ब्लॉग-जगत में 'नारी' की असलियत !!

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  • संतोष त्रिवेदी
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  • यह तथ्य 'नारी-नारी' का झंडा बुलंद करने वाले देख लें,शायद अब भी उनकी आँखें खुल जाएँ.
    .
    .भले ही कोई कितना निकट हो,पर यदि उसके कृत्य समाज और आपसी भाईचारे के विरुद्ध हैं तो उसकी निंदा ही करनी चाहिए.
    .
    .कई मौकों पर ऐसा साबित हो चुका है,जब 'नारी' को महज़ दूसरों पर छींटाकशी और नकारात्मकता बताने-बढ़ाने के लिए प्रयोग किया गया है.
    आप इस संबंध में जो भी उचित कार्रवाई हो करिये क्योंकि यह व्यक्तिगत मानहानि तो है ही,हिंदी ब्लॉग-जगत पर भी धब्बा है.


    रवीन्द्र प्रभात जी की तरफ से परिकल्पना पर यह भंडाफोड !
    अभी-अभी  अचानक साउथ एशिया टुडे के एडिटर साहब के एक मेल की प्रति मुझे प्राप्त हुयी है । यह मेल ब्लॉगर महिला रचना जी को संबोधित है और मुझे उसकी एक प्रति भेजी गयी है । उल्लेखनीय है कि रचना जी के द्वारा साउथ एशिया के एडिटर साहब को लिखे गए पत्र में मेरे ऊपर गंभीर इल्जाम लगाया गया है कि मैंने हिन्दी ब्लोगिंग का इतिहास पुस्तक में नाम छापने के एवज में ब्लोगरों से पैसे लिए  हैं और अब उनके द्वारा मांगने पर मेरे द्वारा वापस नहीं किया जा रहा है। 

    एडिटर साहब के द्वारा रचना को दिये गए प्रतियुत्तर में यह कहा गया है, कि यदि यह इल्जाम सिद्ध नहीं हुआ  तो यह मान हानि के दायरे में आयेगा । 

    प्राप्त मेल इसप्रकार है : 
    ---------- Forwarded message ----------
    From: Editor South Asia Today <editor@southasiatoday.org>
    Date: Sat, Apr 13, 2013 at 10:52 AM
    Subject: Fwd: I object
    To: Ravindra Prabhat <parikalpanaa@gmail.com>

    ---------- Forwarded message ----------
    From: Editor South Asia Today <editor@southasiatoday.org>
    Date: Sat, Apr 13, 2013 at 10:42 AM
    Subject: Fwd: I object
    To: रचना <indianwomanhasarrived@gmail.com>


    Ms. Rachana ji,

    The views and the script published in South Asia Today are the writer's own. and South Asia Today is not to be blemed for that. This letter of your had been forwarded to Mr. Prabhat & Mrs. Nazia Rizvi.

    But here the charges framed against Mr. Prabhat are baseless that "He took the money and published the names of the bloggist and rest ware ignored who did'nt pay."

    Charges framed by you if are not found to be true . Then may be you will find your self in the contempt of humanrights laws.  

    Thanking You 
    South Asia Today

    Copy to : (1) Mr. Ravindra Prabhat 
                   (2) Mrs. Nazia Rizvi


    ---------- Forwarded message ----------
    From: रचना <indianwomanhasarrived@gmail.com>
    Date: Fri, Apr 12, 2013 at 9:36 PM
    Subject: I object
    To: contact@southasiatoday.org


    I strongly object to the contents of the above article 
    I am the moderator of naari blog and Ravindra Prabhat is no authority on hindi bloging. 
    He took money from people whose name he gave in the book he published on hindi bloggers and those who did not pay were ignored
    regards 
    rachna
    =============================================================================
    आप सभी से मेरा निवेदन है कि यदि कोई भी ब्लॉगर मेरी उस पुस्तक में नाम छपवाने के एवज में मेरे व्यक्तिगत खाते में पैसे स्थानांतरित किए हो अथवा मनीऑर्डर अथवा चेक / ड्राफ्ट भेजे हों तो प्रूफ के साथ अवश्य सूचित करें, ताकि इस कृत्य के लिए मैं शर्मिंदा हो सकूँ । हाँ एक निवेदन और है कि यदि इस पुस्तक में नाम छपवाने के एवज में मेरे नाम पर यदि किसी और के द्वारा धन उगाही की गयी हो तो उसका भी प्रमाण दें । 

