(एक)
मोहे भाए ना
मौसम बदजात
कभी आए ना ।
(दो)
पियासी रही
समंदर पीकर
नदी बेचारी।
(तीन)
साजन आया
दूर देश से लेके
नई बीमारी।
(चार)
अंध रेत में
बिला गई है गंगा
कौन ले पंगा?
(पांच)
नदी गहरी
डूबते का सहारा
छोटा तिनका।
(छ:)
दर्द जो मिले
उसको ढो लीजिए
यही ज़िन्दगी।
(सात)
सगुन उठा
धूप को लगी हल्दी
ओट में सर्दी।
(आठ)
चार दिन की
चांदनी थी, फिर से
अंधेरी रात।
(नौ)
बजाए कान्हा
बियावान में बंशी
राधिका खोई।
(दस)
लेटी है धूप
रखें कहां पइयां
बोलो न सैयां।
(ग्यारह)
छिपा है चांद
बादलों की ओट में
आंख चुराके।
मोहे भाए ना
मौसम बदजात
कभी आए ना ।
(दो)
पियासी रही
समंदर पीकर
नदी बेचारी।
(तीन)
साजन आया
दूर देश से लेके
नई बीमारी।
(चार)
अंध रेत में
बिला गई है गंगा
कौन ले पंगा?
(पांच)
नदी गहरी
डूबते का सहारा
छोटा तिनका।
(छ:)
दर्द जो मिले
उसको ढो लीजिए
यही ज़िन्दगी।
(सात)
सगुन उठा
धूप को लगी हल्दी
ओट में सर्दी।
(आठ)
चार दिन की
चांदनी थी, फिर से
अंधेरी रात।
(नौ)
बजाए कान्हा
बियावान में बंशी
राधिका खोई।
(दस)
लेटी है धूप
रखें कहां पइयां
बोलो न सैयां।
(ग्यारह)
छिपा है चांद
बादलों की ओट में
आंख चुराके।
नुक्कड़ को जीवंतता प्रदान करने के लिए धन्यवाद...!
जवाब देंहटाएंअविनाश जी की स्मृतियों को जिंदा रखने के लिए जरूरी है इस ब्लॉग को जिंदा रखना।
जवाब देंहटाएंलाजवाब हाइकु ,नमन
जवाब देंहटाएंबिलकुल, इसे ज़िंदा रखना आवश्यक है... सुंदर भावपूर्ण हाइकू के लिए बधाई....
जवाब देंहटाएंसभी हाइकु बहुत सुन्दर. यह हाइकु कोरोना के सन्दर्भ में बहुत सटीक ...
जवाब देंहटाएंसाजन आया
दूर देश से लेके
नई बीमारी।
बढ़िया
जवाब देंहटाएं