इस प्रकार के कितने मुहावरों से आप अपने जीवन में परिचित हुए हैं।
वह हमें भी बतलाएं।
जिससे सब जान जाएं।
और अपनी प्राणशक्ति का विकास करें।
शब्दों में ही लेखकों के प्राण बसते हैं।
बच्चों के उनके बस्ते से प्राण निकलते हैं।
बस्ता बसता है
या बसने नहीं देता है
बस चलने नहीं देती
न पैदल
न उसमें बैठने पर
जब जिसको चाहती है
कुचल देती है
दिल दुखी है
अंबाला की बस की करतूत से
वैसे बस ने कहा है कि
यह चालक और कंडक्टर का किया धरा है
आपको क्या लगता है
कि मानव धरा पर क्यों गिरा है
जरूर इसमें धन का लालच
असली रोग है
यह क्यों बन रहा
कुछ के मन का भोग है।
वह हमें भी बतलाएं।
जिससे सब जान जाएं।
और अपनी प्राणशक्ति का विकास करें।
शब्दों में ही लेखकों के प्राण बसते हैं।
बच्चों के उनके बस्ते से प्राण निकलते हैं।
बस्ता बसता है
या बसने नहीं देता है
बस चलने नहीं देती
न पैदल
न उसमें बैठने पर
जब जिसको चाहती है
कुचल देती है
दिल दुखी है
अंबाला की बस की करतूत से
वैसे बस ने कहा है कि
यह चालक और कंडक्टर का किया धरा है
आपको क्या लगता है
कि मानव धरा पर क्यों गिरा है
जरूर इसमें धन का लालच
असली रोग है
यह क्यों बन रहा
कुछ के मन का भोग है।
जो भी है बेहद दुखद है... !!!
जवाब देंहटाएंप्राइवेट स्कूल वालों की लापरवाही का नतीजा है ये। उनकी लापरवाही ने कई घरों के चिराग बुझा दिये।
जवाब देंहटाएंbehad dukhad hadsa hae aur in hadson ki punravrtti prayh hoti hae jo ki sharmnak hae .
जवाब देंहटाएं