मीडिया खुद खींचे लक्ष्मण रेखा

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  • prabhat gopal
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  • मुंबई पर हुए आतंकी हमले ने एक रहस्यमयी पिटारे को खोल दिया है। उससे निकले जिन्न से सभी तबाह हैं। पहली बार इस हमले ने इस बहस को जन्म दिया है कि हम मंत्री, पत्रकार या कर्मचारी होते हुए अपने देश और समाज के प्रति कितने संजीदा हैं। जब कोई चैनल सिर्फ दिखाने के लिए खबर चलाता है, कोई अखबार सिर्फ बिकने के लिए खबर छापता है या कोई व्यक्ति या दर्शक महज आत्मसंतुष्टि के लिए प्रतिक्रियावादी होकर भड़ास निकालता है, तब एक लक्ष्मण रेखा खींचने की जरूरत महसूस होती है। ऐसी रेखा जिसका हम सभी अनुपालन करें। मीडिया को ये देखना होगा कि क्यों वह सुरक्षात्मक मुद्दे पर हमले से पहले कमजोरियों की ओर ध्यान खींचने में विफल रहा। उसने क्यों उन मुद्दों को लेकर खोज या रिपोर्टिंग नहीं की?

    दूसरी बात एक दर्शक या टिप्पणीकार जब मीडिया को सीधे गरियाता है, तो वह अपने ही आईने को झूठ बोलता है। मीडिया वही चीजें दिखाता है, जो आम दर्शक पसंद करते हैं। ऐसा क्यों है कि जो बेहतर और गंभीर पत्रिकाएं या अखबार हैं, उन्हें अस्तित्व में रहने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। फिर हार कर बाजार के समीकरण के तहत उसे अन्य सस्ते माध्यमों की तुलना में ढल जाना पड़ता है। उसके पीछे कारण पाठक, दर्शक या आम वर्ग द्वारा उसे स्वीकार नहीं कर पाना ही है। हम उन्हीं चीजों को देखते हैं, जो उत्तेजना या सनसनी पैदा करती है। किसी चीज पर भड़ास निकालना या गाली देना समस्या का मूल हल नहीं है।

    एक बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि मीडिया को चलाने के लिए भी बाजार का सहारा चाहिए। हार कर मीडिया भी उन्हीं रास्तों पर चल पड़ा था या है, जो बाजार चाहता है। इलेक्ट्रानिक मीडिया की आरुषि हत्याकांड से लेकर अब तक की कई रिपोर्टिंग हमले से पहले गैर-जिम्मेदाराना रही। कई मामलों में उस पर उंगली उठी।

    मुंबई हमले के समय डायरेक्ट टेलीकास्ट ने आम दर्शकों को फिल्मी हिंसा से परे एक ऐसी दुनिया से परिचय कराया था, जो सिर्फ कल्पनाओं में था। अगर सरकार में बैठे लोग या बुद्धिजीवी इसके कुप्रभाव के बारे में सोचकर कुछ फैसला ले रहे हैं, तो इसके पीछे भी मीडिया के खिलाफ व्याप्त असंतोष ही कारण था। मीडिया इससे सबक लेते हुए जरूरी है कि एक लक्ष्मण रेखा खुद खींचे। नहीं तो मीडिया और पत्रकारों द्वारा मचाया जा रहा शोर उस विस्फोट में दब जायेगा, जो धीरे-धीरे बैलून में हुए छेद के कारण कभी भी हो सकता है।

    13 टिप्‍पणियां:

    1. aapne bilkul sahi kaha media ko sanzida dhang se mil baithh kar is baat par vichaar karnaa chahiye ek doosre se hod lete huye kuchh bhi dikhaana theek nahi media apni jimedaari samjhe ekachhe smaaj ke nirmaan me jo bhumika media nibhaa sakta hai vo aur koi nahi kar sakta aur sab se pahle media ko smaaj ke girte mulyon ke prati schet honaa hoga kripa aise masle par baar baar likhen dhanyaabaad

