About Me
कविता के बीज मेरे मन में कब गिरे और कैसे फलित हुए, ठीक-ठीक नहीं कह सकता । किन्तु जनपदीय धूल-धक्कड़ से सने श्रमशील श्वांसों में धड़कते अपने लोकजीवन और समय के स्पंदन को कहीं महसूसता हूं तो वह कविता में ही, क्योंकि वह मुझे बेहद भाता है जहां कि मैं जन्मा-पला हूं । पिता के मानसिक असंतुलन की वज़ह से पिछले चौबीस सालों से बहिन-भाईयों यानि कि, पूरे परिवार को तबाही और टूटन से बचाने की जबाबदेही मेरी ही रही है क्योंकि मै ज्येष्ठ पुत्र हूं मां -बाप का । यही मेरी पाठशाला है जिसमें मुझे संघर्षशील जीवन का तत्वज्ञान भी हुआ । पहले प्राईवेट ट्यूशन, फ़िर बैंक की नौकरी । 1996 में राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा उत्तीर्ण कर शिक्षा सेवा में । संप्रति + 2 जिला स्कूल चाईबासा में प्रिंसीपल के पद पर । मैं समझता हूं , कविता सिर्फ़ अंतरतम की पिपासा को ही तृप्त नहीं करती , बल्कि दिन-दिन अमानवीय हो रही व्यवस्था पर अनिवार्य आघात भी करती है। हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में लिखने-पढ़ने में गहरी रुचि रखता हूं । सतत प्रकाशन भी ,पर कविता को लेकर मैं किसी मुगालते में नहीं रहता । सौम्य-शांत जीवन जिसमें संघर्ष की स्वीकृति हो, मुझे पसंद है। कृति और प्रकृति से मुझे प्यार है, आत्मानुशासन से लगाव पर प्रशासन-व्यवस्था ,राजनीति और कृत्रिमता से आले दर्जे की नफ़रत ।
Interests
हिंदी कविता और काव्यालोचना
कविता के बीज मेरे मन में कब गिरे और कैसे फलित हुए, ठीक-ठीक नहीं कह सकता । किन्तु जनपदीय धूल-धक्कड़ से सने श्रमशील श्वांसों में धड़कते अपने लोकजीवन और समय के स्पंदन को कहीं महसूसता हूं तो वह कविता में ही, क्योंकि वह मुझे बेहद भाता है जहां कि मैं जन्मा-पला हूं । पिता के मानसिक असंतुलन की वज़ह से पिछले चौबीस सालों से बहिन-भाईयों यानि कि, पूरे परिवार को तबाही और टूटन से बचाने की जबाबदेही मेरी ही रही है क्योंकि मै ज्येष्ठ पुत्र हूं मां -बाप का । यही मेरी पाठशाला है जिसमें मुझे संघर्षशील जीवन का तत्वज्ञान भी हुआ । पहले प्राईवेट ट्यूशन, फ़िर बैंक की नौकरी । 1996 में राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा उत्तीर्ण कर शिक्षा सेवा में । संप्रति + 2 जिला स्कूल चाईबासा में प्रिंसीपल के पद पर । मैं समझता हूं , कविता सिर्फ़ अंतरतम की पिपासा को ही तृप्त नहीं करती , बल्कि दिन-दिन अमानवीय हो रही व्यवस्था पर अनिवार्य आघात भी करती है। हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में लिखने-पढ़ने में गहरी रुचि रखता हूं । सतत प्रकाशन भी ,पर कविता को लेकर मैं किसी मुगालते में नहीं रहता । सौम्य-शांत जीवन जिसमें संघर्ष की स्वीकृति हो, मुझे पसंद है। कृति और प्रकृति से मुझे प्यार है, आत्मानुशासन से लगाव पर प्रशासन-व्यवस्था ,राजनीति और कृत्रिमता से आले दर्जे की नफ़रत ।
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हिंदी कविता और काव्यालोचना
सुनना केवल तुम
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सुनना केवल तुम
सुनना केवल तुम
वह आवाज़
जो बज रही है
इस तन-तंबूरे में
स्वाँस के नगाड़े पर
प्रतिपल,दिन-रात
वहाँ लय भी है,
और ताल भी,..तो
तो वहाँ जरुर नृत्य भी
होगा और दृश्य भी ।
ओह, कितना शोर है
सब ओर,
कितने कनफोड़ स्वर हैं
आवाज़ की इस दुनिया में
और कितनी बेआवाज़
हो रही है यहाँ
अपनी ही आवाज़ !
कहीं चीखें सुन रहा हूँ,
कहीं क्रंदन।
मशीनों के बीच घूमता हुआ
खुद एक मशीन हो गया हूँ
भीड़ का तमाशाई बन रहा हूँ कहीं
तो कभी तमाशबीन हो गया हूँ !
कम करो कोई बाहर की
इन कर्कश-बेसूरी आवाज़ों को...
अपने घर लौटने दो मुझे
सुनने दो आज
वह अनहद नाद
जन्म से ही मेरे भीतर
जो बज रहा है
मेरे सुने जाने की प्रतीक्षा में।
उसकी लय और ताल पर
मुझे झूमने दो
मुझे थोड़ी देर यूँ अपनी
स्वाँस-हिंडोला में
झूलने दो।
झूलने दो।
--सुशील कुमार
मो.0 94313 10216
email- sk.dumka@gmail.com
जीवन की सच्चाई से रुबरू कराती एक सच्ची कविता....
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर....
पहली बार आपकी कविता पढने को मिली....
अब लगता है कि बार-बार आपके यहाँ आना होगा
आप की इस कविता में बहुत ही अध्यात्मिकता झलकती है। ्बहुत ही सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंरहस्यवाद से प्रेरित एक सुन्दर कविता। आदमी अंतर्मुखी होने की प्रेरणा देती हुई।-अशोक सिंह
जवाब देंहटाएंबेहद भावनात्मक,बेहद सुन्दर ये पंक्तियां-
जवाब देंहटाएं”कम करो कोई बाहर की
इन कर्कश-बेसूरी आवाज़ों को...
अपने घर लौटने दो मुझे
सुनने दो आज
वह अनहद नाद
जन्म से ही मेरे भीतर
जो बज रहा है
मेरे सुने जाने की प्रतीक्षा में।
उसकी लय और ताल पर
मुझे झूमने दो
मुझे थोड़ी देर यूँ अपनी
स्वाँस-हिंडोला में
झूलने दो।”
-धन्यवाद ऐसी कविता के लिये।-अंशु भारती।
sir aap ki lekhni saskta he
जवाब देंहटाएंregards
अच्छी कविता...। आपका नाम सुना था उसको देख मै चकराया था। कि मेरा नाम कैसे आया भूल गया था ...।
जवाब देंहटाएंनने दो आज
वह अनहद नाद
जन्म से ही मेरे भीतर
जो बज रहा है
मेरे सुने जाने की प्रतीक्षा में।
उसकी लय और ताल पर
मुझे झूमने दो
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