‘नुक्कड’ ब्लाग के शुरूआती दौर में ही मैने दो तीन आलेख प्रकाशित किए थे , उसके बाद व्यस्तता की वजह से सिर्फ वहीं नहीं , अन्य कई जगहों पर निमंत्रण के बावजूद भी मैं कुछ नहीं लिख पा रही थी । 17 अगस्त की शाम अचानक डायरी उलटते हुए अपने द्वारा लिखे दो दृश्यों पर नजर गयी और मैने इसे नुक्कड पर प्रकाशित करने का निर्णय किया। ‘नसीब अपना अपना’शीर्षक के अंतर्गत लिखकर मैने इन दोनो दृश्यों को नुक्कड पर पोस्ट कर दिया। थोडी ही देर में यह पोस्ट ब्लागवाणी और चिट्ठाजगत पर दिखने लगा। मैं प्रतिदिन शाम को अपना पोस्ट डालने के बाद कंप्यूटर की शब्दावली पर एक पोस्ट किया करती हूं। जब साढे सात बजे मैं उसे पोस्ट करने के बाद ब्लागवाणी और चिट्ठा जगत पर आयी , तो कंप्यूटर की शब्दावली वाली पोस्ट तो इनमें दिख गयी , पर नुक्कड वाली पोस्ट नहीं दिखी। अविनाश वाचस्पति जी तो आनलाइन थे नहीं कि मैं उनसे बात कर पाती , मैंने नुक्कड को खोला। वहां जाने पर पता चला कि अभी अभी कप्तान जी द्वारा एक कार्टून पोस्ट किया गया है। उनका पोस्ट दोनो एग्रीगेटर में दिख रहा था और 24 घंटे के अंदर पोस्ट किए गए होने के कारण मेरा पोस्ट भी ब्लागवाणी में उसके नीचे दिखाई पड रहा था। पर आठ बजे के आसपास शमा जी के द्वारा ‘ये मैने क्या सुना’ को पोस्ट करने के बाद कप्तान जी का कार्टून तो नीचे दिखने लगा , पर मैं एग्रीगेटरों से ही आउट हो गयी। दो घंटों में मुश्किल से दस लोगों ने भी मेरे आलेख को नहीं पढा होगा। वैसे तो यह कहना छोटी मुंह बडी बात ही होगी , पर इनलोगों को पोस्ट करते समय पिछले पोस्ट के समय को अवश्य देखना चाहिए था। एक पोस्ट को एग्रीगेटर पर चार छह घंटे तो रहने ही चाहिए। यदि पोस्ट करना जरूरी भी था , तो इनलोगों को कम से कम मेरे पोस्ट के पसंद पर ही चटका लगा देना था , कम से कम मेरी पोस्ट को ब्लागवाणी के साइड में भी जगह मिल जाती। वहां से उसे पढने का मौका ही नहीं दिया जाए , तो फिर लिखने का क्या फायदा ? फिर मैने कुछ आनलाइन मित्रों से इस बारे में संपर्क किया , तो उन्होने पसंद पर चटका लगाकर मेरे ब्लाग को ब्लागवाणी के साइड में स्थान दिलाया। वैसे वहां से कोई भी पोस्ट उतनी नहीं पढी जाती , जितना ब्लागवाणी के पहले पेज से । खैर , इससे उन लेखकों को तो अधिक अंतर नहीं पडता , जो अपने एक ही आलेख को कई ब्लोगों पर पोस्ट कर दिया करते हें , कहीं न कहीं से तो उनके पोस्टों को पढने के लिए पाठक मिल जाएंगे , पर मुझ जैसे लेखकों को दिक्कत हो जाती है , क्यूंकि मैं एक लेख को एक ही स्थान पर पोस्ट किया करती हूं। इंटरनेट में एक ही पोस्ट को कई जगहों पर प्रकाशित करने से क्या फायदा ?
