बाजारवाद की आँधी में भारतीय साहित्य,समाज और संस्कृति के धरोहर के पन्ने बहुत उलट-पुलट गये हैं और बिखर भी गये हैं। इसके क्या विकल्प हो सकते है या होने चाहिए ? इसी विचार को केंद्र में रखकर "बाज़ार का बीजगणित" नाम से मैने एक साहित्यिक-वैचारिक लेख लिखा है। आशा है,ब्लाग के सुधी पाठक इसे पढ़ेंगे और अपनी प्रतिक्रिया देंगे, पक्ष में या विपक्ष में। यह “सृजन गाथा ” में छपा है।
--सुशील कुमार।(sk.dumka@gmail.com)
सारगर्भित, किंतु काफी लंबा आलेख।...
जवाब देंहटाएंपूंजीवाद की माला जपने वाले और कम्युनिज्म को कोसने वाले इन हालात का विश्लेषण किस प्रकार करेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा। फिलहाल तो पूंजीवाद तो हार ही रहा है।
Sun in Hindi
जवाब देंहटाएंMercury in Hindi
Technology in Hindi
Venus in Hindi
Cow in Hindi
Globalization in Hindi
जवाब देंहटाएंShare Market in Hindi
BPO in Hindi
SIP in Hindi
Kisan Credit Card in Hindi