फ़ैज और केदार जन्मशती पर अंतरराष्ट्रीय सेमिनार - मंजू मल्लिक मनु


फ़ैज और केदार जन्मशती पर अंतरराष्ट्रीय सेमिनार
मंजू मल्लिक मनु

‘मेरा बचपन बहुत तनहा बीता। मैं लगभग पांच सल की थी जब अब्बू की गिरफ़्तारी हुई थी। मेरे जेहन में वह मंजर आज भी ताजा है, मामा (माँ) के गुस्से का इजहार, उनकी सिसकियां और अब्बू का उनको समझाना, मैं और मेरी बडजी बहन सलीमा कमरे के एक कोने दुबकी हुर्इं, कारों के जाने की आवाज ये सब कहते हुये उनका गला रुँध आया। मेरे अब्बाजान यानी ़फ़ैज साहब पंजाबी थे और माँ अँग्रेज। इस नाते अँग्रेजी मेरी मातृभाषा हुई और पंजाबी पितृभाषा। उर्दू कुछ मैंने सीखी है। पापा से हमेशा एक भीनी ख़ुशबू आती थी और मैंने कभी भी उन्हें बेतरतीब नहीं देखा। वे एक सलीक़ेमंद शायर थे। मैं शायरी नहीं करती क्योंकि ़फ़ैज के मयार तक भला कौन पहुँच सकता है।’ ़फ़ैज अहमद फ़ैज की बेटी डॉ. मुनीजा हाश्मी ने फैजज्जा व केदारनाथ अग्रवाल जन्मशती पर आयोजित समारोह में फ़ैज की साथ अपनी यादों को साझा किया। समारोह का आयोजन प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान ने किया था। भिद्वाई में आयोजित समारोह के उद््घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि मुनीजा ने शिरकत की। इसके पहले उन्होंने आयोजन का शुभारंभ देश-विदेश के सैकडजों वरिष्ठ साहित्यकारों की उपस्थिति में दीप प्रज्ज्वलित कर किया। दो दिनों के इस समारोह का पहला दिन फ़ैज और दूसरा दिन केदारनाथ अग्रवाल पर केंद्रित था।
मशहूर आलोचक डॉ. खगेंद्र ठाकुर ने उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा कि कविता के इतिहास में शायर-कवियों का क़द कम होता गया है। प्रगतिशील आंदोलन में हमने हमने हमेशा फ़ैज, केदार और नागार्जुन को अपनी सोच और प्रेरणा के केन्द्र में रखा है। पूर्वज शायर-कवियों ने जो वैचारिक लडजाइयां लडजी हैं, उस विरासत को हम संभाल नहीं पा रहे हैं।
प्रमोद वर्मा संस्थान के अध्यक्ष विश्वरंजन ने साफ किया कि मुक्तिबोध, हरिशंकर परसाई, श्रीकांत वर्मा और प्रमोद वर्मा ऐसे साहित्य-साधक हुए हैं जिनसे आज भी लेखक अपनी धार लेते हैं। ऐतिहासिकता में प्रमोदजी के अनदेखे किए जाने की स्थिति में यह संस्थान एक नैतिक लेखकीय दायित्त्व के तहत अस्तित्त्व में आया। इससे हम यह संदेश भी देना चाहते हैं कि ऐसे बहुतेरे महत्त्वपूर्ण साहित्यकार हैं जिन्हें व्यवस्थित रूप से अंधेरे में ही रखने के कुचक्र सक्रिय हैं। प्रमोद वर्मा संस्थान इस प्रवृत्ति, प्रकृति और निष्क्रियता से उपजे शून्य को भरने का एक विनम्र प्रयास है। प्रखर समालोचक डॉ. धनंजय वर्मा ने विस्तार से ़फ़ैज की शायरी और उनके नज्जमों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उर्दू शायरी से मेरी आश्नाई की शुरुआत ़फ़ैज की शायरी से ही हुई थी। आलोचक डॉ. अजय तिवारी ने कहा कि साहित्य को इतिहास से अलग कर के नहीं देखा जा सकता। वैयक्तिक प्रतिभा के साथ इतिहास का चक्र ही ऐसे नामचीन लेखकों को जन्म देता है।
फ़ैज पर केंद्रित सत्र ‘क़ैद-ए-क़फ़स से पहले’ और ‘शामे-सहरे-यारां’ में पाकिस्तान से पधारे अब्दूर रऊफ़ ने फ़ैज से जुडजे कुछ दिलचस्प संस्मरण सुनाए। इस सत्र में कुमार पंकज, फ़जल इमाम मल्लिक, मौला बख्श, रोहिताश्व ने फैजज की शायरी के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की। फ़जल इमाम मल्लिक ने कहा कि फ़ैज प्रगतिीशल तो थे लेकिन ख़ुदा की वहदानियत पर भी उनका यक़ीन था। उनकी शायरी में घुले इस रंग की चर्चा नहीं की जाती है। सत्र की अध्यक्षता की पाकिस्तान की वरिष्ठ आलोचक आरिफ़ा सैयदा ने और संचालन किया युवा आलोचक पंकज पराशर ने।
