(उपदेश सक्सेना)
मुंबई को पैसे वालों की नगरी कहा जाता है. वहाँ के लोगों में पैसे के सामने मानवीयता बहुत कम है, यदाकदा फ़िल्मी सितारे किसी आपदा की स्थिति में अपना नाम चमकाने के लिए कुछ दान-पुण्य करते रहते हैं, मगर इसमें भी वे अपना नफ़ा-नुकसान पहले से आँक लेते हैं. यह पोस्ट उस महान कलाकार को समर्पित है, जो इस वक़्त अपने जीवन के बहुत खराब दौर से गुज़र रहा है, उसका नाम है रघुवीर यादव. रघुवीर को उनके घरेलू झगड़े के कारण कल तक के लिए जेल भेजा गया है, और यदि वे ढाई लाख रुपए का इंतजाम नहीं कर सके तो संभव है उन्हें जेल से रिहाई न मिले.
१५ साल की उम्र में घर से भागकर मुंबई की राह पकड़ने वाले मध्यप्रदेश की संस्कारधानी, जबलपुर के इस जन्मजात कलाकार ने पारसी थियेटर से अपनी शुरुआत की. बाद में दिल्ली पहुँचकर उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में प्रशिक्षण लिया. लीक से हटकर बनने वाली फिल्मों में एक मंझे हुए कलाकार साबित हुए रघुवीर ने थियेटर और गायन में भी महारथ हासिल की है. 70 नाटकों के लगभग 2500 शो में यादव ने अपनी प्रतिभा साबित की है, वहीँ पेप्सी समेत कई विज्ञापनों में अपनी आवाज़ देकर उन्होंने इस क्षेत्र को भी अपना मुरीद बना लिया. 1985 में प्रदर्शित रघुवीर निर्मित फिल्म ‘मैसी साहब’ जिन्हें याद होगी वे जानते होंगे की यादव किस क़दर प्रतिभाशाली हैं, इस फिल्म को दो अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले थे. वे एकमात्र ऐसे कलाकार हैं जिन्हें भारत अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में रजत मयूर पुरस्कार से नवाज़ा गया है. सलाम बाम्बे, लगान,वाटर जैसी सफल फिल्मों में काम कर चुका यह कलाकार अब जीवन के इस दौर में अर्थाभाव से गुजर रहा है, इसका दोष शायद यह हो सकता है कि इसने किसी खान या खन्ना परिवार में जन्म लिए बिना निर्मोही मुंबई में सफल होने का दुस्साहस किया. जीवन में उतार-चढ़ाव सभी के साथ आते हैं, मगर चंद लाख रुपयों की खातिर जेल में रहने का दंश भोग रहे इस कलाकार को शायद अफ़सोस होगा कि उसने क्यों “मुंगेरीलाल के हसीन सपने” देखे? क्या करोड़ों रुपये अपने कुत्तों पर खर्च कर देने वाले कतिपय महान कलाकारों की आत्मा उन्हें इस बात के लिए नहीं कचोटती कि अपने एक साथी की मुसीबत में मदद करें.
क्यों देखे “मुंगेरीलाल” ने हसीन सपने?
Posted on by उपदेश सक्सेना in
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रघुवीर यादव या इन जैसे महान कलाकारों के महान अभिनय या काम पर किसी को भी क्या आपत्ति हो सकती है? मगर इनपर सहानुभूति दिखानेवले एक बार यह भी सोचें कि जब ऐसे लोग अपनी पसन्द की शादी करके बाद में पत्नी को बिना गुजारे भत्ते के छोड दते हैं, बच्चे पर भी कोई मोह माया नहीं रखते तब ऐसे लोगों पर रोनेवाले क्या यह बताने का कष्ट करेंगे कि इन सालों में पत्नी किस किस तरह के दुख भोगती रही है? उनका बेटा कितनी मुसीबतों का सामना कर रहा है? यह तो भारतीय कानून का भी उल्लंघन है ना? शादी और परिवार हर व्यक्ति जी अपनी ज़िम्मेदारी है. पत्नी से आपकी नहीं बनती, छोड दीजिये उसे, मगर कानून और सामाजिकता का पालन करते हुए उसे गुजारा भत्ता तो दीजिए.
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