कारगिल के शहीदों को प्रणाम ' आंसू जो कविता बन गये '

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  • पी के शर्मा
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  • मातृभूमि की रक्षा से देह के अवसान तक
    आओ मेरे साथ चलो तुम सीमा से शमशान तक
    सोये हैं कुछ शेर यहां पर धीरे धीरे आना
    आंसू दो टपका देता पर ताली नहीं बजाना

    शहीद की शवयात्रा देख कर मुझमें भाव जगे

    चाहता हूं तुझको तेरे नाम से पुकार लूं
    ए शहीद आ तेरी मैं आरती उतार लूं

    बारंबार पिटा सीमा पर भूल गया औकात को
    चोरी चोरी लगा नोचने भारत के जज्‍बात को
    धूल धूसरित कर डाला इस चोरों जैसी चाल को
    मार पीट कर दूर भगाया उग्र हुए श्रंगाल को
    इन गीदड़ों को रौंद कर जिस जगह पे तू मरा
    मैं चूम लूं दुलार से पूजनीय वो धरा
    दीप यादों के जलाऊं काम सारे छोड़कर
    चाहता हूं भावनाएं तेरे लिए वार दूं
    ए शहीद आ तेरी मैं आरती उतार लूं

    सद्भावना की ओट में शत्रु ने छद्म किया
    तूने अपने प्राण दे ध्‍वस्‍त वो कदम किया
    नाम के शरीफ थे जब फौज थी बदमाश उनकी
    इसलिए तो सड़ गयी कारगिल में लाश उनकी
    सूरत भी न देखी उनकी उनके ही परिवार ने
    कफन दिया न दफन किया पाक की सरकार ने
    लौट आया शान से तू तिरंगा ओढ़कर
    चाहता हूं प्‍यार से तेरी राह को बुहार दूं
    ए शहीद आ तेरी मैं आरती उतार लूं

    शहीद की मां को प्रणाम

    कर गयी पैदा तुझे उस कोख का एहसान है
    सैनिकों के रक्‍त से आबाद हिन्‍दुस्‍तान है
    तिलक किया मस्‍तक चूमा बोली ये ले कफन तुम्‍हारा
    मैं मां हूं पर बाद में, पहले बेटा वतन तुम्‍हारा
    धन्‍य है मैया तुम्‍हारी भेंट में बलिदान में
    झुक गया है देश उसके दूध के सम्‍मान में
    दे दिया है लाल जिसने पुत्र मोह छोड़कर
    चाहता हूं आंसुओं से पांव वो पखार दूं
    ए शहीद आ तेरी मैं आरती उतार लूं

    शहीद की पत्‍नी को सम्‍मान

    पाक की नापाक जिद में जंग खूनी हो गयी
    न जाने कितनी नारियों की मांग सूनी हो गयी
    हो गयी खामोश उसकी लापता मुस्‍कान है
    जानती है उम्र भर जीवन तेरा सुनसान है
    गर्व से फिर भी कहा है देख कर ताबूत तेरा
    देश की रक्षा करेगा देखना अब पूत मेरा
    कर लिए हैं हाथ सूने चूडि़यों को तोड़कर
    वंदना के योग्‍य देवी को सदा सत्‍कार दूं
    ए शहीद आ तेरी मैं आरती उतार लूं

    शहीद के पिता को प्रणाम

    लाडले का शव उठा बूढ़ा चला शमशान को
    चार क्‍या सौ सौ लगेंगे चांद उसकी शान को
    कांपते हाथों ने हिम्‍मत से सजाई जब चिता
    चक्षुओं से अक्ष बोले धन्‍य हैं ऐसे पिता
    देश पर बेटा निछावर शव समर्पित आग को
    हम नमन करते हैं उनके, देश से अनुराग को
    स्‍वर्ग में पहले गया बेटा पिता को छोड़कर
    इस पिता के चरण छू आशीष लूं और प्‍यार लूं
    ए शहीद आ तेरी मैं आरती उतार लूं

    शहीद के बालकों को प्‍यार दुलार

    कौन दिलासा देगा नन्‍हीं बेटी नन्‍हें बेटे को
    भोले बालक देख रहे हैं मौन चिता पर लेटे को
    क्‍या देखें और क्‍या न देखें बालक खोये खोये से
    उठते नहीं जगाने से ये पापा सोये सोये से
    हैं अनभिज्ञ विकट संकट से आपसे में बतियाते हैं
    अपने मन के भावों को प्रकट नहीं कर पाते हैं
    उड़कर जाऊं दुश्‍मन के घर उसकी बांह मरोड़कर
    बिना नमक के कच्‍चा खाकर लंबी एक डकार लूं
    ए शहीद आ तेरी मैं आरती उतार लूं

    शहीद की बहन को स्‍नेह

    सावन के अंतिम दिवस ये वेदना सहनी पड़ेगी
    जो कसक है आज की हर साल ही सहनी पडे़गी
    ढूंढ़ती तेरी कलाई को धधकती आग में
    न रहा अब प्‍यार भैया का बहन के भाग में
    किस तरह बांधे ये राखी तेरी सुलगती राख में
    न बचा आंसू कोई उस लाडली की आंख में
    ज्‍यों निकल जाए कोई नाराज हो घर छोड़कर
    चाहता हूं भाई बन मैं उसे पुचकार दूं
    ए शहीद आ तेरी मैं आरती उतार लूं

    पाक को चेतावनी

    विध्‍वंस के बातें न कर बेवजह पिट जायेगा
    तू मिटेगा साथ तेरा वंश भी मिट जायेगा
    कुछ सीख ले इंसानियत तेरा विश्‍व में सम्‍मान हो
    हम नहीं चाहते तुम्‍हारा नाम कब्रिस्‍तान हो
    चेतावनी है हमारी छोड़ आदत आसुरी
    न रहेगा बांस फिर और न बजेगी बांसुरी
    उड़ चली अग्‍नि अगर आवास अपना छोड़कर
    चाहता हूं पाक को मैं जरा ललकार दूं
    ए शहीद आ तेरी मैं आरती उतार लूं

    8 टिप्‍पणियां:

    1. KARGIL KE SHAHIDON KO MERAA BHI PRANAAM.
      JHALLI-KALAM-SE
      JHALLEVICHAR.BLOGSPOT.COM
      ANGREZI-VICHAR.BLOGSPOT.COM

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    2. चंदन जी आपकी कविता पढ कर आँखें नम हो गयी धन्य हैं वो माँ बाप बच्छे पत्नियाँ औ बहन भाई उन सब के प्रति अपनी भी संवेदनाउएं व्यक्त करती हूँ और अमर शहीदों को भावभी्नी श्रधाँजली एवं नमन बहुत भावमय् रचना है आभार

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    3. सचमुच आँखें नम हो गयी...

      शहीदों को श्रद्धांजली

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    4. संवेदना की विस्तृत दृष्टि के साथ रचित कविता । आभार ।

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    5. शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि

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    6. कारगिल के शहीदों को सौ-सौ नमन।

      पर पवन जी मत भूलिए कि जो शहीद हुए वे मनुष्‍य थे। जिन्‍हें आप दुश्‍मन कह रहे हैं,आखिरकार वे भी मानव हैं। वहां भी बेवाएं हैं,वहां भी अनाथ बच्‍चे हैं, वहां भी बहने हैं जिनके भाई उनकी डोली उठाने कभी नहीं आएंगे। आप किसी देश विशेष को नहीं उस राजनीति को उस प्रवृति को धिक्‍कारिए जो मानव को मानव मात्र का दुश्‍मन बना रही है।

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