क्या फागुन की फगुनाई है।
हर तरफ प्रकृति बौराई है।।
संपूर्ण में सृष्टि मादकता -
हो रही फिरी सप्लाई है।।1
धरती पर नूतन वर्दी है।
ख़ामोश हो गई सर्दी है।।
भौरों की देखो खाट खड़ी-
कलियों में गुण्डागर्दी है।।2
एनीमल करते ताक - झांक।
चल रहा वनों में कैटवाक।।
नेचर का देखो फैशन शो-
माडलिंग कर रहे हैं पिकाक।।3
मनहूसी मटियामेट लगे।
खच्चर भी अपटूडेट लगे।।
फागुन में काला कौआ भी-
सीनियर एडवोकेट लगे।।4
उस सज्जन से अब आप मिलो।
एक ही टाँग पर जाता सो ।।
पहने रहता है धवल कोट-
वह बगुला अथवा सी0एम0ओ0।।5
इस ऋतु में नित चौराहों पर।
पैंनाता सीघों को आकर।।
उसको मत कहिए साँड आप-
फागुन में वही पुलिस अफसर।।6
गालों में भरे गिलौरे हैं।
पड़ते इन पर ‘लव’ दौरे हैं।।
देखो तो इनका उभय रूप-
छिन में कवि, छिन में भौंरे हैं।।7
जय हो कविता कालिंदी की।
जय रंग - रंगीली बिंदी की।।
मेकॅप में वाह तितलियाँ भी-
लगतीं कवयित्री हिंदी की।8
ये मौसम की अंगड़ाई है।
मक्खी तक बटरफ्लाई है ।।
घोषणा कर रहे गधे भी सुनो-
इंसान हमारा भाई है।।9
सचलभाष-09336089753
वेरी गुड कविता।
जवाब देंहटाएंहैप्पी होली।
बहुत सुन्दर प्रकृति से जुड़ी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
खुशी की हो बौछार,चलो हम होली खेलें.
आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.
-समीर लाल ’समीर’
आपका एडवोकेट, सी.एम.ओ. और मॉ़डेलिंग करता पीकॉक बहुत पसंद आये ।
जवाब देंहटाएंहोली मुबारक ।
बहुत शानदार कविता है मन फड़क उठा.
जवाब देंहटाएं