    मैं जानता हूँ कि ऐसा कोई भी प्रमाण  है ही नहीं । आपसे एक और निवेदन है कि अपना मन्तव्य भी दे कि इस प्रकार के आक्षेप के लिए संबन्धित व्यक्ति पर क्या मुझे मान-हानि का मुकदमा दायर करना चाहिए ? 

    40 टिप्‍पणियां:

    1. हमसे तो किसी ने पैसे नहीं लिए और न ही मांगे। हां! हमने पुस्तक जरुर पैसे देकर खरीदी थी, क्योंकि मुफ़्त में नहीं मिलनी थी। इस तरह के व्यक्तिगत और व्यर्थ के आरोप नहीं लगाना चाहिए।

      जवाब देंहटाएं
    2. विशेष सूचना : 12 अप्रैल 2011 तक बुकिंग करवाने वाले ब्‍लॉगरों के नाम, ब्‍लॉग पते और ई मेल पते पुस्‍तक में बिना किसी अतिरिक्‍त भुगतान के शामिल/ प्रकाशित किए जायेंगे।
      http://www.nukkadh.com/2011/04/blog-post_2970.html

      I have replied to the editor also and i am putting it here also
      the truth does not change
      and ravindra prabhat is not just an individual he is author as well and i have a right to object with the editor
      i have given the same links to them sas well

      जवाब देंहटाएं
    3. अब इतनी भी छोटी बात आपकी समझ में नहीं आ रही कि धनराशि की माँग पुस्तक की प्रति के लिए की गई थी न कि ब्लॉगिंग के इतिहास में योगदान करने वालों की सूची में नाम शामिल करने के लिए।
      साथ ही उसमे स्पष्ट लिखा है कि संदर्भ के तौर पर उन ब्लागर्स के नाम,पते बिना अतिरिक्त भुगतान के शामिल किये जायेंगे।
      क्या कोई प्रकाशक हजारों पुस्तकों को अनुदान में देता है या लेखक बाँटता है ?
      साउथ एशिया वाले भी अब आपकी बुद्धि का लोहा मानने लगेंगे :)

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      उत्तर
      1. ...और हाँ। सबसे मजे की बात यह है कि जिस पुस्तक का हवाला आपने दिया है,उस बारे में था ही नहीं। यह वटवृक्ष विशेषांक की बात थी।

        हटाएं
      2. संतोष जी ध्यान से पढ़िये साफ़ लिखा हुआ है इसमें यदि ऊपर लिखा हुआ सच है तो कि जो व्यक्ति १२ अप्रैल तक अपने पते ब्लॉगों के नाम दे देगा उसके बिना किसी अतिरिक्त भुगतान के प्रकाशित किये जायें। हाँ यह भी सच है कि बहुत से लोगों का नाम था जिन्हे मै जानती हूँ जिन्होनें अपना नाम छपवाने के लिये कोई पैसा नही दिया था। हाँ जहाँ तक मुझे याद है पुस्तक खरीदने पर जोर जरुर दिया जा रहा था। जब मैने खरीदनी चाही मेरे मित्र ने कहा था मै पढ़ कर आपको दे दूँगा आप भी पढ़ लीजियेगा।
        लेकिन रचना जी ने जो लिखा है वह भी गलत नही है... कही न कहीं लोचा अवश्य है।

        हटाएं
      3. ..सुनीता जी,आपकी टिप्पणी स्पैम में चली गई थी ,सो निकाल रहा हूँ.
        अच्छा हुआ कि बाद में आपको लोचा समझ में आ गया.
        दरअसल यह पुस्तकों की बुकिंग से सम्बंधित था और वह भी वटवृक्ष के विशेषांक का,न कि 'हिंदी ब्लॉग्गिंग का इतिहास' जैसा कि रचना जी ने सबको भरमाने के लिए इंगित किया था.

