सेक्स को लेकर दोहरा चरित्र ?: "आज भी भारत में सेक्स को वर्जना की तरह देखा जाता है। जबकि हमारे देश में खजुराहो से लेकर वात्सायन के कामसूत्र जैसी कृतियों में सेक्स के हर पहलू पर रोशनी डाली गई है। स्वस्थ व सुखी जीवन के लिए संयमित सेक्स को उपयोगी बताया गया है। सेक्स का स्थान जीवन में पहला तो नहीं कह सकते हैं। पर इसका स्थान गेहूं के बाद पर गुलाब के साथ जरुर है। सेक्स शरीर की एक जरुरत है और साथ ही इंसान के जीवन चक्र को जारी रखने वाला जरिया भी।
आम जीवन में सेक्स को लेकर बहुत सारी भ्रांतियाँ हैं। जानकारी के अभाव में, परिस्थितियों के कारण या फिर मनोविकार के कारण इंसान बलात्कार जैसा घिनौना कृत्य करके सामाजिक बहिष्कार का पात्र बन जाता है। बलात्कार आज भारत में सबसे ज्वलंत मुद्दा है। बावजूद इसके इस समस्या के तह में जाने का कभी प्रयास नहीं किया गया है।
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सेक्स को लेकर दोहरा चरित्र ?
Posted on by पुष्कर पुष्प in
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रकृति परिवर्तन कामी है ये वर्जनाओं का दौर भी अब जा रहा है .पीछे जाने को हम गीत गोविन्दम तक भी जा सकतें हैं .ज़रुरत आगे जाने की है .बतौर शिक्षक हमने अपने छात्रों के साथ इस विषय पर खुल कर बात की .छात्र अपनी उलझनों को हमारे समक्ष रखने लगे .पता चला वह उलझन नहीं थी सामान्य व्यवहार था संसर्ग जन्य आकर्षण था .लेकिन खुलता बच्चा वहीँ है जहां उसे भरोसा होता है और यह भरोसा केवल स्कूल कलिज यूनिवर्सिटी में शिक्षक और घर में माँ -बाप ही पैदा कर सकतें हैं .जो परिवर्तन को आत्मसात करते हुए अपने को नहीं बदलेंगें उनके बच्चे इस यौन व्यग्र (यौन प्रिय )समाज में सुरक्षित नहीं समझे जायेंगें .उन्हें जानकारी से लैस करना होगा .सिर्फ एनाटोमी और हारमोन के खेल के ज़रिये सारा कार्य व्यापार समझाया जा सकता है .सारा व्यवहार हमारा हारमोन चालित ही तो है .आखिर जीव विज्ञान में आज बच्चा सब कुछ पढ़ समझ रहा है हमारे वक्त में यह पाठ्य कर्म भी नहीं था ,अब तो केवल उसे ही सही सन्दर्भ देने से काम चल जायेगा .
जवाब देंहटाएंआज मीडिया एक्सपोज़र बहुत ज्यादा है उसी अनुपात में समझाइश की ज़रुरत भी बढ़ गई है .
सेक्स या सम्भोग से मानसिक संकट दूर होते है पति-पत्नी में मन मुटाव दूर होते है. सेक्स के बिना जीव जीवित अधूरा मन गया है. सेक्स सम्भोग से बड़ा कोई सुख नही है लेकिन मन से होना चाहिए . काम बसना का शिकार कौन जीव नही होता . अपराध क़ि जद भी सेक्स है. जीवन का मूल उद्देश भी सम्भोग तक सिमित है.--- संतोष गंगेले
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