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    2. मीडिया खुद खींचे लक्ष्‍मण रेखा
      में प्रभात गोपाल ने जिस पहलू
      की ओर ध्‍यान दिलाया है
      उन पर गौर न करना
      गुब्‍बारा बना देगा
      गुब्‍बारा फूट तो सकता है
      छेद न भी हो तो भी
      अधिक दिन कायम
      रह सकता नहीं
      इसलिए दरकार यही
      कि मिलकर विचारें
      रेखा को खुद ही खींचें
      इस सच्‍चाई से
      न हम आंखें मींचें
      अपने विचारों, निर्णयों
      से इसे अवश्‍य सींचें।

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    3. आपने सही कहा...किसी भी चीज़ की अति होना खतरनाक है।हर चीज़ की कोई ना कोई सीमा होना आवश्यक भी है और वक्त का तकाज़ा भी यही है।लगाम कसना ज़रूरी है..अब चाहे मीडिया वाले इसे खुद कसें या फिर इन बेलगाम टट्टुओं को काबू में रखने के लिए ये काम जबरन सरकार द्वारा किया जाए।

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    4. लक्ष्मण रेखा की अवश्य ही जरुरत है। आजकल तो न्यूज एक समाचार चैनल ना होकर एक मनोरंजन चैनल हो गए है। अब तो हमारी बैठक ही खत्म हो गई है। कभी पहले सभी मेम्बर न्यूज सुनने के लिए इकट्ठे हो जाते थे पर अब नही।

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    5. सिर्फ यह कहने से कि "मीडिया अपनी लक्ष्मण रेखा खुद खींचे" बात बनती नहीं है. आपको यह समझना होगा कि मीडिया को चला कौन रहा है, मीडिया की नैतिकता और मूल्य किन बातों से किन लोगों के द्वारा तय किए जा रहे हैं... आप एक भी उदाहरण ऎसा नहीं ढूंढ सकते हैं जब मीडिया ने कुछ किया हो और उसके पीछे अपने TRP का ध्यान नहीं रखा हो. जब किसी की अच्छाई और बुराई का पैमाना TRP हो तब आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे इसके परे जाकर कुछ दिखा सकते है, कुछ लिख सकते हैं..? सवाल यह भी है कि मीडिया का जो रूप हमें देखने को मिल रहा है वो किस विचारधारा की पैदाइश है और उसके क्या मूल्य हैं... क्योंकि आज का मीडिया और उसमें इस्तेमाल होने वाले उपकरण न तो विचारधारा निरपेक्ष हैं न ही मूल्य निरपेक्ष.
      जरूरत है एक नए मीडिया की जो विचारधारा और मूल्य निरपेक्ष हो... इसके बिना ये सारी कवायद किसी नूरा कुश्ती से ज्यादा कुछ नहीं है...

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    6. पिछले चार-पाँच सालॉ से देख रहा हूँ भारतीय इलेक्ट्रानिक मीडिया दिन ब दिन गैर-ज़िम्मेदार होती जा रही है. आपने बिलकुल सही कहा कि मीडियाकर्मी बन्धुऑ को बैठ कर संजीदगी से विचार करना चाहिए कि उन्हे किन सीमा रेखाओ के भीतर रह कर काम करना है.मुझे याद वो वक्त जब अमेरिका मॅ आतंकी हमला हुआ था और ट्विन टावर गिर चुके थे. इस मॅ समझ्ने वाली बात यह है कि अमेरिका मॅ तो वह दृश्य टी.वी. पर सिर्फ 10 से 20 बार ही दिखाया गया लेकिन भारत मॅ वही दृश्य बार बार दोहराते हुए करीब 1500 बार टी.वी पर दिखाया गया.मेरा यह कहने का सिर्फ इतना आशय है कि इस तरह की कुचेष्टा नागरिकॉ मॅ कोई सकारत्मक सन्देश नही प्रसारित करती अपितु भयानकता बढ्ती है लोगॉ मॅ. आपका लेख मीडियाकर्मी बन्धुऑ को आत्मावलोकन करने के लिए प्रेरित करेगा. अच्छे लेख के लिए आपको बधाई संग धन्यवाद.

