बाएं से- शन्नो अग्रवाल,सुनीता चोटिया,अविनाश वाचस्पति,डा. रमा द्विवेदी एवं प्रणीत
क्यों मन कर रहा था मेरा
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जिसका कभी सवेरा न हो
क्या यह आवेग है
उद्वेग है
जीवन एक निराशा है
या विश्वास है
पुनर्जन्म का
अथवा घोर दर्द के क्षणों में
हम वहीं से होकर गुजरते हैं
यहां सबके पैरों के पदचिन्ह
नजर आते रहते हैं
मिटते नहीं कभी
मिटाने से
और मिट जाते हैं
बिना बहाने के
बस यूं ही
उम्र तमाम होती है
जिंदगी की शाम
रात और देर रात
होती है
जिस रात की सुबह नहीं।
नमस्ते ... नमस्ते ... नमस्ते
दूसरी कविता
क्यों देर में सोते हैं
फिर उठते हैं देर में
सब कार्य देर से करते हैं
देर को बदल सवेर क्यों नहीं करते हैं
मित्र मेरे चेहरे के
मेरा चेहरा सुबह जग आता है
सब घनिष्ठों को
क्यों सोते पाता है
उन्हें जगाने में
क्यों ईश्वर भी शर्माता है
क्यों शर्मिन्दा वे नहीं होते हैं
न देर से सोने में
न जल्दी उठने के लिए
क्या शर्म बेच खाई है
या नाक को रखकर
रेहन आए हैं
इसलिए बेशर्मी की
हंसी चेहरे पर चिपका
आंखें मसलते हुए
अपनी ही ऊंगलियों से
कीबोर्ड को दबाने के लिए
फिर से एक बार
तकनीक के मैदान में
उतर आए हैं।
:)
जवाब देंहटाएंaap yoon hi jeete rahen :-)
जवाब देंहटाएं:))
जवाब देंहटाएंआप शीघ्र स्वस्थ हो जाएँ...यही कामना है...
जवाब देंहटाएंअन्ना चाचू को खुश करने आ गयी कलम घिस्सी.
जवाब देंहटाएंआप हँसे खूब तो सारी बीमारी हो जाएगी फिस्सी.
बिटिया की कलम का संगीत
जवाब देंहटाएंगीत खुशी का, गीत हंसी का
बांटे सदा ही प्रीत की रीत।
निराश न हों ।
जवाब देंहटाएंसब ठीक हो जायेगा ।
जीवन है...
जवाब देंहटाएंविश्वास है....
नववर्ष की शुभकामनाएं।
LIKHTE RAHEIN ISI TARAH SACHCHAI SE,UTHNE BHI LAGENGE SUBAH ISI TARAH ACHCHHAI SE.
जवाब देंहटाएंBAHUT SUNDAR AVINASH JEE.
बहुत बेहतरीन
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