और डायरेक्टर्स को मेरा काम पसंद आता रहेगा और वे मुझे मौका देते रहेंगे ।
चलते-चलते एक और प्रश्न....
किन-किन लोगों ने आपको इस इंडस्ट्री में सपोर्ट किया है, जिनके प्रति आप आभार व्यक्त करना चाहेंगे ?
आलोक: इस इंडस्ट्री में मेरे मार्गदर्शक रहे हैं रवि भूषण भारती और संदीप बेरीवाल। इन दोनों के दिशा-निर्देश के बल पर ही मैं यहाँ तक पहुँच पाया हूँ । साथ ही मैं आभारी हूँ ‘‘सुकन्या हमारी बेटियाँ‘‘ के प्रोड्यूशर मनीष जी, डायरेक्टर सबीर जी और क्रिएटिव हेड शाहिद जी का, जिन्होने मुझ पर भरोसा किया और अपने को साबित करने का दुर्लभ अवसर दिया ।
जी धन्यवाद आलोक जी, अपना समय देने और बातचीत करने के लिए। जाते जाते पाठकों को मैं यह भी बतलाना चाहूंगा कि आलोक भारद्वाज के अभिनय से सजी फीचर फिल्म ‘खेलमंत्र‘ संभवतः अगस्त माह में प्रसारित होगी, जिसमें इनके अभिनय के एक नए रूप का दर्शक दीदार कर पायेंगे।
फिल्म चीज बड़ी है फिक्स फिक्स .. आलेख का बकाया अंश
सृष्टि के अंत के लिए भी फिक्सिंग हो चुकी होगी। हम सब भी अपनी अपनी जगह फिक्स हैं। कोई नौकरी में फिक्स, कोई छोकरी में फिक्स, कोई दोनों में फिक्स। और कोई तीन तरह से, फिर भी उसकी गिनती न तीन में है न तेरह में। फिक्सिंग की गति वही नहीं समझ पाता है। कोई पढ़ने के लिए फिक्स और कोई न पढ़ने के लिए फिक्स । कोई गाना सुनने में फिक्स कोई चुटकुला सुनाने के लिए फिक्स । कोई उन्हें लिखने के लिए फिक्स और कोई उन्हें चुराकर अपने नाम से छपवाने के लिए फिक्स। संत फिक्स हैं उपदेश देने के लिए, शैतान फिक्स हैं चकमा देने के लिए और चकमा लेने के लिए उनके अनुयायी। फिक्सिंग कहर है, जहर है और मजबूत ठहर है। ईमानदारी के लिए और बेईमानी के लिए गिराने उठाने की जोड़-तोड़ की फिक्सिंग। कोई बीमारी में फिक्स है, जिसकी बीमारी हटाने के लिए डॉक्टर फिक्स है, यही तो फिक्सिंग की ट्रिक्स हैं। ट्रिक होते भी ट्रक से कहीं ज्यादा मजबूत है फिक्सिंग। जीने मारने में फिक्स , यमराज भी फिक्स, उसके एजेंट जगह-जगह अनेक अनेक रूपों में फिक्स हैं। सड़कों पर यातायात फिक्स, लाल बत्तियां फिक्स और उन्हें अनदेखा करके मनमानी करने वालों के लिए यातायात के सिपाही फिक्स। आप सुबह सैर पर चल दिए हैं और आपके पैरों तले चीटियां और सूक्ष्म प्राणी मरने कुचले जाने के लिए फिक्स हैं। मक्खियां और मच्छर उड़ने के लिए फिक्स हैं, फिर भी ताली बजाने पर मरने के लिए फिक्स। आप भी सैर पर, वह भी सैर पर, पर आपके पैर उनके सिर पर। सैर का लंबा और छोटा होना भी फिक्स है। विचारों की सैर, गांव की सैर और शहर की सैर। ख्वाबों में भी सैर करते बहुतेरे हैं। जिंदगी में आनंद पाने के लिए ही फिक्सिंग है। देखा आपने फिक्सिंग में भी कितनी मिक्सिंग है।
