मुझसे तो नहीं छूट पाता ये बचपना |

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  • मुझसे तो नहीं छूट पाता ये बचपना
    आप चाहे कुछ भी कहते रहे मुझसे तो नहीं छूटता ये बचपना |अरे तो क्या ये जरूरी है कि ४० पार् कर लिया तो हमेशा चेहरे पर बुजर्गियत ही ओढ़े रहे ,बेबसी चिपकाए रहे ,सबकेआश्रित ही बने रहे ,अब जब बच्चे खेल सकते है नाच गा सकते है तो हम क्यों नहीं | भई, बालो का रंग ही तो स्वेत हुआ है मन पर तो कोई कालिख नहीं आई ना ,फिर हम चाहे छुहा-छाही खेले अथवा लंगडी टांग ,हम नाचे,गुनगुनाये और दिल खोलकर हँसे तो हर बार यह क्यों सुनाया जा रहा कि उम्र का ख्याल तो करो क्या अभी तक बच्ची बनी रहोगी| मेरा मन तो सबसे अधिक बच्चा पार्टी में लगता है कितना भी भारी दुःख हो कैसी भी मनहूसियत हो ये बच्चे अपनी भोली बातो से और डेढ़ इंची मुस्कान से आपका दिल जीत ही ले लेते हैं | मेरी तो हर सुबह इन्ही से शुरू होती है और शाम भी इन्ही के साथ डूबती है| और हमारी अम्मा है कि सारे दिन हमें सुनाये बिना नहीं मानती देखो अब ये उम्र है क्या बच्चों के साथ चहल-कदमी करने की ,हमारी बहू में न जाने कब बड़प्पन आएगा | जब देखो तब बस इन बच्चों के बीच पगलाई सी घूमती रहती है | न अपनी उम्र का ख्याल रहा है |अब है भी तो मास्टरनी पूरी जिंदगी बच्चों कों ही पढ़ाया और उम्र के इस मोड पर भीबच्चा ही बनी हुई है | क्या मुसीबत है जब सोलह-सत्रह साल के हुए और इन बच्चों के संग गेंद तड़ी खेलने का मन करता तो माँ कहा करती बेटा अब बचपना छोड़ बड़ी हो गई है कलको पराये घर जायेगी कुछ तमीज सीख | तब भी मन होता था माँ सब काम तो मैंने कर लिया ,अब क्यों डांटती हो | पर एक उम्र के बाद जैसे बचपन कों विदा करना ही पड़ता है| ससुराल आगई तो वहा भी छोटे छोटे बच्चों से दोस्ती कर ली ,और जैसे ही खाली समय मिला उनको बुला लिया किसी के लिए गुडिया बना दी तो किसी केसाथ झूठ मूठ रसोई की तैयारी कर ली| रात होते-होते बच्चों का झुण्ड आ धमकाता कहानी सुनाने के लिए ,भाभी कल वाली कहानी सुनाओ ना फिर राजकुमार का क्या हुआ | और चल निकलती बात में से बात | सास की आवाज कान में पड़ते ही बच्चा टोली सतर्क हो जाती और सब के सब हाथ हिलाते भाभी कल भी कहानी सुनाओगी ना | जब खुद मातृत्व पद के अधिकारिणी बनी तब भी बच्चों के साथ बच्चों के साथ बच्चा ही बनी रही | कभी नन्हे कों दूध न पीने पर कहती गटक गटक पीएगा दूध मेरा नन्हा राजा और कभी एक दो तीन कहते दूध का गिलास उसके पेट में पहुँच जाता |अब तो दादी नानी बनने की उम्र आ गई पर मन है कि अभी भी उन गलियारों में घूमने के लिए लालायित है | सच मेरा बचपन मेरा सबसे अच्छा समय ,गर्मी की दोपहरी हो तो सहेलियों के साथ गुट्टे और चकखन पे खेलते बीतती और सर्दियों की दोपहर गेंद तड़ी करते और गिट्टी फोड खेलते | शाम होते ही अपनी गुडिया -गुड्डे की शादी की बरात हाथ में आक की लंबी शाखाए लेकर निकलती और किसी भी सहेली के घर धमा चौकड़ी मचनी शुरू हो जाती |पढते थे और इतना पढते थे कि कक्षा में सबसे अब्बल आते पर खेल के साथ कोई समझौता नहीं | और अब देखती हूँ तो खेल के नाम पर कोई गतिविधि नहीं | बस अधिकतर हुआ तो बैठे-बिठाए कोई वीडियो गेम खेल लिए,| आज जब अपने प्रयास के बच्चों कों फूटबाल और कबड्डी खेलने भेजा तो सारे के सारे बच्चे इतने थक गए कि लगा ये सब शारीरिक तौर पर बहुत कमजोर है और बस तभी से प्राण कर लिया कि शनिवार केवल और केवल खेल और अन्य गतिविधियों के लिए मसलन गाना गाओ कला बनाओ बाते करो अपनी जिज्ञासा दूर करो और करो ढेर सारी मस्ती

    6 टिप्‍पणियां:

    1. आप जिन खेलो का नाम ले रही है उनमे से ज्यादातर के नाम भी आज की पीढ़ी नहीं जानती होगी | लेख बहुत अच्छा लगा काश की हम अपने बचपन में लौट सकते |

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    2. अरे तो क्या ये जरूरी है कि ४० पार् कर लिया तो हमेशा चेहरे पर बुजर्गियत ही ओढ़े रहे!!!
      सुंदर आलेख।

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    3. बहुत सुन्दर लेख ..सही है जब तक बच्चा बने रहो उतना ही अच्छा ..ज्यादा उर्जा मिलती है ..

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    4. इंसान चाहे तो उम्र भर बच्छा बना रह सकता है ... बस दिल में होना चाहिए ... अच्छा लिखा है ..

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    5. बचपन सदैव जीवित रहना चाहिए हृदय में ,
      दुर्गम राहें आसान लगती हैं!

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    6. लेख पढ़ कर अच्छा लगा| काश!हम भी बचपन में लौट सकते|

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
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