लगभग 60 घंटे के ऑपरेशन के बाद... जद्दोज़हद के बाद मुंबई को आतंकी हमलों से मुक्त किया जा सका, सब ने देखा अपने-अपने टी. वी. पर। अब जब सब शांत हो गया है, ठहर गया है, हमने हमले में क्या खोया और क्या पाया, यह गंभीरता से विचारने का सवाल है। लगभग पौने दो सौ लोगों की जानें गयीं, ए.टी.एस के तीन बड़े अधिकारी शहीद हुए, दो एन.एस जी के जवान और कुल चौदह पुलिसकर्मी भी मातृभूमि की रक्षा में आतंकी निशाने के शिकार हुये। दर्जनों विदेशी मारे गये। मृतकों के परिवार को ढेर-सी सांत्वना और शहीदों के परिवार को पैसे, घर और रिटायरमेन्ट तक वेतन मिलेंगे, शहीदों को श्रद्धांजलियाँ दी जा रही हैं। चुनौतियों और जलवा का जो मिश्रित अनुभव इस देश को हुआ है, वह देश के सुरक्षा से जुड़े कई सवाल खड़े करता है जिस पर पाठकों की राय और चिंता वाज़िब होगी --
1) क्या इसे अपने देश के इंटेलिजेन्स की असफलता मानी जाय क्योंकि मुंबई पर हमला की योजना कई महीनों से चल रही होगी, जैसी ख़बरें आ रही है? पर इंटेलिजेन्स ने सही समय से नहीं इत्तला किया।
2) जब आतंकी समुद्र मार्ग से आये थे तो कोस्टल गार्ड क्या कर रहे थे ?
3) महीनों से ताज़ होटल में रह रहे आतंकी-गतिविधियों पर होटल-मैनेजमेन्ट की भी नज़र क्यों नहीं गयी ?
4) मुम्बई के राज ठाकरे चुड़ियाँ पहनकर कहाँ छिपे हैं? उनके मुँह में घाव हो गयी या गले में ?? और उनके हिज़रों की फौज़ महाराष्ट्र की किन गलियों में छुपी है ???
5) दिल्ली के प्रस्तावित आम चुनाव में बलिदानी शहीदों के नाम पर जो राजनीतिक पार्टियाँ ताजा वोट माँग रही हैं, जबकि अभी शहीदों की अंत्येष्टि भी होना बाक़ी है, क्या यह राजनीतिक दलों की बेशर्मी का अन्यतम नमूना नहीं है ?
6) मुंबई के आतंकी हमले क्या इस देश के राजनेता के गिरते चरित्र का प्रमाण नहीं है ?
7) जब भी कहीं इस तरह के हमले होते हैं तो केन्द्र सरकार और राज्य सरकार अपना-अपना राग अलापती है। क्या इस देश में फेडरल फोर्स (federal force) के गठन की आवश्यकता नहीं है?
8) इस देश में कॉमन आदमी का क्या कसूर है ?
9) आठ किलो तक आर.डी एक्स के दो बम एन. एस. जी. ने शिनॉख़्त किये हैं। अगर यह धमाके हो जाते तो कितने लोग मारे जाते ? ताज का ताज और भारत का ताज कितना मुक्कमल रहता ?
10) जब भी हमारे देश पर इस तरह के खतरे आते हैं तो देश के सैनिक लड़ते हैं, बलिदान होते हैं। सैकड़ों आम आदमी मौत के घाट उतारे जाते हैं। क्या राजनेता अपना ख़ून बहाते हैं ऐसी हालातों में ?
11) क्या फिर समय के बीत जाने के बाद सरकार इसे भूल जायेगी और नॉर्मल हो जायेगी या, इस तरह के संकट से निपटने के लिये उनके द्वारा कोई ठोस उपाय निकाले जायेंगे ?