आरिफ़ा सैयदा ने कहा कि उर्दू और हिंदी भाषाएं, पाकिस्तानियों और हिंदुस्तानियों की तरह मिलनसार हैं। यह हमारी सांस्कृतिक एकरूपता का बुनियादी और ठोस बयान है। उन्होंने फ़ैज साहब की रचनाओं का प्रभावी पाठ भी किया। संस्थान के निदेशक जयप्रकाश मानस ने तरन्नुम में ़फ़ैज साहब की ग़जलों का पाठ किया।
दूसरे दिन केदार नाथ अग्रवाल जन्मशती समारोह के तहत केदार जी के व्यक्तित्त्व और कृतित्त्व पर केंद्रित सत्र की अध्यक्षता करते हुए अजय तिवारी ने कहा कि केदार नाथ अग्रवाल माक्सर्वादी सौंदर्य चेतना के विरल कवि हैं । जिन्होंने माक्सर्वादी सौंदर्य दृष्टि से चीजों को देखा। भारत भारद्वाज ने कहा कि केदारनाथ अग्रवाल मार्क्सवादी चेतना के सीधे और सहज रास्ते के कवि हैं। अभिव्यक्ति की जटिलता का केदार की कविता में स्थान नहीं है। प्रख्यात आलोचक कृष्णदत्त पालीवाल ने कहा कि अग्रवाल और अज्ञेय भिन्न विचारधारा के होते हुए भी दोनों के संबंध मित्रवत थे। केदारजी ने अपनी कविताएं तार सप्तक में नहीं दी हैं। इसके कारण इतर हो सकते हैं। केदारजी और मुक्तिबोध की मित्रता उनके पत्रों से साबित होती है। जो मेरे पास धरोहर के रूप मे हैं। केदारनाथ सामाजिक समष्टि के कवि हैं और अज्ञेय व्यक्तिवादी कवि होते हुए भी हिन्दी को जो कुछ उन्होंने दिया वह कम मबत्त्ववपूर्ण नहीं है। इस अवसर केदार जी के नाती चेतन अग्रवाल ने कहा कि मेरे नाना बहुत ही सरल सहज थे। उन्होंने जो कुछ भी लिखा और जिया वो बहुत ही ईमानदारी भरा था। इस अवसर पर केदार जी की पोती सुनीता अग्रवाल जी ने भी अपने संस्मरण सुनाए। इसके अलावा डॉ. सूयर्नारायण रणसुभे, डॉ. श्याम सुंदर दुबे, नंद भारद्वाज, डॉ. प्रताप राव कदम, प्रकाश त्रिपाठी, नरेंद्र पुंडरीक और कुमार वरूण ने भी केदार जी के व्यक्तित्त्व के कई पहलुओं पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर विश्वरंजन के सम्पादन में ़फ़ैज अहमद ़फ़ैज पर प्रकाशित एकाग्र ‘सच जिन्दा है अब तक’और केदारनाथ अग्रवाल पर प्रकाशित एकाग्र ‘बांदा का योगी’ का लोकार्पण हुआ। इनके साथ ही डॉ. दयाशंकर शुक्ल की कृति ‘छत्तीसगढजी लोक साहित्य का अध्ययन’, रवि श्रीवास्तव की ‘नदी थकने नहीं देती’, शंभुलाल बसंत की ‘इक्यावन नन्हे गीत’, विश्वरंजन/आर.के. विज/जयप्रकाश मानस की किताब ‘इंटरनेट, अपराध और कानून’ के साथ ही जयप्रकाश मानस की तीन अन्य कृतियां ‘विहंग’ ‘जयप्रकाश मानस की बाल कविताएं’ व ‘छत्तीसगढ़ की लोककथाएं’ और रमेश गुप्त का कविता संकलन ‘त्रिवेणी’ का विमोचन भी हुआ। रात्रि कालीन आयोजन में समग्र व विशिष्ट साहित्यिक योगदान के लिए उर्दू के वरिष्ठ शायर बदरुल क़ु रैशी बद्र और वरिष्ठ कवि हरीश वाढेर को प्रमोद वर्मा सम्मान से सम्मानित किया गया।
दोनों दिन अंतिम सत्र में कवि गोष्ठी और मुशायरे में शायरों और कवियों ने अपनी बेहतरीन रचनाएं सुनाईं। इस गोष्ठी की विशेषता यह रही कि अध्यक्ष मंडल से डॉ. खगेंद्र ठाकुर और विश्वरंजन ने भी काव्यपाठ किया। इनके साथ प्रमोद वर्मा सम्मान से सम्मानित हरीश वाढेर (भिलाई), फ़जÞल इमाम मलिक (दिल्ली), माताचरण मिश्र (भोपाल), रोहिताश्व (गोवा), भारत भारद्वाज (दिल्ली), नंद भारद्वाज (जयपुर), श्रीप्रकाश मिश्र (इलाहाबाद), प्रताप राव कदम (खंडवा), रमेश खत्री (जोधपुर), संतोष श्रीवास्तव (मुंबई), जया केतकी (भोपाल), इला मुखोपाध्याय (भिलाई), संतोष झाँझी (भिलाई), रवि श्रीवास्तव (भिलाई) और संचालक अशोक सिंघई ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं।

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