पीली दाल,तूअर दाल या कि अरहर दाल का भाव सौ रुपए के आसपास चल रहा है। इससे घरों के मीनू में तो फर्क पड़ ही रहा है। पर हिन्दी साहित्य के मीनू में भी बदलाव करना पडे़गा। अब अगर दाल में काला भी हो तो भी आप उसे फेंक नहीं सकते। इसलिए ‘दाल में काला है’ कहने से भी बचना होगा। हम कहते रहे हैं कि ‘दाल-रोटी चल रही है।‘ सावधान रहिए। कहीं इनकमटैक्स वालों ने सुन लिया तो हो सकता है कि आपके यहां रेड पड़ जाए। किसी के घर में अगर आपको दावत में गलती से अरहर की दाल परस दी जाए तो आप अपने को सम्मानित महसूस करिएगा।
दिल्ली के बहुत सारे ढाबों और सामान्य होटलों में आम तौर पर पीली दाल नहीं मिलती है। हम जैसे मध्यप्रदेशी दालखाऊ जब वहां जाकर पीली दाल मांगते हैं तो होटल वाला हिकारत से देखता है, जैसे कह रहा हो पीली दाल भी कोई खाने की चीज है। अजी खाना हो तो काली दाल खाइए। पर अब लगता है वह हमें आदर से बिठाएगा और अपने वेटर से कहेगा,साब को पीली दाल लगाओ। दूसरे शब्दों में चूना लगाओ।
अब आप कहेंगे कि घर की मुर्गी दाल बराबर। तो मुर्गी भी गर्व महसूस करेगी। वैसे अब तो आपको कहना चाहिए घर की दाल मुर्गी बराबर। गाहे बगाहे रास्ते में दाल रोटी खाने के लिए पैसे मांगने वालों को मांगते समय सोचना पड़ेगा कि वे अब क्या बोलें। शायद चिकन खाने के लिए पैसे मिल जाएं, पर दाल के लिए न मिलें।
वैसे समय के साथ हमें कई मुहावरों या कहावतों में बदलाव कर लेना चाहिए। जैसे हम कहते रहे हैं कि पैसे को पानी की तरह मत बहाओ। लेकिन अब स्थिति यह है कि कहना चाहिए पानी को पैसे की तरह मत बहाओ।
मैंने केवल इशारा कर दिया है बाकी काम आप सब काम आप करिए।
*राजेश उत्साही
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बिल्कुल ठीक कह रहे हैं आप
जवाब देंहटाएंमुहावरे तो ये भी बदलने होंगे
दे दाल में पानी की जगह
पानी में दे दाल
बहुत अमीरी बघारने वाले को कहा जा सकता है
दाल दाल हो रहा है
और भी ...
एक अच्छी शुरूआत के लिए बधाई
पर महंगाई को देखकर आती है रूलाई
इसी वजह से आम अब आम नहीं रहा
खास भी नहीं
खासमखास हो गया जनाब।
बिल्कुल सही फ़रमाया आपने
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