सर्जना जी की रचना गुलाबो मासी...खुशदीप

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  • Khushdeep Sehgal
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  • सर्जना शर्मा जी नई ब्लॉगर है...उन्होंने अपने रसबतिया ब्लॉग पर एक बेहतरीन संस्मरण लिखा है...ये संस्मरण ऐसी शख्सीयत के बारे में जिसे हमारे में समाज में न तो पुरुष और न ही महिलाओं में स्थान दिया जाता है...लेकिन आप खुद पढ़ कर देखिए ये शख्सीयत हम इनसानों से भी कितनी आगे है...

    टीवी पर एक खबर चल रही थी मुंबई में राष्ट्रीय किन्नर संघ के अध्यक्ष गोपी अम्मा की हत्या के आरोप में उन्ही की शिष्या आशा अम्मा पकड़ी गयी । मामला प्रोपर्टी का था । किन्नर जो कि खुशी के मौके पर हर घर में आकर नाचते गाते हैं अब बहुत से अपराधों में पकड़े जाने लगे हैं । कभी किसी को जबरन पकड़ कर हिजड़ा बनाने के आरोप में तो कभी आपसी लड़ाई झगड़े औऱ लूटपाट के आरोप में पकड़े गए । सड़क पर चौराहों पर जब लाल बत्ती होने पर गाड़ी रूकी रहती है तो सजे धजे किन्नर मांगने आ जाते हैं । मंदिरों के बाहर भी किन्नर मांगते रहते हैं । मैं कभी भी किसी किन्नर को खाली हाथ नहीं जाने देती । कुछ रूपए उनकी हथेली पर ज़रूर रखती हूं । कई बार राह में यूंही चलते फिरते मिल जाते हैं तो भी उन्हें पैसे ज़रूर देती हूं।




    मैं जब भी किन्नरों को देखती हूं मुझे गुलाबो मास्सी याद आ जाती है । गुलाबो मास्सी की बहुत मीठी यादें मेरे साथ जुड़ी हैं । मुझ से ही क्यूं हमारे मौहल्ले के हर बच्चे को आज भी गुलाबो मास्सी की याद है । गुलाबो मास्सी का सूचना केंद्र तो हम सब बच्चे ही होते थे । हमारे मौहल्ले में 16 घर थे सबके 6 या सात बच्चे थे बस मैं और मेरी बहन ही दो थे । हमारा मौहल्ला एक बड़े परिवार की तरह था । सब बच्चे मिल कर बहुत उधम काटते थे ।

    गुलाबो मास्सी जब अपनी टोली के साथ आती तो उनका ढोलक वाला ज़ोर से अपनी ढ़ोलक पर थाप देता और वो ताली बजातीं । हम सब बच्चे भाग कर गुलाबो मास्सी के पास पंहुच जाते । हमारे मौहल्ले में घुसते ही पीपल का पेड़ था और वहां बैठने की जगह भी बनी हुई थी गुलाबो मास्सी अपनी टोली के साथ वहां बैठ जाती हम सब को लाड़ दुलार करती । फिर वो पूरी सूचनाएं लेती किस के घर बेटा हुआ , किसके बेटे की शादी हुई , या किसकी बेटी अपने मायके डिलीवरी कराने आई हुई है । अपने मौहल्ले तो क्या पूरे शहर की खबर हम मास्सी को बता देते।

    फिर वो पूछतीं, 'कुड़े तेरी मां ने की चाढ़या ' ए लड़की तेरी मां ने आज क्या खाना बनाया है । हम बता देते फिर वो कह जाती कि आज मैं तुम्हारे घऱ खाना खांऊगी । उनका सबके साथ अपनेपन का नाता था मास्सी यानि मौसी हमारी मां की बहन यही संबोधन उन्हें सब देते थे । कभी किसी से लडती नहीं थीं , ना ही किन्नरों जैसी अश्लील हरकतें करतीं थीं । अगर किसी ने कहा कि आज नहीं अगले हफ्ते नाचने आ जाना तो वो मान जातीं । कभी नेग को लेकर उन्होने विवाद नहीं किया हां सूट ज़रूर मांगती थी. उनके ढ़ोलक वाले के कपड़े भी कभी कभी मांग लेतीं । वो सबकी माली हालात के बारे में जानती थीं, इसलिए हैसियत देख कर नेग लेतीं कभी ज्यादा की जिद नहीं करती।

    अगर मैं कहूं कि गुलाबो मास्सी किसी सदगृहस्थ महिला जैसी थीं तो इसमें कोई अति श्योक्ति नहीं होगी । सब महिलाओं के साथ बहुत अच्छा संबंध रखती दुख सुख में आती जाती । हम बच्चों से तो एक विशेष रिश्ता था सूचनाएं तो सभी हम से ही मिलती थीं । गुलाबो मास्सी पिंजौर से आया करती थीं उनका बड़ा सारा इलाका था । हम पंचकूला में रहते थे. उन्होनें जिन बच्चों के पैदा होने में नाचा उनके बच्चों के पैदा होने पर भी वही आती थीं । जो अपने घर में नचवाता था वो हम बच्चों से ही कह देता-जाओ सबके घर सददा यानि बुलावा दे आओ .