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    7. न्यूज़ चैनल जो कुछ दिखा रहे हैं वह सब वही है जो दर्शक देखना चाहता है यह अर्ध सत्य है। मनोहर कहानियां शैली की अपराधोंकथाएं मदारी के अंदाज़ में डमरू बजा बजा के, बातों की जलेबियां बना बना कर दिखाया जाना सिर्फ फुरसतिया लोगों, पान की दुकानमार्का लोगों को आकर्षित करने का टोटका है। इसी स्तर की खबरें ज्यादा होती हैं।
      इन्हें सुधरना हो तो सुधरें, चाहे न सुधरें । हमने न्यूज चैनल देखना बंद कर दिया है।

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    8. ajit ji,aapki baaton se bahur had tak asahmat nahin hua ja sakta.aaj media ki majburi ban gayi hai ki wo aise elements ko bhi jagah de jise shayad dikhaane waale bhi nahi dekhna chaahein,jise vyavasaayik majburi kah sakte hain.
      par,iska matlab yah kadapi nahin ki media ne sirf bakwas reporting hi kari hai.
      aaj ki marketing ki daud na picchadne ke liye kuchh ek channe thode aise samgri jarur rakhte hain jise sahi nahi thahraya ja sakta.par iske liye yah to nahin kar sakte ki ispar bahar se koi lagaam laga dein.
      kyonki yah to fir samvidhan ki awhelna hogi jiske tahat hamein abhivyakti ki swtantrata hai...
      par,is bat se bhi inkaar nahi kiya ja sakta ki ek chhote se hi sahi par niyantran rekha ki jarurat hai par iska nirdharan khud merdia ko hi karna hai na ki sarkar ya kisi any dusare sangathan ko......
      SABSE AHAM BAAT,INDIA MEIN MEDIA(ELECTRONIC,DD KI BAT NAHIN KARTE) KO JANME ABHI JYADA WAKT NAHIN HUA,USPAR SE BEINTAHAA PROLIFERATION TO THODA WAKT TO LAGEGA HI SANYAT HONE MEIN.
      so,just wait and watch!
      everything gonna fine...
      ALOK SINGH SAHIL"

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    9. आपने बहुत अच्छा लिखा है लेकिन एक जगह आप गलती कर गये जी ध्यान दे लक्षमण ने रेखा सीता जी के लिये खीची थी अपने लिये नही और मीडिया भी ये रेखा खीचना तो चाहता है लेकिन दर्शको के लिये और सरकार के लिये देश के लिये खुद को तो वो आजाद ही रखना चाहते है वर्ना इतनी नग्नता गंदगी और भूत प्रेत जैसा घटियापन वो कैसे दिखा पायेगे जी ?
      कैसे नवभारत टाईम्स दुनिया भरकी गंदगी को यहा परोस पायेगा ?
      कैसे सेक्स पर विदेशी अवधारणा को भारत मे इम्पलीमेंट करने की विदेशी कार्य योजना यहा फ़लीभूत हो पायेगी जी बताये ?

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    10. अजित वडनेरकर जी की बात से सहमत हूं. हां हमने अभी न्यूज चैनल देखना बन्द नहीं किया है.

      प्रविष्टि के लिये धन्यवाद.

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    11. media iske bare mein kiyaa kahe no words lolzzz

      nice post ji


      http://shayaridilse-jimmy.blogspot.com/

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    12. saari baaton se sahmat hote hue bhi main yahi kahoonga ki yeh necessary evil hai. is par lagaam lagaane ka matlab desh me lakhon tanashah paida karna.

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
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