कुछ दिन पहले का एक वाकया आज एकाएक याद आगया । मैं अपने घर पर था । सर्दियों के दिन थे , गांव के अन्दर आने के लिए सड़क से कच्चे रास्ते पर आना होता है । यहीं पर एक छोटी सी पान की दुकान है । जहां पर चाय पान और छोटी मोटी दैनिक प्रयोग की वस्तुएं मिल जाती है । हर शाम को लोगों कि यहां महफिल जमती है । मैं भी एक दिन मन बहलाने शाम को सड़क की तरफ चल दिया । कुछ चार पांच लोगों पहले से थे वहां पर । हम भी जाकर शामिल हो गये सब में। किसी खास मुद्दे पर बहस न हो रही थी सिवाय आसपास की चर्चाएं हो रही थी।
किसी ने बीच में सरकार और फिर पेट्रोल की कीमत बढ़ने की चर्चा कर दिया । सभी की अलग- अलग प्रतिक्रिया थी । किसी ने कहा कि- अब भैया गाड़ी से चलना बड़ा मुशकिल हो जायेगा । तो किसी ने कहा कि ये सरकार अच्छी नहीं है । मैने कहा भई सरकार क्या करे जब दुनिया में ही तेल और महगाई बढ़ रही है तब । एक भाई साहब ने हंसते हुए कहा कि - चाहे तेल का दाम बढे या न बढ़े कोई फर्क नहीं है हमको । पहले भी ५० का भरवाते थे । और अब भी पचास का भरवाते है । सभी हंसने लगे । तो रहा महगाई पर लोगों की एक छोटी सी राय मेरे गांव की ।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
हमने तो सरदार जी की पढ़ी थी.
जवाब देंहटाएंबढिया है...
जवाब देंहटाएं