कोबाल्ट हादसा बानाम आतंकियों की रिहर्सल

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    हर पहलू पर बारीक नज़र जरूरी
    5 अप्रेल को चेताया था शीला दीक्षित ने
    (लिमटी खरे)

    देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में गत दिनों हुए कोबाल्ट हादसे ने अनेक शंकाओं कुशंकाओं को जन्म दे दिया है। सरकार भले ही इसे बहुत गम्भीरता से न ले रही हो पर इसे गम्भीरता से लेना आवश्यक है। इसके हर पहलू पर बारीक और तीख्ी नज़र रखने की आवश्यक्ता है। कुछ समाचार पत्र इसे आतंकियों का ट्रायल की संज्ञा देने से नहीं चूक रहे हैं। देश की मौजूदा आन्तरिक हालत को देखकर इस आशंका को निर्मूल नहीं माना जा सकता है। वैसे दिनचर्या में अनेक खतरनाक हादसे होते रहते हैं, पर इसका भान तभी हो पाता है जब यह भयानक और विकृत रूप में हमारे सामने आता है।
    दरअसल हिन्दुस्तान का सिस्टम बडा ही अजीब है। यहां कानून पर कानून बनते हैं, पर पालन सुनिश्चित नहीं होता। देश में बिना हेलमिट लगाए दो पहिया तो बिना सीट बेल्ट लगाए चार पहिया वाहन में बैठना या चलाना प्रतिबंधित है। देश के चुनिन्दा शहरों को छोड दिया जाए तो कमोबेश हर जगह इस कानून का उल्लंघन साफ तौर पर मिल जाएगा। इसी तरह सार्वजनिक स्थानों में धूम्रपान प्रतिबंधित होने के बावजूद भी सरेआम बीडी सिगरेट के छल्ले उडते नज़र आते हैं। इतना ही नहीं 18 साल से कम उम्र के बच्चों को बीडी सिगरेट शराब आदि का विक्रय न करने की ताकीद की गई है, पर घोषित अघोषित मयखानों में छोटू, मुन्ना, पप्पू, कल्लन आदि नाम के बच्चे बाकायदा साकी के रोल में नज़र आते हैं।

    दिल्ली के मायापुरी इलाके में भी यही हुआ। रेडियोधर्मिता से लोगों को दूर रखने के लिए रेडियोधर्मी पदार्थों के निष्पादन के लिए अलग व्यवस्था और कडे नियम है, पर वे सब हाथी के मंहगे बिकने वाले दान्तों की तरह ही हैं। अभी स्पष्ट नहीं हो सका है कि आखिर उसमें क्या था जिससे पीडितों का शरीर काला पडने लगा। बताते हैं कि उसमें कोबाल्ट 60 था, जिसका उपयोग केंसर के इलाज के लिए किया जाता है। सवाल यह उठता है कि आखिर यह कोबाल्ट उस कबाड की दुकान तक पहुंचा कैसे।

    दिल्ली वैसे भी बहुत ही संवेदनशील शहर है, यहां पुलिस हर पल चौकस रहती है, बावजूद इसके इस तरह के हादसे क्या चौकसी पर प्रश्नचिन्ह लगाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। अकबर बीरबल की एक कहानी का जिकर यहां लाजिमी होगा। एक मर्तबा अकबर ने दरबारियों से कहा कि उन्होंने शाही बाग की सुरक्षा चाक चौबन्द कर दी है, वहां परिन्दा भी पर नहीं मार सकता। वहां से कोई अगर चोरी कर कुछ ले जाए तो बादशाह सलामत उसे ईनाम से नवाजेंगे। सारे दरबारी एक के बाद जोर अजमाइश करते रहे। जो भी चीज बाहर जाती उसको द्वारपाल अपनी पंजी में दर्ज कर देता। बीरबल के कहने पर एक साधारण आदमी बाग का कचरा बीनकर उसे बाहर ले जाता रहा। पंजी में कचरे का इन्द्राज होता रहा। सप्ताह बीतने पर बादशाह सलामत से बीरबल ने कहा कि उसने बाग से काफी कुछ चुरा लिया है। बादशाह चौंक गए। रजिस्टर तलब हुआ। बीरबल को बताया कि वहां से कुछ भी चोरी नहीं हुआ सब कुछ तो इसमें दर्ज है। बीरबल बोले बादशाह सलामत जान की सलामती हो तो अर्ज करूं। बादशाह ने इजाजत दी। बीरबल बोले हुजुर सात दिन में दो मर्तबा कचरा बाहर आया पर कचरे की ट्राली वापस नहीं गई। द्वारपाल ने कचरे की एंट्री की पर कचरा किसमें जा रहा था, यह नहीं लिखा सो चौदह कचरे की ट्रालिंया मैने चुरवा दीं। बादशाह बहुत प्रसन्न हुए और बीरबल को ढेर सारा ईनाम दिया। यही देश में हो रहा है कि सब उल्टा पुल्टा हो रहा है और कोई देख भी नहीं पा रहा है।

