(चित्र साभार गूगल)
भारत में कार क्रांति की शुरूआत करने वाली मारूति-सुज़ूकी कंपनी के सितारे अब ठीक नहीं हैं. जहां एक ओर इस कंपनी की सभी कारें बाज़ार में ठीक से बिक नहीं रही हैं और डीलरों के यहां स्टॉक इकट्ठा हो रहा है. वहीं दूसरी ओर ढंग से विकने बाली इकलौती कार स्विफ़्ट के कारखाने में हड़ताल के चलते उत्पादन बंद है.
मारूति की सबसे बड़ी कमज़ोरी जहां एक तरफ इसकी कारों की लुक (appearance) है वहीं दूसरी तरफ इनकी fragility है. लगता है कि मारूति का मूल मंत्र एक ही रहा है कि भारत में केवल सस्ती कारें ही बिक सकती हैं, हो सकता है कि कंपनी अपनी इस सोच में कभी सही भी रहे हो पर इतना भी क्या कि कार की कीमत घटाए रखने के लिए कार के डिजाइन तक पर दो कौड़ी तक का ख़र्चा बचा लिया जाए और सुरक्षा भगवान या इंश्योरेंस कंपनी के भरोसे छोड़ दी जाए. समय बदल गया है. मारूति आज भी वही सोच साल रही है. और कुछ नहीं तो कम से कम, नैनो का हश्र तो इसे देख ही लेना चाहिये था.
व्यक्तिगत रूप से, मारूति-800 के पहले मॉडल को मैं आज भी इसका सबसे सुंदर मॉडल मानता हूं. वर्ना इसके बाकी समी मॉडल मुझे समझ नहीं आते. मसलन मारूति-800 के बाद इसके सबसे अधिक बिकने वाले मॉडल ज़ेन को इसने एक दिन बंद कर दिया और उसकी जगह एस्टीलो नाम से नई कार उतार दी. जो ज़ेन कम और नैनो अधिक दिखती है. यही हाल इसने एस्टीम के साथ किया कि एक दिन उसे भी बंद कर दिया जबकि यह भी इसके अधिक बिकने वाले मॉडल में से एक था. इसका एक और पका हुआ सा मॉडल है आल्टो, जिसे शायद उन अमीरों के लिए बनाया गया है जो ग़रीबों की क्रीमी-लेयर में आते हैं. एक दूसरी डिबिया बनाई इसने ओमनी नाम की, जिसे शायद उन लाला टाइप लोगों के लिए बनाया गया होगा जो बस/टैंपो का काम कार जैसी किसी चीज़ से ले लेना चाहते रहे हों. उसे भी कुछ ठोक पीट कर आजकल नया नाम दे दिया है ‘ईको’. वाह.
एक और कार है इसकी जिसे वैगन-आर कहते हैं, (हो सकता है, उमर के साथ बड़ी होकर कल यह टैम्पो-ट्रैवलर हो जाए.) पता नहीं क्या सोचकर यह मॉडल बनाया गया है मानो कार बनाकर चारों तरफ दो-दो चार-चार थापियां फेंट कर चपटा दी गई हो. धन्य हैं इस मॉडल के मालिक लोग. इसी तरह इसकी रिट्ज़ है जिसे बनाने के बाद पीछे से ठोकर अंदर कर दिया है, राम जाने क्यों. ए-स्टार बहुत बढ़िया एवरेज वाली कार बताई गई थी पर बिक नहीं रही क्योंकि लोगों को समझ नहीं आता कि इसे क्यों लिया जाए, जब दूसरी कंपनियों के ढेरों मॉडल हैं. इसी तरह एक बेहूदा सी ऊंचाई वाली कार sx-4 बनाई है, उसे ख़रीदने के ‘कारण’ भी लोग ढूंढ ही रहे हैं. स्विफ़्ट में बूट लगा कर डिज़ायर बनाई है, ठीक -ठाक बिक रही है. बलेनो इसकी एक अच्छी कार थी पर उसमें कोई ग्रेस नहीं थी, सो वह भी नहीं चली. ग्रैंड-विटारा जैसी श्रेणी में मांग उतनी नहीं है और वहां प्रतिस्पर्धा का स्तर भी अलग है.
जिप्सी एक मर्दाना सुंदर मॉडल है पर क़ीमत के हिसाब से इसके इंजन में भी वो बात नहीं है जो होनी चाहिये. हाईवे पर इसे चलाते हुए मुझे कभी ज़्यादा भरोसा नहीं हुआ इस पर.
ऐसा भी नहीं है कि इस कंपनी को कारें डिज़ाइन करनी नहीं आतीं उदाहरण के लिए ऊपर का चित्र देखें यह इसका ही किज़ाशी नाम का मॉडल है. हालांकि बाज़ार में आने वाला मॉडल इतना सेक्सी नहीं है. पर इसी तरह की बाक़ी कारें ये क्यों नहीं बनाती, आपको समझ आ गया होगा.
अब भारत में कारें यूं ही नहीं बिक जातीं, फ़ाख़्ता उड़ाने के वो दिन गए मियां. आज का ग्राहक डिज़ाइन, आफ़्टर सेल सर्विस, क़ीमत, लोन, एक्चेंज, इंजन,ससपेंशन, डेकोर, सुरक्षा इत्यादी सभी कुछ देखता है. बाक़ी, भइये मारूति कंपनी आपकी है जैसे चाहो डुबाओ हमें क्या. (अगर मारूति का कोई महानुभाव इसे पढ़े तो बुरा न माने, आत्ममंथन करे. मैं मारूति का शुभाकांक्षी हूं. मेरी पहली कार मारूति -800 थी, आज भी दो कारें मारूति की ही हैं.)
-काजल कुमार.
मजाकिया अन्दाज में बढ़िया क्लास ली काजल जी। वाकई मारुति सस्तेलाल की थ्योरी पर ही चल रही है।
जवाब देंहटाएंखैर हम जैसे लोग सुखी हैं जिन्हें कार खरीदने, रखने की कोई टेंशन नहीं।
@ ePandit
जवाब देंहटाएंलेकिन दुख होता है, जब एक दमदार कंपनी अदूरदर्शिता के चलते यूं दम देती है...
मुझे तो वेगन आर पसंद है.. पापा ने खरीदी, काफी दिनों से उसके मज़े ले रहे हैं... फिर स्विफ्ट पसंद आई, फिर छोटे भाई ने स्विफ्ट खरीद ली, उसके भी बहुत मज़े लिए... आजकल शेव्रेले स्पार्क पसंद आ रही है, देखते हैं अबकी बार कौन हिम्मत करता है... वैसे दिल्ली जैसे शहर में कार खरीदना वाकई हिम्मत की बात है... क्योंकि रोज़-रोज़ कोई न कोई कहीं ना कहीं से आपकी मेहनत की कमाई से खरीदी गई जान से प्यारी कार को खरोंचे मार कर भाग जाता है और आपके पास सिवाए मन मसोस कर रह जाने के कोई विकल्प नहीं होता...
जवाब देंहटाएंवैसे अपुन को ओवर आल मारुती की छोटी कारें पसंद हैं... वाकई जेब में फिट होने के कारण...
प्रेमरस
बढिया व्यंग।
जवाब देंहटाएंहो सकता है, उमर के साथ बड़ी होकर कल यह टैम्पो-ट्रैवलर हो जाए.हा हा हा ..
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