शान्ति के नाम पर हम ढोंगी निकले!

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  • उपदेश सक्सेना
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  •               (उपदेश सक्सेना)
    भारत को शान्ति का महाद्वीप कहा जाता है, यह बात अपने मुंह मियाँ-मिट्ठू बनने जैसी है.शान्ति के इस टापू, गौतम-गांधी की इस जन्मस्थली को अब यहाँ-वहाँ के खून के धब्बों ने बदरंग कर दिया है.शान्ति की मामले में वैश्विक सूचंकाक में भारत का क्रम अब 128 तक जा पहुंचा है. हालांकि यह हमारे लिए शान्ति की बात हो सकती है कि हम आंतरिक संघर्ष, आतंकवाद और मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं से त्रस्त पाकिस्तान और श्रीलंका, भारत से शान्ति के मामले में पीछे हैं। चौथे वार्षिक जीपीआई सूचकांक के वैश्विक मंदी का असर संघर्षों की संख्या में बढ़ोतरी के रूप में दिखा है और बढ़ती हुई अस्थिरता को 2008 में शुरू मंदी से जोड़कर देखा जा रहा है। इस दौरान कई देशों में हत्याओं, हिंसक प्रदर्शनों और अपराधों में तेजी से बढ़ोतरी देखी गई। यह सूचकांक विश्व में शांति के माप का एक पैमाना है।
    इस रिपोर्ट को हर साल जीपीआई इकोनामिक्स एंड पीस की ओर से तैयार किया जाता है। इस रिपोर्ट के अनुसार संघर्ष की घटनाओं में बढ़ोतरी, गृह युध्दों तथा मानवाधिकार हनन में लोगों की मृत्यु के कारण दक्षिण एशिया में शांति में बड़ी कमी आई है। इस सूची के अनुसार भारत, श्रीलंका और पाकिस्तान प्रमुख देश हैं जहां शांति में कमी आई है। 2009 की सूची से तुलना करें तो तीन ब्रिक देशों रूस (143), भारत (128) और चीन (80) के यहां अमन चैन में बड़ी कमी देखी गई है जबकि ब्राजील (83) पूर्ववत स्थिर बना हुआ है। इस रिपोर्ट में न्यूजीलैंड को सबसे शांत देश बताया गया है, जबकि जापान तीसरे नम्बर पर है.शुरूआती दस शांत देशों में स्वीडन आखिरी क्रम पर है.इराक़, सोमालिया, अफगानिस्तान आखिरी तीन देश हैं.इस सूची में पाकिस्तान को आखिरी से पांचवा स्थान मिला है. हमारे लिए यह शर्म की बात होना चाहिए कि रवांडा, अंगोला, नेपाल जैसे छोटे देश हमारे मुक़ाबले ज़्यादा शांत हैं.

    2 टिप्‍पणियां:

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