ब्लड कैंसर पीड़ित डाक-कर्मी व साहित्यकार धन के अभाव में मृत्यु-शैया पर

यह लगभग हृदय-विदारक समाचार है।
कैंसर वार्ड के बिस्तर पर असहाय कालीचरण प्रेमी
कालीचरण प्रेमी पुन: आई॰सी॰यू॰ में शिफ्ट कर दिये गये हैं। उनके शरीर का दायाँ हिस्सा पक्षाघात का शिकार हो चुका है। नाक से खून बहने लगा है। उनका जीवन बचाने की डॉक्टरों की कोशिशें जारी हैं। उन्हें कितने ही यूनिट पैलेट्स और चढ़ाए जा चुके हैं और डाक-विभाग से उनको मेडिकल सहायता-राशि अभी तक भी नहीं मिल पाई है। इस दुष्कर्म की किन शब्दों में भर्त्स्ना की जाय--समझ में नहीं आ रहा।
आज(दिनांक 20-4-2011) शाम करीब आठ बजे भाई सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा का फोन आया था। प्रेमी जी की पत्नी के हवाले से उन्होंने मुझे बताया कि वह अब पहचान भी नहीं रहे हैं। अरोड़ा जी ने मुझसे कहा कि वे अपने घर से हॉस्पिटल के लिए निकल रहे हैं। मैंने उनसे कहा कि आप पहुँचिए, मैं भी आता हूँ।
रोगी की हालत की गम्भीरता के मद्देनजर आई॰सी॰यू॰ स्टाफ ने पाँच मिनट के लिए उनके निकट जाने की अनुमति मुझे दे दी। मैं लगभग 8॰55 पर आई॰सी॰यू॰ में कालीचरण के बिस्तर तक पहुँचा। वह बेहाल थे और गहरी साँसें ले रहे थे। मैं उनके बायीं ओर जा खड़ा हुआ। उस बेहाली में ही उनकी नजर मुझ पर पड़ी और उन्होंने मुझे पहचानकर पलंग की रेलिंग पर रखे मेरे हाथ पर अपना बायाँ हाथ रख दिया। मैंने तुरन्त अपनी दोनों हथेलियों में उनके हाथ को थाम लिया और नौ बजे तक यों ही खड़ा रहा। कालीचरण को नि:संदेह आत्मीय स्पर्श की आवश्यकता थी। मित्रों, परिवार जनों के इस आत्मीय स्पर्श और लिखते व पढ़ते रहने की जिजीविषा के बल पर ही कालीचरण करीब चार साल तक अपने-आप को ब्लड कैंसर से लड़ने योग्य बनाए रह सके; लेकिन—‘जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु:…। सही नौ बजे स्टाफ नर्स ने मिलने का मेरा समय समाप्त होने का ध्यान दिलाते हुए आई॰सी॰यू॰ से बाहर चले जाने को कह दिया। मैं कालीचरण से कुछ कह नहीं सका, जबकि इशारे से कुछ कहना अवश्य चाहिए था। उस इशारे का तात्पर्य कालीचरण समझ अवश्य जाते क्योंकि पहले इस बारे में हम विमर्श कर चुके थे। मुझे दु:ख है कि मैं उन्हें कुछ समझाए बिना चुपचाप बाहर निकल आया।
उसी दौरान सुरेन्द्र अरोड़ा जी भी पहुँच गये और 9॰30 के लगभग वे भी कालीचरण को देखकर आये। इस बीच कालीचरण प्रेमी की हालत में कुछ-और गिरावट आ चुकी थीउनके कथन से मुझे ऐसा लगा।
दोस्तो, कालीचरण प्रेमी की शारीरिक स्थिति के मद्देनजर हॉस्पिटल प्रशासन उनके परिवार पर दबाव बना रहा है कि वे उनके इलाज की रकम तुरन्त जमा कराएँ। जैसाकि दिनांक 14 अप्रैल 2011 की पोस्ट में हमने लिखा थाकेन्द्रीय डाककर्मी होने के नाते कालीचरण प्रेमी का इलाज सी॰जी॰एच॰एस॰ के पैनल में दर्ज शान्ति मुकुन्द हॉस्पिटल, दिल्ली में चल रहा है। और उनके डॉक्टरों द्वारा उनके इलाज में खर्च होने वाली अनुमानित राशि की माँग वाली फाइल(जिसका नम्बर E/Kalicharan Premi/Medical Advance/2010-11 है) दिनांक 23 मार्च, 2011 ) यानी गत लगभग एक माह से गाजियाबाद, नोएडा, लखनऊ और दिल्ली के चक्कर काट रही है। सम्बन्धित अधिकारी कितने संवेदनहीन हो चुके है, यह इसका घिनौना उदाहरण है।
बलराम अग्रवाल
सुभाष नीरव
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
ओमप्रकाश कश्यप
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
अविनाश वाचस्पति
एवं अन्य साहित्यिक मित्र

3 टिप्‍पणियां:

  1. कालीचरणजी के जल्द स्वास्थय लाभ की कामना के साथ ईश्वर से प्रार्थना है कि भारतीय डाक विभाग को तत्काल सदबुद्धि प्रदान करें ताकि उनके इलाज के लिए राशि जल्द जारी हो सके .

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  2. नमस्कार !
    बेहद दुःख हुआ पढ़ कर कि आज इंसान संवेदन हीन क्यूँ होता जारहा है , इंसान पैसो के पीछे भागता जा रहा है मगर मानवता के पीछे नहीं , आदरणीया काली च्नारण जी शीघ्र ही स्वस्थ हो , मेरा एक सुजाव रहेगा कि अगर सभी ब्लोगेर्स बंधुओं को सम्मिलित कर उन सभी से यथा शक्ति सहोयग लिया जाए या ऐसा ट्रस्ट या क्लब बनाया जाए जिस से इस प्रकार पीड़ित रचना धर्मी कि सहायता हो सके , बहरहाल प्रेमी साब शिग्ढ़ स्वस्थ हो ये इश्वर से कामना करते है !
    सादर !

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  3. उफ्फ ।

    बेहद दुखद।

    निजी अस्पताल भी लूटखसोट वाले सरकारी सिस्टम की ही तरह कार्य करने लगे हैं। शर्मनाक।

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