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    4. संतोष जी
      पूरा आलेख पढ़ ले
      साफ़ लिखा हैं
      मेने जो कहा हैं वही कह रही हूँ
      किताब में नाम शामिल तब ही किया जाएगा जब किताब की प्री बुकिंग के पैसे जमा होंगे

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      उत्तर
      1. रचना जी,
        क्या आपने पैसा भेजा है ?
        नहीं न?
        फिर उस किताब में आपका नाम कैसे आ गया ?
        बेशर्मी की भी हद होती है ।

        हटाएं
      2. जब से यह प्रकरण आया है, तब से मैं उस किताब को ही पढ़ रहा हूँ ....आपकी चर्चा रवीन्द्र जी ने कई जगह पर की है । लगता है आपने ज्यादा पैसा दिया है रवीन्द्र जी को। मौका भी है और दस्तूर भी...... रवीन्द्र जी के जिस एकाऊंट में पैसा भेजा है उसे सार्वजनिक कर ही दीजिये बरना न्यायालय तो आपसे सबूत मांग ही लेगा ।

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    5. KK Yadavअप्रैल 12, 2011 1:28 pm

      आज खाते में 1350 रूपये भी ट्रांसफर हो गए हैं, उसकी स्कैन कापी तीनों मेल पर भेज दी है.

      कृष्ण कुमार यादव :
      kkyadav.y@rediffmail.com
      http://www.kkyadav.blogspot.com (शब्द-सृजन की ओर)
      http://dakbabu.blogspot.com (डाकिया डाक लाया)

      आकांक्षा यादव :
      kk_akanksha@yahoo.com
      http://shabdshikhar.blogspot.com/(शब्द-शिखर)
      http:// saptrangiprem.blogspot.com (सप्तरंगी प्रेम) http://balduniya.blogspot.com (बाल-दुनिया)
      http://utsavkerang.blogspot.com(उत्सव के रंग)


      अक्षिता (पाखी) :
      akshita_06@rediffmail.com
      http://pakhi-akshita.blogspot.com/ (पाखी की दुनिया)
      प्रत्‍युत्तर दें

      see the comment to get name included one had to buy the book

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      उत्तर
      1. 450/- रुपये के हिसाब से तीन पुस्तकों के कितने हुये ?
        1350/- ही न ?
        तो उन्होने तीन पुस्तक मँगवाई होगी, अतिरिक्त कहाँ दिया?
        इत्ती सी बात समझ में नहीं आती ?

        हटाएं
      2. रचना जी, इसमें गलत क्या है ? यदि मुझे पुस्तकें चाहिए तो मुझे पुस्तकों का मूल्य भुगतान करना ही होगा।

        हटाएं
    6. जो लोग साहित्‍य जगत से जुडे हुए नहीं हैं, या जिनकी कोई पुस्‍तक प्रकाशित नहीं हुई, उन्‍हें यह बात कैसे समझ में आ सकती है कि प्रत्‍येक लेखक को एक निश्चित संख्‍या में मिलने वाली प्रतियों के बाद अपनी ही पुस्‍तक खरीदनी पड़ती है। फिर भला जिस पुस्‍तक में उनका नाम भर छपा है, वह किताब उन्‍हें मुफ्त में कौन दे देगा? प्रकाशक अगर सगा मौसा होगा, तो भी नहीं। क्‍योंकि वह किताब मुनाफे के लिए छापता है, समाज सेवा के लिए।

      जवाब देंहटाएं
    7. मैं सिर्फ इतना भर कहना चाहूंगा और वह भी महात्‍मा गांधी जी के कथन के माध्‍यम से कि