फिर मुझे अचानक वो बात याद आ गयी , जब जे सी फिलिप जी से निमंत्रण पाने के बाद मैने एक आलेख लिखा था और झटपट ‘मां’ ब्लाग में प्रकाशित कर दिया था। प्रकाशन के एक घंटे के बाद मुझे ईमेल मिला कि उन्होने मेरा वह पोस्ट हटा दिया है और वे इसे कल लगाएंगे। बाद में उन्होने कारण बताया कि सारे सदस्य पोस्ट को लिखकर उसे सेव कर सकते हें , पर प्रकाशित वे स्वयं करते हैं । एक दिन के अंतराल में एक लेख को प्रकाशित करने से सभी लेखों को सभी लोगों द्वारा पढने की सुविधा हो जाती है। इसी तरह यदि अधिक आलेख मिलें , तो उन्हें छह छह घंटे के अंतराल पर या चार चार घंटे के अंतराल पर प्रकाशित किया जा सकता है। साहित्य शिल्पी में आलेखों के प्रकाशन का शीर्षक , लेखक और समय निश्चित करके इसे स्क्राल किया जाता है और समयानुयार प्रकाशित कर दिया जाता है। यदि मोडरेटर के पास पर्याप्त समय हो , तो प्रकाशन का जिम्मा उन्हें ही लेना चाहिए , बाकी सभी लोगों को अपने आलेख सेव कर छोड देने चाहिए। सुशील जी ने भी एक ब्लाग आरंभ किया है ‘स्मृति दीर्घा’ , धडाधड इतने लेखकों ने उसमें अपनी स्मृतियां पोस्ट की कि समझ में नहीं आया कि क्या पढूं , क्या नहीं ? कुछ को पढा , कुछ को छोडा , बाद में पढूंगी , पर टलता रहा । देखती हूं , उन्हें पढने का कब मौका मिलता है ? और ब्लागवाणी पर सामने आ जाए , तो कभी शीर्षक आकर्षित कर लेती है , कभी लेखक का नाम और कभी ऐसे भी कई आलेखों पर नजर डाल लेते हैं। यदि मोडरेटर के पास समय की कमी हो , तो बाकी लोगों को भी प्रकाशन का अधिकार दिया जाना चाहिए , पर उनके लिए कुछ नियम होने चाहिए । जैसे कि वे पहले प्रकाशित आलेख का समय देख लें , यदि वह एग्रीगेटरों के पहले पन्ने पर है , तो उन्हें इंतजार करना चाहिए । चार छह घंटे में कोई आलेख पहले पन्ने से हट ही जाता है , तब वे अपने पोस्ट प्रकाशित कर सकते हैं । इसके साथ ही यदि कोई आलेख हमें पसंद आए , तो पसंद पर चटका लगाना भी हमारा पाठकीय दायित्व है , ताकि वह ब्लागवाणी के साइड में भी स्थान ले पाए और अधिक से अधिक पाठक उसे पढ सके ।
सिर्फ सामूहिक ब्लोगों में ही नहीं , व्यक्तिगत ब्लोगों में भी आलेखों के प्रकाशन करते वक्त कई बातों का ध्यान रखना चाहिए । कुछ लोग ब्लाग बनाते ही धडाधड पोस्ट करना शुरू कर देते हैं । यदि आप ब्लाग जगत में नए हैं , आप अच्छा लिखते हैं या बुरा , इससे कोई अंतर नहीं पडता । आप चाहते हैं कि आपके सारे आलेख अधिक से अधिक लोगों द्वारा पढे जाएं , तो कुछ अंतराल देकर लिखना आवश्यक होता है । मैं अपने ब्लोग पर भी एक दिन के यानि 48 घंटों के अंतराल पर पोस्ट किया करती हूं । कोई एग्रीगेटर हो या किसी ब्लोग के पोस्ट को दिखाने वाली कोई दूसरी जगह , आपके पोस्ट पर छपी अंतिम सामग्री ही वहां दिखाई पडती है। 48 घंटो तक पाठकों को पढने का समय मिल जाता है और नए लोगों के जुडने की संभावना अधिक बनती है । ब्लाग में जाने के बाद आपके पूर्व प्रकाशित आलेखों को पढने की संभावना सिर्फ उन पाठकों से ही की जा सकती है , जो आपका फैन बन चुका हो। इसलिए आप अपने हर पोस्टों के मध्य अंतराल रखें , यदि आपके पास लेखन के लिए सामग्री अधिक हो , तो ब्लाग एक से अधिक बना लें। यदि अपने लेखन के दम पर आप इस ब्लाग जगत में जम चुके हैं , तो फिर जितनी पोस्ट लिखें , जिस समय प्रकाशित कर दें , आपको तो लोग पढेंगे ही।
संगीता जी मैं आपकी बात का एक सौ एक प्रतिशत समर्थन करता हूं। यह बात मेरे मन में भी बहुत दिन से थी। नुक्कड़ जैसे चर्चित और लोकप्रिय ब्लाग में कई बार हम इसलिए पीछे रह जाते हैं कि हमारी पोस्ट को पढ़ने के लिए पर्याप्त समय ह नहीं मिलता। स्मृति दीर्घा में भी यही समस्या है। आपने कुछ व्यवहारिक सुझाव दिए हैं। मेरा अविनाश जी और सुशील जी से अनुरोध है कि कृपया इस पर विचार करें और कोई सकारात्मक रास्ता निकालें।
जवाब देंहटाएंराजेश उत्साही जी ,
जवाब देंहटाएंपरसों तो मेरा आलेख एक घंटे एग्रीगेटर में दिखाई भी पडा , पर आज तो वह नजर भी नहीं आया , ढूंढती रह गयी । मेरे पोस्ट करने के तुरंत बाद एक आलेख पोस्ट कर दिया गया।
संगीता जी क्षमा प्रार्थी हूँ...आपके विचारों से सहमत भी हूँ..आइन्दा ये गलती नही होगी, इतना भरोसा दिला सकती हूँ..!