    दिल्ली में जिस कोबाल्ट 60 के होने की बात की जा रही है, उसकी एक इकाई में 400 क्यूरी (रेडीएशन मापने की इकाई) होती है। इससे गामा किरणें निकलती हैं, और इसके लक्षण पांच से पन्द्रह मिनिट के अन्दर ही समझ में आने लगते हैं। अगर आरडी 200 से 500 हो तो एक सप्ताह में पीडित की मौत और 500 से 700 हो तो कुछ ही दिनों में मौत को गले लगा सकता है। अगर यह क्षमता 1000 तक पहुंच जाए तो दो दिन में ही काल कलवित कर सकता है इंसान को। वैसे रेडियोएक्टिविटी के प्रमुख स्त्रोत हैं, कोबाल्ट, रेडियम, यूरेनियम, प्लूटोनियम, आसेZनिक और पारा अर्थात मरकरी। इनमें से प्लूटोनियम, यूरेनियम, आसेZनिक और रेडियम का उपयोग परमाणु हथियार में होता है, अत: ये खुले बाजार में उपलब्ध नहीं हैं। मरकरी भी प्रतिबंधित हो चुका है पर कोबाल्ट का सभी देशों में धडल्ले से उपयोग हो रहा है। कोबाल्ट का प्रयोग रेडियोथेरिपी के जरिए कैंसर के इलाज में, फुड उद्योग में प्रोसेसिंग के दौरान कीटाणु मारने में और उद्योगों में पाईप की इंटेंसिटी मापने के लिए किया जाता है।

    कोबाल्ट 60 शरीर के संपर्क में आने से स्वास्थ्य पर इसका घातक असर होता है। वैसे कोबाल्ट 60 के मानव के शरीर के संपर्क में आने का सबसे बडा खतरा मेडिकल के टेस्ट और इसके इलाज के वक्त ही होता है। मेडिकल या औद्योगिक रेडिएशन के स्त्रोतों के गलत इस्तेमाल या रिसायकलिंग के दौरान जरा सी लापरवाही भी बहुत खतरनाक ही हो सकती है। यह धूल के कण, पानी या खाद्य समािग्रयों के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर सकता है। कोबाल्ट 60 की सबसे बडी खासियत यह है कि यह तत्काल ही असर दिखाना आरम्भ कर देता है। 

    यह खून और कोशिकाओं में अपनी पहुंच बनाकर लीवर, किडनी और हडि्डयों को अपनी जद में ले लेता है। इसका प्रभाव होने पर मरीज को उल्टी आना, दस्त होना, कभी कभी दस्त में खून का जाना, लगातार खून बहना, बालों का तेजी से गुच्छे के रूप में झडना, नाखूनों और त्वाचा भी काली पडने लगती है। कोबाल्ट 60 मानव शरीर के सिर की धमनियों में खराबी पैदा कर सकता है। मरीज को दौरा भी पड सकता है। हृदय की छोटी धमनियों में विसंगति पैदा कर अचानक दिल का दौरा पडवा सकता है। इसका सबसे पहले और तेज प्रभाव पेट में आन्त पर ही पडता है। इससे बोन मेरो और लाल और श्वेत रक्त कोशिकाओं में तेजी से कमी आती है। इससे प्रजनन अंग बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो सकते हैं, इससे स्थाई नपुंसकता तक आने की संभावना रहती है। कोबाल्ट 60 से जुडी प्रमुख घटनाओं में 1992 में चीन में इसके रेडिएशन से तीन लोग, 1996 में कोस्टिारिका में सात, 2000 में थईलेण्ड में 3 असैा इसी साल पनामा में पांच लोग मारे जा चुके हैं।

    यहां मजे की बात यह है कि इसी माह पांच अप्रेल को ही दिल्ली की सत्ता पर तीसरी बार काबिज हुईं श्रीमति शीला दीक्षित ने दिल्ली सचिवालय में एक प्रोग्राम में शिरकत करते हुए 16 ई कचरा संकलन बाक्स और 42 पेपर रिसाईिक्लंग मशीनों का वितरण किया था। इसी दौरान उन्होंने दिल्ली वासियों को ताकीद करते हुए कहा था कि अपना ई कचरा कबाडी को न बेचें, अगर यह पाया गया तो पांच साल की कैद और एक लाख रूपए के जुर्माने का प्रावधान किया जा रहा है। शीला दीक्षित ने कहा ही था और चार दिनों बाद उनकी आशंका सच्चाई में तब्दील हो गई।

    वैसे इस मामले में भी गम्भीरता से विचार आवश्यक है कि कहीं यह कोबाल्ट 60 किसी षणयन्त्र के तहत मायापुरी की कबाड की दुकान में पहुंचाया गया हो। मीडिया की इस आशंका को सिरे से खारिज करना उचित नहीं होगा कि आतंक फैलाने के लिए यह दहशतगर्दों का ट्रायल तो नहीं। अगर एसा है तो आने वाले समय में आतंक का पर्याय बन चुके आतंकवादियों से निपटना देश की आन्तरिक सुरक्षा सम्भाले जवानों के लिए बहुत बडी चुनौती ही साबित होने वाली है।


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    3 टिप्‍पणियां:

    1. ऊपर से सरकार का न्यूक्लियर सेफ्टी बिल में मात्र ५०० करोड़ का प्रावधान..

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    2. किन्नरों से कुछ कर गुजरने की उम्मीद लगाए बैठे हैं आप... भी बड़े भोले हैं , ये हादसे तो अब हमारी नियति बन चुके हैं।

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    3. NICE.

      आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी की गई है-

      http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_6838.html

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