      जो सो रहा है उसे तो जगाया जा सकता है परंतु जो जानबूझकर सोने का बहाना कर रहा है, उसे जगाना संभव नहीं है।

      यही स्थिति रचना जी के संबंध में है। वे सस्‍ती लोकप्रियता बटोरने के चक्‍कर में व्‍यस्‍त रहती हैं और सारा हिंदी ब्‍लॉग संसार इस बात को जानता है, अब विदेशी ब्‍लॉग जगत भी इस तथ्‍य से परिचित हो जाएगा।

      रचना जी को लोकप्रिय होने के लिए शुभकामनाएं तो दी ही जा सकती हैं। क्‍योंकि जो वे समझना चाहती हैं, वही समझेंगी इससे इतर नहीं। आप या कोई भी चाहे कितने ही प्रयास क्‍यों न कर ले, इसलिए मैंने उन कोशिशों को करना छोड़ दिया है, जहां पर फिजूल में समय ही व्‍यर्थ करना हो।

      एक बात और बतलाना चाहूंगा कि रचना जी ने इसी कारण फेसबुक पर अपना खाता भी नहीं खोला है क्‍योंकि वे फेस दिखाना नहीं चाहती हैं और न फेस टू फेस होना चाहती हैं।

      आप उनसे अनर्गल जो चाहे लिखवा लें। कई बार उनके ब्‍लॉग पर किए गए कमेंट जारी ही नहीं किए जाते हैं क्‍योंकि वे उनकी मानसिकता की पोल खोलते हैं।

      अब तो बस कानूनी कार्यवाही की जानी ही बनती है। अगर वे अपने कृत्‍य से तौबा नहीं करती हैं क्‍योंकि वे चाहे किसी के भी खाते खुलवा कर जांच कर सकती हैं पर उन्‍हें फिजूल में समय बर्बाद करने और भ्रमित करने के लिए कानूनी कार्यवाही के लिए तैयार रहना होगा।

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    8. Sunita Shanoo

      15:19 (5 minutes ago)

      to me

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      Sunita Shanoo ने आपकी पोस्ट "ब्लॉग-जगत में 'नारी' की असलियत !!" पर एक नई टिप्पणी छोड़ी है:

      संतोष जी ध्यान से पढ़िये साफ़ लिखा हुआ है इसमें यदि ऊपर लिखा हुआ सच है तो कि जो व्यक्ति १२ अप्रैल तक अपने पते ब्लॉगों के नाम दे देगा उसके बिना किसी अतिरिक्त भुगतान के प्रकाशित किये जायें। हाँ यह भी सच है कि बहुत से लोगों का नाम था जिन्हे मै जानती हूँ जिन्होनें अपना नाम छपवाने के लिये कोई पैसा नही दिया था। हाँ जहाँ तक मुझे याद है पुस्तक खरीदने पर जोर जरुर दिया जा रहा था। जब मैने खरीदनी चाही मेरे मित्र ने कहा था मै पढ़ कर आपको दे दूँगा आप भी पढ़ लीजियेगा।
      लेकिन रचना जी ने जो लिखा है वह भी गलत नही है... कही न कहीं लोचा अवश्य है।

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      1. सारी बातें सही हैं रचना जी आपने जो लिखा मैने पढ़ा उस हिसाब से वह सच है। रविंद्र प्रभात जी ने पैसा लिया वो बात सच नही है अगर होती तो कोई तो बताता। अब मै ही बताती हूँ लोचा क्या है। यह सिर्फ़ किताब की बुकिंग हो रही थी।
        लेकिन बात ये समझ नही आती आपने रविंद्र प्रभात जी का नाम क्यों भेज दिया? आपका नाम तो था न लिस्ट में तो आपको उनसे क्या परेशानी थी ???

        हटाएं
      2. तो आपके कहने का अभिप्राय यह है,कि 12 अप्रैल के बाद अतिरिक्त पैसे देने होंगे ?
        मगर छपना तो दूर किताब 30 अप्रैल को लोकार्पित भी हो गयी ?
        गजब दिमाग लगती हैं आप भी मोहतरमा ?

