कब सुधरेंगे हमारे माननीय...?

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  • संजीव शर्मा/Sanjeev Sharma
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  • देश के जनप्रतिनिधि अपनी कारगुजारियों के लिये कम बदनाम नहीं हैं.कभी पैसा लेकर सवाल पूछने को लेकर तो कभी संसद में लात-घूंसे चलने को लेकर वे चर्चा में बने रहते हैं.संसद से गायब रहना तो अधिकतर जन्प्रतिनिधियों की फितरत बन गए है.लेकिन अभी तक ये बातें सिर्फ सुनी-सुनाई थी पर हाल ही में आये एक रिपोर्ट ने ऐसे ही कई रहस्यों को सार्वजनिक कर दिया है.
    स्वयंसेवी संगठन मास फॉर अवेयरनेस के “वोट फार इंडिया” अभियान द्वारा १५ वीं लोकसभा के २००९-१० के पहले एक साल के काम-काज पर आधारित रिपोर्ट “रिप्रेजेंटेटिव एट वर्क” में लोकसभा के प्रत्येक सांसद के साल भर के कार्यों का लेखा जोखा दिया गया है. रिपोर्ट में लोकसभा के काम-काज को दस भागों में बांटा गया है.पहले भाग ‘उपस्थिति’ में कुल सात सांसद ने सौ फीसद उपस्थित रहकर लोकसभा के प्रति गंभीरता का प्रदर्शन किया है. इनमें छः सांसद कांग्रेस के हैं. खास बात यह है कि लोकसभा की कुल ८६ बैठकों में ९० फीसद से ज्यादा उपस्थिति वाले सांसदों की संख्या भी लगभग १०० है.राज्यों के हिसाब से मणिपुर के सांसदों कि सदन में उपस्थिति सबसे ज्यादा रही है. रिपोर्ट का दूसरा भाग लोकसभा के प्रश्नकाल पर केंद्रित है. सांसदों पर भले ही प्रश्नकाल में लापरवाही बरतने का आरोप लगता रहा हो लेकिन रिपोर्ट के आंकड़े कहते हैं कि २७ सांसदों ने २०० से ज्यादा सवाल पूछे हैं, वहीँ १०० से अधिक प्रश्न पूछने वाले सांसदों की संख्या भी १०० से ज्यादा है. प्रश्न पूछने में महाराष्ट्र के सांसद अव्वल रहे.हालाँकि पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा सहित लगभग १०० सांसद ऐसे भी हैं जिन्होंने कोई भी सवाल पूछना ही ज़रुरी नहीं समझा.
    संसद में बहस के मामलों में सांसदों का रिकार्ड ज़रूर अच्छा नहीं कहा जा सकता. लोकसभा के ७७ फीसद सांसदों की बहस में औसत हिस्सेदारी रही है. महज १४ फीसद चुने हुए जनप्रतिनिधि ही उत्कृष्ट प्रदर्शन कर पाए हैं. समाजवादी पार्टी के शैलेन्द्र कुमार इस मामले में सबसे अव्वल हैं जबकि ५० के करीब सांसद फिसड्डी साबित हुए हैं. सांसदों को मिले प्राइवेट मेम्बर बिल जैसे शक्तिशाली हथियार का इस्तेमाल करने में ९३ फीसद सांसदों ने कोई रूचि तक नहीं दिखाई. कांग्रेस के नई दिल्ली से सांसद जयप्रकाश अग्रवाल जरूर 11 बिल लाकर सबसे आगे हैं. हमारे सांसद लोकसभा में व्यवधान तथा स्थगन के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं. रिपोर्ट के आंकड़े भी इसी बात की गवाही देते हैं. साल भर में लोकसभा की कार्यवाही 14207बार बाधित हुई, वहीँ 102 बार कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी. लोकसभा की कार्यवाही रोकने में महिला आरक्षण बिल, आईपीएल विवाद एवं महंगाई जैसे मुद्दों की प्रमुख भूमिका रही. उल्लेखनीय बात यह है कि समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव, सपा सांसद शैलेन्द्र कुमार और उनके साथी व्यवधान उत्पन्न करने में सबसे आगे रहे. इस रिपोर्ट का एक हिस्सा सांसदों के बार-बार गर्भगृह में जाने पर भी केंद्रित है. इसके लिए भी महिला आरक्षण बिल और आईपीएल विवाद मुख्य कारण रहा. जहाँ तक संसद से बहिर्गमन/वाक-ऑउट की बात है तो हमारे जनप्रतिनिधियों ने इसमें भी कोई कसर नहीं छोड़ी. वे कम महत्वपूर्ण विषयों पर भी बहिर्गमन करते रहे. इन मामलों में सपा सबसे आगे रही है.
    सांसद विकास निधि के इस्तेमाल के विषय में सांसदों की लापरवाही किसी से छिपी नहीं है. आधे से ज्यादा सांसदों ने ढंग से इस पैसे का उपयोग ही नहीं किया और अब इस राशि को बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. चंद सांसदों ने ही इस निधि का अपने क्षेत्र के विकास में पूरी तरह इस्तेमाल किया है.राज्यों के मान से मिजोरम के सांसद इस काम में सबसे आगे हैं. पैसा खर्च करने में भाजपा के डाक्टर राजन सुशांत सबसे आगे हैं. जबकि सवा सौ सांसद ऐसे हैं जिन्होंने फूटी कौड़ी भी खर्च नहीं की. जनप्रतिनिधयों को मिली विशेष उल्लेख के तहत मुद्दे उठाने की सुविधा का लाभ लगभग आधे सांसदों ने उठाया. इस मामले में विपक्षी सांसद ज्यादा सक्रिय नज़र आये. इसी तरह सरकारी बिल के मुद्दे पर भी सांसदों की मिली-जुली भूमिका ही रही.

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