    हम आनन फानन में सबको बुला लाते . तब तक उनकी टोली चाय पानी पीती । 10 -15 निनट में सब महिलाएं उनके लिए आटा , चावल चीनी और नेग लेकर पहुंच जातीं । और वो मन लगा कर नाचती उनकी टोली के अन्य किन्नर भी नाचते पंजाबी गाने , फिल्मी गाने . और उनका ढ़ोलक बजाने वाला तो लाजवाब था । बहुत अच्छी ढ़ोलक बजाता । जब तक वो जीयीं उनके साथ वही रहा।
    मेरी बुआ की बेटी अरूणा भी बहुत अच्छी ढ़ोलक बजाती है . गर्मियों की छुट्टियों में वो आयी होती तो ढ़ोलक वाले के पास बैठ कर और अच्छा बजाना सीखती और हंसी में कहती थी अगर मुझे बड़े होकर नौकरी ना मिली तो मैं भी आप लोगों की टोली में ढ़ोलक बजाऊंगी । गुलाबो मास्सी मुझे रख लोगी ना ? और सब हंस देते। और फिर बारी आती बच्चे को लोरी सुनाने की .

    किन्नर नवजात शिशु को अपनी गोद में लेकर दूध पिलाने का अभिनय करते और साथ ही गाते ---' घर जाण दे री लाला रोवे मेरा' यानि अब मुझे घर जाने दो मेरा बच्चा रो रहा है । गुलाबो मास्सी नवजात शिशु को अपनी गोद में लेकर एक पीढ़े पर बैठ जाती और अपने आंचल से बच्चे को ढ़क दूध पिलाने का अभिनय करती । उस समय उनके चेहरे पर किसी ममतामयी मां जैसे भाव होते। आंखे थोड़ी नम हो जातीं । हम छोटे थे लेकिन जैसे अपनी मां की आंखों की भाषा समझ सकते थे वैसे ही गुलाबो मास्सी की आंखो और चेहरे के भाव भी पढ़ लेते थे।

    अब जब उनका वो चेहरा आंखों के सामने आता है तो महसूस होता है कि उस समय उन्के दिल को अपने किन्नर होने का कितना दुख होता होगा । शायद मातृत्व का कुछ पल का वो सुख वो सुखद अहसास उन्हें भावुक बना देता था । दुलाबो मास्सी की गोद में अपना बच्चा सौंपने में किसी को ज़रा भी संकोच नहीं होता था । और फिर बच्चे को गोद में लिए लिए ही वो सबसे नेग लेती । और फिर बच्चा अपने ढ़ेरों आशीर्वादों के साथ मां , दादी या नानी की झोली में डाल देतीं अगर उनसे कोभ कहता गुलाबो आज तो तू थोड़ा ही नाची तो वो कहती लो और नाच देती हूं।

    वो सबको खुश करके जातीं औऱ जाते जाते वो नेग में मिले चावलों के दानों से अपनी मुठ्टी भर लेतीं औऱ गातीं --- तेरे कोठे उत्ते मोर तेरे मुंडा जम्मे होर साल नूं फेर आंवां ( तेरी छत पर मोर है , तेरे एक बेटा और हो और अगले साल मैं फिर बधाई गाने आऊं ) वो कईं बार पूरे सुर ताल में अपनी मंडली के साथ यही लाईन गातीं जातीं और चावल के दाने घर की तरफ डालती जातीं । तब तक फैमिली प्लानिंग का रिवाज़ नहीं था । औऱ हंसते मुस्कुराते वो लौट जातीं।

    पहले वो बस में आया करती थीं फिर उन्होने एक मारति कार खरीद ली और उसी में आया करतीं । गुलाबो मास्सी ने हम सब को बड़े होते देखा , सबकी शादी होते और फिर बच्चे होते देखे । पढ लिख कर मैं नौकरी करने दिल्ली आ गयी मेरी बहन के बेटा हुआ तो वो खुशी के मारे पागल हो गयी । क्योंकि हमारा कोई भाई नहीं था खूभ नाच कर गयीं नेग लेकर गयीं । जब कभी मैं दिल्ली से घर जाती और वो किसी के यहां बधाई गाने आतीं तोमैं उनसे जाकर ज़रूर मिलती और वो खूब प्यार दुलार करतीं । आजकल जब किन्नरों की हरकतों के बारे में पढ़ती हूं तो मन दुखी हो जाता है।

    किन्नरों की कमाई भी अब कहां रही . हम दो हमारे दो और बच्चा एक ही अच्छा के नारे ने उनकी आमदन तो खत्म कर ही दी है बढ़ते शहरी करण में उनके इलाके भी शायद वैसे सुरक्षित नहीं रहे जैसे पहले हुआ करते थे । वसंत विहार में रहने वाले हमारे एक मित्र ने बताया कि उनकी विशाल कोठी में जब व्हाईट वाश हुआ तो इलाके के किन्नर नेग मांगने आगए कहने लगे आपका बेटा तो शादी करता नहीं फिर कोठी की पुताई का ही नेग दे दो।

    अब कुछ किन्नर अपने काम धंधे में भी लगने लगे हैं । और कुछ अपराध की दुनिया में चले गए हैं । लेकिन मेरे मन में तो बचपन से ही एक छवि है ममता मयी गुलाबो मास्सी की वो अब इस दुनिया में नहीं रहीं लेकिन उनकी याद मैं कभी भुला नहीं पाऊंगी । महानगरीय जीवन में किन्नर तो क्या अपने पड़ोसी से भी हम ऐसा नाता नही जोड़ पाते हैं जो हमारे पूरे मौहल्ले के छोटे से कस्बे का गुलाबो मास्सी के साथ था।

    2 टिप्‍पणियां:

    1. पहली बार आया हूं। आपका पोस्ट अच्छा लगा। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।

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    2. जीवन के तेजी से बदलते मूल्यों के साथ किन्नरों के जीवन शैली और व्यवहार में भी जबरदस्त परिवर्तन आया है |
      हमारे यहाँ तो राखी ,दीपावली ,दशहरा पर भी आ जाते है | अब न ही उनमे पहले जैसी प्रेम की भावना है न ही आशीर्वाद देने की मानसिकता |अब तो उनकी प्रवर्ती भी हिंसात्मक होती जा रही है |
      अच्छा संस्मरण |

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