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आँखों को दिल कि ज़ुबान कहा जाता है फ़िल्मी गीतों में भी आँखों की उपमा देकर कई अमर गीत रचे गए हैं. अब देखिये ना इन मोहतरमा को कहाँ से हँसी आ गई.वैसे मुकेश मानस ने आँखों पर एक रचना लिखी है जो इस प्रकार है.-
तेरी आँखें चँदा जैसी
मेरी आँखें काली रात
तेरी आँखों में हैं फूल
मेरी आँखों में सब धूल
तेरी आँखें दुनिया देखें
मेरी आँखें घूरा नापें
तेरी आँखें है हरषाई
मेरी आँखें हैं पथराई
तेरी आँखें पुण्य जमीन
मेरी आँखें नीच कमीन
तेरी आँखें वेद पुरान
मेरी आँखें शापित जान
तेरी आँखें तेरा जाप
मेरी आँखें मेरा पाप
तेरी आँखें पुण्य प्रसूत
मेरी आँखें बड़ी अछूत
किसी अच्छी रचना के लिए सबसे बड़ी ज़रूरत शब्दों का सटीक चयन होता है, कई लोगों के बारे में कहा जाता है कि उन्हें सरस्वती का वरदान मिला होता है, मगर इनके बारे में क्या कहा जाए जिन पर शब्द खुद झर रहे हों.
पेट्रोल की कीमतें लगातार बढती जा रही हैं, सो भविष्य के लिए स्ट्रेचलिमोजिन का यह नया अवतार कैसा लगेगा? दो किलो घास में पाँच किलोमीटर चलें साथ ही ब्याज़ में पायें 120 की स्पीड .ना ट्राफिक में चालान का भय ना पार्किंग की दिक्कत, सवारियां भी जितनी चाहो बैठा लो.
महंगाई इतनी बढ़ गई है कि एक काम से गुज़ारा नहीं हो सकता इसलिए कई लोग पार्ट टाइम में दूसरा काम भी करते हैं, ऐसे ही ब्यूटी का ध्यान भी रखना ज़रूरत है. एक सामयिक जोक है- एक मुर्गी राशन दूकान पर गई, बोली कि एक अंडा दे दो. दुकानदार बोला तुम खुद अंडा दे सकती हो तो खरीद क्यों रही हो, मुर्गी बोली-अब दो-चार रुपए के लिए अपना फिगर क्यों खराब किया जाए? ऐसा ही कुछ शायद इस भैंस ने सोचा होगा.
गायक मुकेश का गाया एक गीत काफी मशहूर है-...मुझे दोष ना देना जग वालों...अब यदि इस चूज़े ने अंडे के खोल में से ही ऊपर वाला भैंस का फोटो देख लिया हो तो वह तो अंडा फोड़कर बाहर आएगा ही और अंडा फूटने का दोष भी खुद के सर पर नहीं लेगा.
फ़ुटबाल का महासंग्राम कल से शुरू होने को है. ऐसे में सावन के अंधे को सब जगह हरा दिखने की तर्ज़ पर यदि यदि आपको भी ऐसा कुछ समझ आने लगे तो जान लें तमाम मैच देखना आपके लिए कितना ज़रूरी है? वैसे भी ऐसा नज़ारा क्रिकेट को लेकर देखने में काम ही आता है.
अंडे का फंडा इतना उलझा है कि बड़े-बड़े ज्ञानी-ध्यानी भी इसमें उलझ कर मौन हो चुके हैं.पहले मुर्गी आई या अंडा यह एकमात्र ऐसा सवाल है जिसका कोई जवाब अब तक नहीं ढूंढा जा सका है. अंडा शाकाहारी होता है या मांसहारी इस पर भी दुनिया दो भागों में बंटी हुई है. सरकार पहले कहती थी कि संडे हो या मंडे रोज़ खाओ अंडे, अब कहती है अंडे खाने के लिए कोई दिन प्रतिबंधित नहीं है, यानि हर सीज़न में अंडे खाए जा सकते हैं. मगर यदि अंडे की ट्रे ऐसी हो तो क्या आप नोश फरमाएंगे?
अरे वाह, सचमुच शानदार पोस्ट।
जवाब देंहटाएंमजा ही आ गया।
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ब्लॉगवाणी माहौल खराब कर रहा है?
bahut bdhiya
जवाब देंहटाएंpadh ke aur dekh ke maza aa gaya
जवाब देंहटाएंbadhiya prastuti....Murgi wala joke mere liye naya tha..achha laga.
जवाब देंहटाएंवैसे सड़क तो आ रही है उपदेश भाई क्योंकि ऊपर बैठा नीचे ही झांक रहा है। वो भी आना मतलब कूदना ही चाहता है कि नीचे की फोटो और कैप्शंस को उतरकर पढ़ ही ले।
जवाब देंहटाएंघनघोर मजेदार पोस्ट...
जवाब देंहटाएंरोचक पोस्ट!!
जवाब देंहटाएंवाह! उपदेश भाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार चित्र ढुंढकर लाए
ये गाय अंडे कब से देने लगी।
ग्लोबल वार्मिंग का असर है शायद।
आपकी चर्चा यहां भी है
मगर इनके बारे में क्या कहा जाए जिन पर शब्द खुद झर रहे हों.
जवाब देंहटाएंमजेदार पोस्ट.....
मजा ही आ गया.....