        हटाएं
      3. सुनीता शानू जी ने आपकी बातों को ही काट दिया,अब क्या कुछ और बचा हो कहने के लिए तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा ।

        हटाएं
    9. अई शाब्बाश ! डोइचेवेले जर्मनी वालों को भी तो पता चलना चाहिए कि मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालना कैसा अनुभव कराता है । हो सकता है कि इस कुकुरकटौंज का ये परिणाम निकले कि भविष्य में कोई भी विश्व प्लेटफ़ार्म चाहे लाख कैटेगरी चुने मगर हिंदी को रखने की भूल नहीं करेगा । विरोध आलोचना , पुरस्कार/तिरस्कार से परे अब ये कुछ किसी और ही रंग में रंगता जा रहा है ,वही रंग जो ब्लॉग जगत पर बडा ही पक्का चढा हुआ है । रणक्षेत्र तैयार है , सबको अपने तूणीर खाली कर ही लेने चाहिएं । अफ़सोस और दुखद प्रवृत्ति , असहज करने वाली ।

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    10. थोडा और धैर्य धरिए, धीरे धीरे सबकी असलियत सामने आ जाएगी। और इसीलिए तो बंदा कह रहा है कि खुसदीप भाई, आप सफेद झूठ बोल रहे हो।

      जवाब देंहटाएं
    11. हमने भी कभी व्यक्ति को ब्लॉगिंग उत्थान/ प्रचार/ प्रसार/ सम्मान/ साक्षात्कार/ नामोल्लेख/ सम्मेलन के लिए कोई भुगतान नहीं किया
      एक बार किसी ने ऐसा ही इलज़ाम लगाया था मुझ पर
      बाद में अदालत के कमरे में पाँव छू कर माफी मांगी, तब मुक्ति मिली थी उसे

      जवाब देंहटाएं
      उत्तर
      1. बी एस पाबलाअप्रैल 21, 2011 9:33 pm

        चलिए, अब आ गया सुरक्षित समय
        मेरी प्रतियां सुरक्षित कीजिए, कीमत ३० अप्रैल के कार्यक्रम में चुका दी जायेगी

        पहले इसलिए नहीं कहा
        क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि मुझे यह अपराधबोध रहे
        कि
        मैंने धन दे कर अपना नाम किताब में जुड़वाया है
        प्रत्‍युत्तर दें

        aap kaa hi kament dubaraa dae rahii hun


        link yae haen
        http://www.nukkadh.com/2011/04/blog-post_2970.html?showComment=1303401794553#c5812351297194957669

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      2. रचना (जी)
        निश्चित तौर पर यह टिप्पणी मेरी ही थी, यह बात अलग है कि गूगल ने मेरी वह आईडी बंद कर दी

        लेकिन आपसे ये उम्मीद ना थी

        वैसे तो मेरी टिप्पणी सब-कुछ कह रही है
        फिर भी आपने प्रत्युत्तर देने का आग्रह किया है इसलिए लिख रहा कि

        जिस पोस्ट पर यह टिप्पणी आई थी उसके शीर्षक में ही लिखा हुया है "15 अप्रैल 2011 के बाद पुस्‍तक की बुकिंग तो की जाएगी परंतु ब्‍लॉगर का विवरण पुस्‍तक में प्रकाशित होने की गारंटी नहीं है"
        साथ ही साथ स्पष्ट रूप से लिखा हुया है कि 15 अप्रैल 2011 को सांय 6 बजे बाद प्राप्‍त किसी विवरण को पुस्‍तक में, किसी भी स्थिति-परिस्थिति में सम्मिलित नहीं किया जा सकेगा।

