जीवन सूत्र

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  • डॉ० डंडा लखनवी
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    डॉ०  तुकाराम वर्मा

    गुण-अवगुण  से कीजिए,  भले  बुरे का  भेद।
    अंध - भक्त जाने नहीं, क्या है स्याह-सफेद।।

    संत  पुरुष निज तेज से, करे तिमिर का नाश।
    अंतिम  क्षण तक वे भरें, जग में प्रभा-प्रकाश।।

    अग्नि, भूमि, जल, वायु, नभ, कहते सत्य प्रत्यक्ष।
    मानव     सब   समकक्ष हैं, सब  हो सकते  दक्ष।।

    भूलें  हो  सकतीं मगर, जिन्हें  सत्य  स्वीकार।
    वे निज त्रुटि को समझ कर, करते स्वयं सुधार।।

    जीवन   के  भूषण  यही, इन्हें  करे  स्वीकार।
    सत्य,  अहिंसा,  शिष्टता, शील, स्नेह सहकार।।

    कुण्ठाओं  की   परिधि  में, कोई   रचनाकार।
    क्या उदात्त अभिव्यक्ति को, दे सकता आकार।।

    कवि का जीवन वृक्ष-सा, जगहित में अभियान।
    हरे   प्रदूषण  अरु करे, प्राणवायु   का   दान।।

    उसे  कभी  मत  मानना, तुम साहित्यिक छंद।
    जिसको सुनकर व्यक्ति की, तर्कशक्ति हो मंद।।

    जिसको  पढ़ने  से बने, पाठक  स्वयं  समर्थ।
    उस कविता को जानिए, है  शाश्वत-अव्यर्थ।।



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    1 टिप्पणी:

    आपके आने के लिए धन्यवाद
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