लो जी, अब देश में सच कहना भी गुनाह होने लगा है. लगता है कांग्रेस की ‘आयाओं’(बच्चे की देख-रेख करने वाली) को अब एक बार फिर शुरू होने जा रहे ‘सच का सामना’ में भेज देना चाहिए. वे अब तक यह बात अपने ‘युवराज’ को समझाने में नाकाम रहीं हैं कि राजनीति बच्चों का खेल नहीं है. युवराज भी है कि- मैया मैं तो चन्द्र खिलौना लैहों....जैसी लय छेड़े हैं.
अब किसी ने कांग्रेस के ‘चश्मे नूर’ को ‘अमूल बेबी’ कह दिया तो कौन सा गुनाह कर दिया? इस बात पर बखेडा खड़ा कर ‘बाबा’ के दरबार में नंबर बढ़वाने वालों की लंबी कतार लगती जा रही है. इसके पहले भी तमाम नेताओं को लेकर इस तरह की टिप्पणियाँ होती रही हैं, मगर वक़्त के थपेडों में सब दब गए. मैं ‘कैटल क्लास’ वाले साहब की बात से सहमत हूँ. उन्हें खुद समझ नहीं आ रहा है कि अमूल बेबी अपमानजनक क्यों है? वो व्याख्या करके बताते हैं कि अमूल बेबी मजबूत, चुस्त-दुरुस्त और अपने भविष्य के प्रति केंद्रित होते हैं. अमूल श्वेत क्रांति का प्रतीक है जिसने आम लोगों को दूध मुहैया कराया. हालांकि यह भाई यह नहीं बताते कि जो युवराज गरीब-आदिवासियों के घर जाकर उनके हिस्से की थाली चट कर आया वे आदिवासी अब तक भूखे क्यों हैं. मैंने कई कहानियों में पढ़ा है कि रजवाड़ों के दौर में भेस बदलकर निकला राजा यदि किसी गरीब की झोंपड़ी में भुखमरी का अंश भी पा जाता था तो अगले दिन ही उस गरीब के भण्डार भर दिए जाते थे. इस आधुनिक श्वेत क्रांति के प्रतीक ‘अमूल बेबी’ ने ऐसा कोई कारनामा अब तक तो नहीं ही किया है. महाराष्ट्र की कलावती तक इसकी गवाह है. अमूल का अर्थ ही अमूल्य यानी बेशकीमती होता है, तो कांग्रेसियों के विरोध को क्या यह नहीं समझा जाए कि वे अपने ‘युवराज’ को बेशकीमती नहीं मानते. (पूरा पढ़ने के लिए क्लिक करें-www.aidichoti.co.in)
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अब किसी ने कांग्रेस के ‘चश्मे नूर’ को ‘अमूल बेबी’ कह दिया तो कौन सा गुनाह कर दिया? इस बात पर बखेडा खड़ा कर ‘बाबा’ के दरबार में नंबर बढ़वाने वालों की लंबी कतार लगती जा रही है. इसके पहले भी तमाम नेताओं को लेकर इस तरह की टिप्पणियाँ होती रही हैं, मगर वक़्त के थपेडों में सब दब गए. मैं ‘कैटल क्लास’ वाले साहब की बात से सहमत हूँ. उन्हें खुद समझ नहीं आ रहा है कि अमूल बेबी अपमानजनक क्यों है? वो व्याख्या करके बताते हैं कि अमूल बेबी मजबूत, चुस्त-दुरुस्त और अपने भविष्य के प्रति केंद्रित होते हैं. अमूल श्वेत क्रांति का प्रतीक है जिसने आम लोगों को दूध मुहैया कराया. हालांकि यह भाई यह नहीं बताते कि जो युवराज गरीब-आदिवासियों के घर जाकर उनके हिस्से की थाली चट कर आया वे आदिवासी अब तक भूखे क्यों हैं. मैंने कई कहानियों में पढ़ा है कि रजवाड़ों के दौर में भेस बदलकर निकला राजा यदि किसी गरीब की झोंपड़ी में भुखमरी का अंश भी पा जाता था तो अगले दिन ही उस गरीब के भण्डार भर दिए जाते थे. इस आधुनिक श्वेत क्रांति के प्रतीक ‘अमूल बेबी’ ने ऐसा कोई कारनामा अब तक तो नहीं ही किया है. महाराष्ट्र की कलावती तक इसकी गवाह है. अमूल का अर्थ ही अमूल्य यानी बेशकीमती होता है, तो कांग्रेसियों के विरोध को क्या यह नहीं समझा जाए कि वे अपने ‘युवराज’ को बेशकीमती नहीं मानते. (पूरा पढ़ने के लिए क्लिक करें-www.aidichoti.co.in)
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यदि इस तथाकथित 'युवराज' का आई-क्यू जाँच कराया जाय और उसमें भ्रष्टाचार न कराया जाय, तो जाँच का परिणाम राष्ट्रीय औसत से कम आयेगा। देश का दुर्भाग्य है कि 'मीरजाफरी' चमचे ऐसे 'युवराज' को भारत के भावी प्रधानमंत्री के रूप में पेश कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंamul wale to khush ho gaye honge ab dusre barand jaise complan wale soch rahe honge complan baby kyu nahi kaha gaya
जवाब देंहटाएंअनुनाद जी सलाह मानी जाए।
जवाब देंहटाएं---------
भगवान के अवतारों से बचिए!
क्या सचिन को भारत रत्न मिलना चाहिए?
mand buddhi baalak ko :amool bebee kahke uskaa maan badhaayaa hai -a-chyutaanandji ne .
जवाब देंहटाएंveerubhai.
कहने दो जी कहता रहे
जवाब देंहटाएंविचारों में दूसरों के बहता रहे
अनुनाद सिंह जी
जवाब देंहटाएंअविनाश आपसे
ई मेल पर
करना चाहता है बात
पर क्या करे मजबूर है
न ई मेल है
और फोन नंबर
तो बहुत दूर है।