जवाब देंहटाएंसही सलाह।
जवाब देंहटाएं( Treasurer-S. T. )
सही सलाह है. हम तो अपने ब्लॉग से हफ्ते में दो ही पोस्ट करते हैं ३ दिन के गैप से.
जवाब देंहटाएंपाठकों को आत्मसात करने का एवं उनके द्वारा पोस्ट सामग्री को पढ़ने का समय देना आवश्यक है.
सुन्दर सुझाव से सहमत!!
आपके सुझावों में कुछ और सुझाव शामिल किये जा सकते है । प्रत्येक ब्लॉगर को एक टाइम-टेबल बना लेना चाहिये । साथ ही पोस्ट मे स्तर का ध्यान रखना भी ज़रूरी है । इसलिये कि पत्रकारिता और साहित्य जगत के लोगों का ध्यान भी अब इस ओर आकर्षित हो रहा है अभी "कथादेश" के मीडिया विशेषांक में ब्लोग साहित्य पर सुभाष धूलिया ने अपने लेख "विखंडित समाज विखंडित मीडिया" मे अपने सकारात्मक विचार रखे हैं। हर ब्लॉगर को यह लेख पढ़ना चाहिये । केवल अपना नाम एग्रीगेटर पर दिखता रहे और लोग टिप्पणी करते रहे यह मोह ठीक नहीं है । लोकप्रियता स्थायी नहीं होती आपके द्वारा लिखा गया साहित्य स्थायी होता है । हमारे लोकप्रिय ब्लॉगर समीर लाल जी का उदाहरण लीजिये वे सप्ताह में केवल दो बार पोस्ट करते है फिर भी सर्वाधिक प्रिय हैं ( प्रिय और लोकप्रिय मे अंतर पर ध्यान दें ) धन्यवाद । आप भी ऐसे ही इन एग्रीगेतरों के कान उमेठते रहिये .
जवाब देंहटाएंसंगीता जी...आपका कहना बिलकुल सही है...लेकिन मेरे हिसाब से पोस्ट के प्रकाशन का जिम्मा मोडरेटर को सम्भालना चाहिए क्योंकि बाकी सभी लेखक तो यही चाहेंगे कि वो लिखें और उनका लिखा तुरंत ही दिखाई पड़ना शुरू हो जाए।
जवाब देंहटाएंये सही है कि हमें एक पोस्ट और दूसरी पोस्ट के बीच में कम से कम छै घंटे का अन्तराल अवश्य रखना चाहिए और अगर हम में से कोई सुधी लेखक इसे अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझ पिछली पोस्ट के प्रकाशित होने के समय का ध्यान रखता भी है तो इस बात की क्या गारैंटी है कि तब तक कोई दूसरा लेखक अपनी पोस्ट के साथ धावा नहीं बोल देगा?