        वहीं एक टिप्पणी में अविनाश जी ने लिखा है 'यमुनानगर के हिन्‍दी ब्‍लॉगर साथियों की पुस्‍तक की बुकिंग संबंधी प्रक्रिया पूरी करवा कर जानकारी ई मेल पर 12 अप्रैल से पूर्व भिजवाइयेगा।' बाद में लिखा ' 15 अप्रैल 2011 तक अब आप अपनी जानकारी सम्मिलित करवा सकते हैं। यह बिल्‍कुल अंतिम मौका है, इसके बाद इसलिए संभव नहीं होगा क्‍योंकि पुस्‍तक के कागज मशीन में से गुजरने लगेंगे और उन पर वो सब अंकित होने लगेगा, जिसकी सबको इच्‍छा है'

        प्रमोद ताम्बट जी ने लिखा 'मुझे नाम जुड़वाने का कोई मोह नहीं है मगर मुझे प्रतियाँ चाहिए। पैसा मैं 30 अप्रैल को दिल्ली में दूँगा।'


        और मेरी टिप्पणी आई 21 अप्रैल को, ध्यान से (कोष्ठक में अलिखित भावनायों सहित पढ़ें)
        जिसमें लिखा था
        चलिए, अब (15 अप्रैल के एक सप्ताह के बाद का) आ गया सुरक्षित समय
        मेरी (पुस्तकों की) प्रतियां सुरक्षित कीजिए, कीमत 30 अप्रैल के कार्यक्रम में चुका दी जायेगी.
        (15 अप्रैल के) पहले इसलिए नहीं कहा, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि (भविष्य में) मुझे यह अपराधबोध रहे कि मैंने (किसी भी तरह का) धन दे कर अपना नाम किताब में जुड़वाया है

        अविनाश जी ने निराशा से बाद में संबोधित करते हुए लिखा 'अपराध बोध हमें भी रहेगा कि धन पा लिया और नाम न प्रकाशित कर पाए। बहुत सारे चतुराई से धन दे गए हैं और नाम नहीं दे गए हैं और बाद में देने वाले लगता है, सभी पाबला जी का अनुसरण कर रहे हैं।

        जब उसी पोस्ट में लिखा है कि 12 अप्रैल 2011 तक बुकिंग करवाने वाले ब्‍लॉगरों के नाम, ब्‍लॉग पते और ई मेल पते पुस्‍तक में बिना किसी अतिरिक्‍त भुगतान के शामिल / किए जायेंगे।
        तो यह कैसे समझा जा रहा कि पुस्तकों के लिए किये जा रहे भुगतान से अतिरिक्त कुछ माँगा गया है? नाम, ब्‍लॉग पते और ई मेल पते जोड़ना तो एक कोम्लिमेट्री सर्विस ही थी,
        या कुछ स्तर गिरा कर कहा जाए तो प्रलोभन ही था अपने नाम, ब्‍लॉग पते और ई मेल पते वाली किताब खरीदवाने का

        मज़े की बात तो यह कि ना तो हमने कोई पैसे दिए 30 अप्रैल को और ना ही (सौजन्यतावश) कोई किताब हमें मिली आज तक
        फिर भी ऐसा सुना गया था कि पुस्तक में मेरे तत्कालीन ब्लॉग्स और आई डी का उल्लेख है

        किसी को भी जिज्ञासा हो सकती है कि आखिर मैं नाम पता जुड़वाने का इच्छुक क्यों कहीं था
        तो इसका उत्तर यही है कि योजनानुसार वे सभी ब्लॉग तो बंद हो जाने वाले थे (और हो भी गए) फिर उन्हें जुड़वाने का क्या तुक

        इतना सब लिखने के बाद भी यदि आप वस्तुस्थिति नहीं समझ पाईं तो रब्ब राखा

        (आपने प्रत्युत्तर देने का आग्रह किया है इसलिए लिखा गया यह सब)

        हटाएं
      3. पाबला जी ! कोई तर्क नीं काम करेगा :)

