... और किस से पूछूं हे ईश्वर तेरा पता....अब तू ही बता...

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  • मनुदीप यदुवंशी
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    सुबह की ओस से-
    जो गुलाब पर सो रही थी,
    तुम्हारा पता पूछा, वह बोली-
    सूरज की किरण से पूछो,
    किरण ने कहा-
    रात के स्वप्न से पूछो,
    स्वप्न बोला-
    मेरी ताबीर से पूछो...
    मह्कती हवा से पूछो...
    मै तड़प कर बोला- क्या कोई नहीं जानता ?
    फिर मेरे भीतर से अवाज आई-
    “मुझसे पूछो मुझे मालूम है...”
    "आंख बन्द करो और देख लो..."
    अब तुम ही बताओ मैंने क्या पाया...?

    4 टिप्‍पणियां:

    1. एक व्यंग्यकार भी इतनी सुघड़ और गंभीर कविता ब्लाग पर डाल सकता है, यह अविनाश दा से कोई सीखे। बहुत खूब! अरे मैंने ऐसे ही आपको अपना हमसफर थोड़े ही चुना है! बधाई। एक जनवरी को मेरी रचना भी नीचे के पते पर पढ़े-
      http://www.skpoetry.blogspot.com
      http://www.sushilkumar.net/
      धन्यवाद और वर्षांत की अनंत शुभकामनायें।

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    2. शायद यह मनु ने लिखी है। खैर... कोई बात नही> दोनो जन बधाई लें।

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    3. सुशील जी बहुत बहुत धन्यवाद कि आपको मेरी कविता भा गई मेरा नाम मनुदीप यदुवंशी है और मै आपक नया साथी हूँ

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    4. bahut sundar kavita..nav warsh ki haardik subhkaamnaaye

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    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
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