बहस पढ़ कर निराशा हुई । वही पुराना राग । साहित्य को इतने खेमों , वर्गों में बाँट दिया है की डर है कहीं पाठकों का भी बटवारा न हो जाय। संभवत यही कारण है की पिछले ६० वर्षों के साहित्य से आम जन का परिचय बहुत कम है।
लिंक पर जाकर देखा, अच्छा लेख और अच्छी पेशकश। लेकिन हो सके तो लिंक देने के बजाय यहीं पोस्ट करें तो अच्छा हो।
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जवाब देंहटाएंलिंक पर जाकर देखा, अच्छा लेख और अच्छी पेशकश। लेकिन हो सके तो लिंक देने के बजाय यहीं पोस्ट करें तो अच्छा हो।
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