        हटाएं
      4. पाब्ला जी
        आप जो कह रहे हैं मेरी ईमेल जो मेने सम्पंडक को भेजी हैं उसमे भी यही कहा गया हैं
        की पैसे लेकर किताब में एंट्री दी गयी हैं . ये खुद ब्लॉग पोस्ट पर हैं . फिर इसको कहने में मान - सम्मान अपमान की बात कहा से उठी
        एक सज्जन ने अपने परिवार के तीन लोगो के ब्लॉग दिये उनको तीन सेट लेने हुए यानी पर व्यक्ति पर सेट
        बाद में पुस्तक मिल सकती हैं , नाम नहीं होगा इस का भी साधरण आम बोल चाल में वही मतलब हुआ
        जो बात एक सुर से उस पोस्ट पर हैं जिसका मेने जिक्र किया हैं उसको मान लेना या ना लेना अपनी मर्ज़ी हैं
        लिखा सब अक्षरों में हैं
        बाकी मेरापत्र जो सम्पादक के पास हैं उस में किस जगह ये लिखा हैं " अब उनके द्वारा मांगने पर मेरे द्वारा वापस नहीं किया जा रहा है। "

        मुझे तो नहीं दिखा आप तो कानून प्रवीण हैं क्या ना कहीं हुई बात को किसी के नाम के साथ कहना कितना सही और गलत हैं ये आप के निर्णय पर छोड़ दिया

        हटाएं
      5. निर्णय तो कर लिया रचना (जी)

        लेकिन पहले उस किताब में अपना विवरण अपनी ही आँखों से देख तो लूँ

        और फिर
        आपके द्वारा भेजी गई ईमेल की इस He (रविंद्र प्रभात ) took money from people whose name he gave in the book he published on hindi bloggers and those who did not pay were ignored पंक्ति में शब्दों पर गौर कर इस मेल को फॉरवर्ड करने की गुजारिश कर रहा Editor South Asia Today से
        ताकि तकनीकी रूप से यह साबित हो जाए कि आप ही ने भेजी थी यह ई-मेल

        हटाएं
    12. 1. भाई लोगो मुझे नहीं पता कि 'उस'(किस) किताब में मेरा नाम कहीं/किसी संदर्भ में छपा या नहीं छपा, या मेरे बारे में कुछ छपा या नहीं छपा. मैंने वह किताब आजतक नहीं देखी है लेकिन,
      2. मैंने आजतक किसी को न तो एक पाई दी है, न देने का इरादा रखता हूं,
      3. न किसी को आज तक कहा कि मेरे ब्लाॅग को प्लीज़ कहीं/फलां जगह नाॅमीनेट कर दो या मेरे ब्लाॅग् के लिए वोट कर दो, न ही एेसा करने का कोई इरादा रखता हूं. बल्कि मैं तो प्रतियोगिताबाज़ी से बहुत दूर ही रहता हूं.
      4. मैंने तो आज तक fb पर भी किसी को टैग नहीं किया (आैर न ही एेसा करने का कोई इरादा रखता हूं)
      5. मैं बुद्धिजीवी नहीं हूं, आैर मैं समाज में दबा कुचला/अधिकार हनित/दुखी/फ़्रस्टेटिड/स्ट्रगलिंग/बदसूरत/मानसिक व्यधियों-हीनभावनाआें से ग्रस्त/अविवाहित व्यक्ति... इत्यादि भी नहीं हूं (कुछ छूट तो नहीं गया :) ), आैर न कार्टून बनाकर समाज बदल डालने के मूर्खतापूर्ण सपने पाले बैठा हूँ, जब मौज आती है तो कार्टून बनाता हूं ब्लाॅग पर पोस्ट करता हूं आैर ख़ैर-सल्ला...

      ये सब लिख इसलिए रहा हूं ताकि सनद रहे.

