दिन बचपन के

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  • राजेश उत्‍साही
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  • बचपन के दिन इस तरह याद आएं
    टूटे हुए खिलौने जैसे बच्‍चे ढूंढ लाएं

    छुकछुक रेल की कूकू, वो पहाड़-पानी
    कभी गिल्‍ली-डंडा, बेबात शर्त लगाएं

    खेल आती-पाती,मिट्टी का घर-घूला
    बरसती धूप में ,जब अंटियां चटकाएं

    वो दादी की कहानी, गप्‍प नानी की
    बाबूजी डांट दें, गा लोरी मां सुलाएं

    सर्द हवा के मौसम को,बांध मफलर से
    सूरज की तलाश में, दिन भर दांत बजाएं

    गड़गड़ाहट बादलों की,कागज़ की कश्तियां
    राह चलते सड़कों पर पानी में छपछपाएं

    पेड़ों पर चढ़ना , वो लूमना डालियों पर
    फूटें कभी घुटने, तो कभी दांत तोड़ लाएं

    नीम की मीठी निबोली,सावन के वो झूले
    पेंग लें ऊंची गुईंयां, जम के हम झुलाएं

    घुटना टेक ही सही,या खड़े रहें बेंच पर
    फाड़ उसकी कापी से, हवाई जहाज बनाएं

    वो छुप-छुप के देखना, निहारना उसको
    रहना मोड़ पर,निकल के जब स्‍कूल जाएं

    काश कहीं हो बैंक अपने बचपन का
    उत्‍साही कुछ और लम्‍हे निकाल लाएं

    *राजेश उत्‍साही

    4 टिप्‍पणियां:

    1. सचमुच यह कविता बचपन के दिन की याद करा देती है !!

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    2. वो छुप-छुप के देखना, निहारना उसको
      रहना मोड़ पर,निकल के जब स्‍कूल जाएं

      ... सच में बचपन याद आ गया.

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    3. Sach..kya kalpna hai..! koyi bank ho bachpanka..! Ham sabhee, jinse, bachpan ne haath chhuda liya, wahan se lamhen utha laate aur fixed deposit me daal dete...yaa pinjreme band kar lete!

      http://shamasansmaran.blogspot.com

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    4. Great poem describing true emotions. seedhey dil ko choo gayi.

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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