चुप...आखिर कब तक ???
स्वर चुप,
दृष्टि मूक,
शांत गुन्जन,
देश स्तब्ध.
लोक त्रस्त,
नेतृत्व पस्त,
तंत्र भ्रष्ट,
ह्र्दय दग्ध,
देश स्तब्ध.
जीवन रुग्ण,
जीवित मृत,
यौवन पथ-भ्रष्ट,
भविष्य तम,
घनघोर तम,
असहाय हम,
सूर्य मूक,
चन्द्र सुप्त,
भारत ध्वस्त,
भारत ग्रस्त,
भारत त्रस्त,
आखिर कब तक ???
चुप...आखिर कब तक ???
Posted on by मनुदीप यदुवंशी in
Labels:
देश त्रस्त,
नेता भ्रष्ट,
भारत ग्रस्त
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
bahut achchhi kavita. hindi blogers me main nayi hoon, aap logo ke samane sagar me ek boond ki tarah margdarshan apekshit hai.
जवाब देंहटाएंशब्दों की इतनी कंजूसी क्यों की गयी है।
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में विसंगतियों पर चोट करने का मतलब ये नहीं कि बिलकुल ही मक्खीचूस बन जाओ। शाब्दिक विस्तार से रोचकता बढ़ती है। पाठको को आमंत्रित करती है। ये भी काव्य का एक गुण होता है।