राजीव तनेजा जी ,
जवाब देंहटाएंआज की घटना को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि माडरेटर को ही प्रकाशन का काम संभालना चाहिए .. क्यूंकि आज जब मैने ब्लोगर खोला तो वहां पर कल की ही पोस्ट थी .. राजेश उत्साही जी भी उसी समय ब्लागर पर आ गए .. हम दोनों ने लगभग एक साथ पोस्ट किया .. मतलब कि राजेश उत्साही जी ने पहले पोस्ट किया और मैने बाद में .. पर ब्लागवाणी में मेरा पहले आया और उनका बाद में .. ऐसा कन्फ्यूजन तो ब्लोगरों के मध्य हो ही सकता है .. इसलिए प्रकाशन का जिम्मा एक के पास ही रहना चाहिए .. जिस दिन वो व्यस्त रहें किसी दूसरे को जिम्मेवारी दे दें।
जब में ब्लॉग्गिंग में कदम रखा था तो अपने ही ब्लॉग पर लगातार पोस्टें लिखने की भूल की थी..मगर फिर जल्दी ही समझ गया..जरूरत और रूचि के हिसाब से नए ब्लोग्स बना लिए...कम्युनिटी ब्लोग्स में इस तरह की दिक्कत आती है...और जैसा की संगीता जी ने कहा ..लेखक को दुःख तो होता ही है ..विशेष कर ऐसे कारणों से यदि आलेख दरकिनार हो जाए..मैंने तो इसी कारण से सुझाव भी रखा था की ..कुछ और अग्रीगेतार्स होने चाहिए..बिलकुल अलग स्वरुप के साथ..हाँ कुछ हद तक ब्लॉग स्वामी इस समस्या को सुलझा सकते हैं..मगर फिर भी सब कुछ उनपर तो नहीं छोडा जा सकता ..उनकी भी अपनी व्यस्तताएं हो सकती हैं..अन्य ब्लोग्स , जिनके नाम संगीता जी ने सुझाए हैं ..उनके द्वारा अपने गए रास्ते को यहाँ भी अपनाया जा सकता है ..मगर इसका हल तो ढूंढा ही जाना चाहिए .
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा संगीता पुरी जी ने। मुझे तो आजिज आकर स्मृति-दीर्घा पर एक स्क्रॉल बार बनाकर सूचना लगानी पड़ी कि एक दिन में एक ही पोस्ट किया जाय तो उत्तम।
जवाब देंहटाएंसही तो कह रही है..कृप्या ध्यान दें। मैं तो आलस की वजह से आपकी सलाह का शुरु से ही पालन कर रही हूं...बाद में लगा कि पोस्ट पढने का वक्त भी तो मिलना चाहिए।
जवाब देंहटाएंसंगीता जी आपका कहना सही है.
जवाब देंहटाएंसंगीता जी एक आवश्यक मुद्दा उठाने के लिए एक बार फिर से धन्यवाद। देखिए इस समस्या का सबसे अच्छा उदाहरण तो मेरी ही पोस्ट बन गई। मेरे बाद दो और पोस्ट आ गईं,पर मेरी पोस्ट को टिप्पणी करने वाला पाठक अब तक नहीं मिला। वैसे बहुत संभव है कि पढ़ा इसे बहुतों ने होगा,पर हो सकता है टिप्पणी न की हो। या क्या इसका अर्थ भी निकाला जा सकता है कि इस तरह के विषयों में हमारे साथियों की रूचि नहीं है।
जवाब देंहटाएंबहरहाल असल मुद्दे को किसी सकारात्मक हल तक ले जाना जरूरी है।
अपने आलेख में जानकारी तो आप अच्छी लेकर आए थे .. इस लेख पर नजर बहुतों की पडी होगी .. क्यूंकि यह पोस्ट ब्लोगवाणी पर काफी देर तक रही .. पर चूंकि यह एक खास वर्ग से संबंधित है .. इसलिए पढा बहुतों ने न भी हो .. या फिर जिन्होने पढा वे भी टिप्पणी न कर पाए हों .. या फिर आपका कहना माना जा सकता है कि इस तरह के विषयों में हमारे साथियों की रूचि नहीं है .. टिप्पणी नहीं मिलने से तो लेख की सार्थकता के प्रति थोडा संदेह हो जाता है .. यदि किसी ने 'जानकारी के लिए आभार' भी लिख दिया होता .. तो इस प्रकार के आलेख लिखने में उर्जा लगानें में उत्साह रहता .. यही बात ब्लागर नहीं समझ पाते हैं .. और अधिक टिप्पणी करनेवालों के बारे में गलत राय बनाते हैं .. ऐसा कहकर कि वे सस्ती लोकप्रियता के लिए यह काम कर रहे हैं !!
जवाब देंहटाएंइस विषय में संवाद अच्छा रहा.जिस प्रकार एक पत्रिका का संपादक अपना दयित्वनिभाता है उसी तरह ब्लागर को नियंत्रण रखना चाहिए .पोस्ट और विशेष कर अच्छी पोस्ट को एक सप्ताह तक रहने का अवसर मिले तो उपयूक्त रहेगा.
जवाब देंहटाएंU have rightly pointed issues because i am new so can"t say much
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