      आैर हां, एक प्रतिक्रिया मैंने यहां http://mangalaayatan.blogspot.in/2013/04/10.html पोस्ट की थी. मेरा ख्याल है कि उसे यहां होना चाहिए था. इसलि लिंक दे रहा हूं. (किसी को पढ़ना हो तो पढ़े वर्ना उसकी श्रद्धा)

      जवाब देंहटाएं
      उत्तर
      1. अवश्य संतोष जी, सनद रहेगा कि
        एक नारी जिसका नाम तो रचना है
        उसे तो सदैव फिजूल ही बकना है
        आरी से गला नारी का ही काटना है

        हटाएं
      2. काजल भाई , के सारे डिकलरेसन (बस एक ठो कार्टून वाला छोड के ) बकिया के नीचे हम भी अंगूठा लगा दे रहे हैं । माट साब ! सनद अब दुई ठो रखिएगा :)

        हटाएं
      3. काजल भाई,
        कसम से इस कमेंट को कम से कम दस बार पढ़ चुका हूँ और हर बार वाह-वाह कहने को मन करता है।

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    13. उस ग्राहक प्रस्ताव पोस्ट पर लिखा था "ज्ञातव्‍य हो कि उपरोक्त दोनों पुस्तकों का सम्मिलित मूल्य है रुपये. 745/- किन्तु लोकार्पण से पूर्व यानी दिनांक २५.०४.२०११ तक संयुक्त रूप से दोनों पुस्तकों की खरीद पर डाक खर्च सहित रू. 450/- ही देने होंगे !" मैनें ४५० रूपये २५.०४.२०११ को बैक आफ बड़ौदा के माध्यम से हिन्दी साहित्य निकेतन बिजनौर के खाते में जमा किया और giriraj3100@gmail.com पर उसी दिन जमा स्लिप स्कैन कर भेज दिया, मुझे पुरस्कार समारोह के दिन हिन्दी भवन दिल्ली में रविन्द्र जी के कहने पर एवं जमा स्लिप दिखाने पर सिर्फ एक किताब मिली 'दी ब्लॉगिंग : अभिव्यक्ति की नयी क्रान्ति' दूसरी किताब के संबंध में उस दिन पूछने पर कहा गया कि अभी छपी नहीं है छपने पर आपके पते पर भेज दिया जायेगा, किन्तु किताब आज तक नहीं मिली. आज यह मामला हरा हो गया है और कानूनी रूप से कालातीत होने के बजाए जिन्दा हो गया है.

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      1. संजीव जी, पुस्‍तकें लगभग सभी के पास भेज दी गई थीं फिर भी चूक अवश्‍य रही होगी। आप प्रकाशन की दी गई मेल पर अपना पता दोबारा से सूचित कर दीजिएगा आपको पुस्‍तक मिल जाएगी।

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    14. बड़ी ख़्वाहिश थी लखनऊ वाले कार्यक्रम में रचना से मिलने का,मगर अफसोस आई ही नहीं,अब अदालत में ही होगी मुलाक़ात,शायद ?

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    15. ब्लॉगजगत का व्यापारीकारण ? यह तो होना ही था |

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    16. फिलहाल इन सब बातों का कोई अर्थ और ओचित्य नहीं है ......और संभवतः इन सब बातों को गलत अर्थों में लिया गया है .....हमने पुस्तक खरीदी है ..सिर्फ पढने के लिए ..बस यही ....!!!

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    17. ब्लॉग जगत का व्यापारीकरण तो फिर भी चल जाता लेकिन जब हम ही एक दूसरे पर कीचड उछलने लगे हैं तो फिर कौन किसको कहें? किसी भी अखबार में किसी भी ब्लॉग के योग्य होने या न होने के विषय में बोलना - एक परिपक्व और स्वस्थ मानसिकता की द्योतक नहीं है. ' नारी' ब्लॉग की हकीकत क्या है ? इसके बारे में बोलने और लिखने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ! ब्लॉग के बारे में कुछ लिखे तो ठीक है लेकिन किसी पर व्यक्तिगत आक्षेप लगाना नहीं है. हर ब्लॉग कुछ भी लिखने के लिए स्वतन्त्र है और ये उसका अपना अधिकार है लेकिन किसी पर ब्लॉग को सही और गलत ठहराने के अतिरिक्त बहुत से विषय हैं लिखने के लिये.

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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