मल्टीटास्किंग का जमाना है इसलिए फिक्सिंग भी मल्टी हो गई है। एक धंधे में अनेक धंधे जुड़ गए हैं, न एक से और न नेक कार्य से आदमी गुजर बसर कर पा रहा है। दरअसल, धन की लिप्सा , पैसे की भूख सबसे उपर मान ली गई है। इसलिए उसने अपने हाथ-पांव और चादर फैला ली है। बिना सतर्कता बरते कि उससे किसी की आंखें मुंद रही हैं। जैसे मल्टीनेशनल कंपनी छा जाती है। एक धंधे से यानी कमाई के एक सोर्स से आजकल गुजारा नहीं हो पाता। अब जो लाखों करोड़ों कमा रहे हैं उनके खर्चे और हेराफेरियां अरबों में पहुंच गई हैं। उनकी वासनाओं और हवस पर उनका बस नहीं रहा है। बेबस हो चुके हैं वह। अब भगवान ने भी गजब की फिक्सिंग की है। कान का मुख्य काम सुनना है लेकिन सुनने के साथ ही जब चाहे पुलिस कान पर थप्पड़ मार देती है, इसके अतिरिक्त कान पर ही चश्मा पैर पसारकर लोट मारता है। चश्मे को कान के सिर पर लोट लगवाने की फिक्सिंग इंसान की अदा है। नाक भगवान ने सांस लेने के लिए दी, आपने उससे सूंघने की फिक्सिंग कर ली। नाक के सिर पर चश्मा जमकर बैठ गया कि अब नहीं हिलूंगा। चश्मा भी मल्टीटास्किंग कर रहा है। आंखों की मूल फिक्सिंग देखने के लिए है। पर उससे नैन मटक्का भी किया जा रहा है। वही आंखें धूल झोंकने के काम आ रही हैं, आप इस फिक्सिंग को मानने से कैसे करेंगे इंकार। चश्मा, कान नाक पर सवारी नहीं करेगा तो क्या मुन्ना्भाई बनकर हवा में लटकेगा या जुल्फों को पकड़कर लटकने का लुत्फ लेगा। पहले इंसान ने वाहन में पैट्रोल से चलने की फिक्सिंग की, जब उससे मन नहीं भरा तो सीएनजी से चलने की फिक्सिंग भी कर दी। अब सुन रहे हैं कि पानी और हवा से वाहनों को चलाने की फिक्सिंग पर काम चल रहा है। जुगाड़ करना फिक्स करने का ही पर्याय है। सरकारी कर्मचारियों के वेतनमान बढ़ने की देर नहीं होती कि वे कहने लगते हैं कि पे फिक्स करो। फिक्सिंग के सिक्सर की हर जगह धूम मची हुई है। क्रिकेट में सुन रहे थे कुछ नजारे नजर भी आए थे पर परंपरागत तरीका इतने बड़े खेल में खिलाडि़यों को ही रास नहीं आया इसलिए स्पॉट फिक्सिंग का तरीका खोज निकाला। जिसमें कोई तौलिया हिलाता है, कोई टोपी गिराता है और नोट पाने के चक्कर में कोई कोई तो खुद की नजरों से गिर जाता है। फिक्सिंग के साथ मिक्सिंग बुराईयों की अच्छाईयों की। फिल्म में जैन्ट्स के साथ लुगाइयों की मिक्सिंग। कितनी हीरोइनें हीरोज के साथ मल्टी फिक्सिंग करती हैं। कितने ही हीरो हीरोइनों के साथ मल्टी टास्किंग करते हैं। मिक्सिंग के जलवों को फिक्सिंग से कम मत समझिए। ज्यादा होंगे तो होते रहें इस समय तो फिक्सिंग के जलवे उबाल मार रहे हैं। संत ने माफिया के दवाब में आकर शैतानी रूप अख्तियार कर लिया। पानी के गिलास में गोली के मिलाने को मिक्सिंग कहोगे या फिक्सिंग - इनके बीच में सीमा रेखा की जरूरत है। दूध में आम, चीकू में दूध - कितने ही शेक मनुष्य को लुभाते हैं। आम खाने से आम और मैंगोशेक पीने से खास हो जाते हैं। शराब में सोडा, सोडे में व्हिस्की, व्हिस्की में बीयर आप जिसे सहन कर सकते हो उस सब को फिक्स कर दो, फिर लुत्फ लो जिंदगी का। चाय में चीनी, मसालों में बुरादा, दाल में कंकड़ मिक्स नहीं, फिक्स किए जाते हैं। इसलिए खुलेआम बिक जाते हैं और आप तथा हम खरीद कर ले आते हैं। इसलिए फिल्म चीज बड़ी है फिक्स फिक्स।
इसको कहते हैं मुन्ना भाई का फिल्मी तड़का ...बधाइयाँ !
जवाब देंहटाएंमसाले घी बूरा सौंफ और जीरा
हटाएंआपने है भेजा साथ में खीरा।
आज की ब्लॉग बुलेटिन शो-मैन तू अमर रहे... ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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