12) जो आतंकवादी देश और संगठन इसमें शामिल हैं ,क्या उनकी जाँच के बाद हमारी सरकार इस देश की जनता के हित में उन पर कार्रवाई के लिये कोई ठोस निर्णय ले पायेगी ? आप से अनुरोध है कि इन गम्भीर सवालातों पर विचार करें और नीचे अपनी टिप्पणी दें।
मुंबई (देश की आर्थिक राजधानी) के आतंकी हमले से जुड़े बारह सवाल - सुशील कुमार
Posted on by Sushil Kumar in
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
ganit kamjor hai. sawalo ke uttar hee nikal pate to mahangai hoti kya. narayan narayan
जवाब देंहटाएंबहुत सही सवाल उठाए हैं।यह सब सिर्फ कुर्सी के लिए शहीद होने को तैयार हैं। यह खून नही बहा सकते यह जनता का खून पीनें के आदि हो चुके हैं। राज जैसे नेता सिर्फ निहत्थों पर अपनी मर्दानगी दिखा सकते हैं।
जवाब देंहटाएंऔर हम जैसे लोगो के हाथो मे कोई ताकत नही है सिर्फ वोट के सिवा। जिनके पास ताकत है वह अपनी सारी ताकत कुर्सी पानें मे और उसे बचाए रखनें मे लगाए रहते हैं।
सुशील जी लाजवाब आपने मुंबई मामले में जो सवाल खङा किये हैं यह सवाल सभी भारतीयों का हैं। बाटला हाउस से चला मेरा सफर मालेगांव होते हुए आज सुबह होटल ताज पहुंचा हैं।चारो और गोलियो की तरतराहट के बीच मैं अमर सिंह,मुलायम सिंह यादव,लालू प्रसाद के साथ साथ गृहमंत्री शिवराज पाटिल,लालकृष्ण आडवानी और अपने मराठी मानुस पर दंभ भरने वाले राज ठाकरे ।गोली का जबाव गोली से देने वाले महाराष्ट्र के गृंहमंत्री आर आर पाटिल, सोनिया गांधी ,मनमोहन सिंह और बटला हाउस में मारे गये छात्र को लीगल ऐड देने की बात करने वाले अलीगढ विश्वविधालय के कुलपति को होटल से निकल रहे लहुलुहान लोगो के बीच बेशब्री से मैं खोज रहा था। आधे घंटे बीत गये धीरे धीरे दिन बीतने लगा लेकिन भारत मां के ये सच्चे सपूतों कही दिखाय़ी नही दे रहे थे।ऐसा लग रहा था की भारत आज सपूत विहीन हो गया हैं। एन0एस0जी0और भारतीय सेनाओं द्वारा सुरक्षित निकाले जा रहे विदेशी सैनानियों से इन सपूतों का हाल जानने के लिए देर शाम तक प्रयास करता रहा लेकिन सबों का बस एक ही जबाव था नो कौमेंट्स। थक हारकर मैं ताज के सामने मुरझाये केंकटस के पेङ के सहारे बैठकर इन सपूतो के हाल पर सोचने लगा।किस हाल में होगे हमारे यह सपूत जिसने बाटला इनकाउण्टर में शरीद हुए मोहन शर्मा के शहादत पर चंद वोट के लिए सवाल खङा कर दिया था।आज तो मुंबई पुलिस के कई जाबांज अधिकारी शहीद हुए हैं भारतीय मानस इस मसले पर इनकी राय जानने के लिए बैचेन हैं।आज उन पत्रकारों के कलम का क्या होगा जो मुठभेंङ पर सवाल खङा कर अपना सेकुलर चेहरा सामने लाने के लिए बैचेन रहते हैं अभी तो लाईभ कभरेज पर मुंबई पुलिस के शहीद हुए जाबांजों के शहादत पर कसिदे गढ रहे है पता नही कल ये क्या लिखेगे। तभी होटल के एक कमरे से महाराष्ट्र के गृहमंत्री के चिल्लाने की आवाज आयी यह हमला मंबुई पर नही देश पर हैं। मुझे लगा कि वाकय हमारे देश के सपूत संकट में हैं तभी बरबस याद आया कि अंदर फंसे सपूतों में बैशाखी पर चल रहे मनमोहन का क्या हाल होगा इस हालात में भी अपनी कुर्शी को बचाये रखने के लिए कोई न कोई डील जरुर कर रहे होगे।वही दूसरी और हर किसी की जान सासत में हैं उस हालात में भी सोनिया मैडम को सिर्फ राहुल और प्रियका की चिन्ता सता रही होगी औऱ आडवानी जी प्रधानमंत्री की कुर्शी पाने के लिए संसद पर हुए हमले को देश के स्वाभीमान से जोङने के जुगार में लगे होगे।तभी जोङदार धमका हुआ आंख खुली तो सामने ताज होटल के कमरो से आग की लपटे निकलते दिखाई दी । मैं कुछ सोच पाता इसी बीच हाथ में तख्ति लिये कुछ कांलेज के छात्र काली पट्टी बांधे मां मां करते हुए पास से निकल गये।तख्ति पर गौर किया तो उस पर कई सवाल हमारे सपूतों से पूछा गया हैं।बाटला कांड के बाद वोट बैंक के लिए जिस तरीके से मुस्लिम तुष्टीकरण का दौङ शुरु हुआ और उससे निपटने के लिए सरकार ने हिन्दू आतंकवादी को स्थापित करने के लिए मंबुई एटीएस को पूरी छूट दे दी जिसका नतिजा आज सामने हैं।पहली बार आतंकियों ने वो कर दिया जिसकी कल्पना भी नही की जा सकती।और इस पर नियत्रंण करने के लिए गठित एटीएस के पास मुंबई को उङाने के लिए हो रही इतनी बङी साजिस की भनक तक नही थी।दूसरी तख्ति पर लिखा था, एटीएस अपनी नकामी को छिपाने के लिए अपने आलाधिकारी तक को दाव पर लगा दिया।वही मोहन शर्मा के शहादत के बाद उठे सवालो ने उन चंद जाबांज सिपाही का मनोबल तोङ दिया जिसके बल पर आज तक हमने दहशत गर्द के मनोबल को तोङते रहे।ऐसे कई सवाल तख्ति पर लिखा था इसी बीच खून से लतपथ बीस साल का एक युबक हाथ में सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्ता हमारा का तख्ति लिए पास से गुजर रह था बरवस लगा की इस युवक को पहले कही देखा हैं सामने गया तो देखा यह तो वही राहुल हैं जिसे मार कर पूरी मुंबई पुलिस गौरवान्वित महसूस कर रहे थे।मैंने पूछा तुम मंबई के इस जनाजे मैं क्यों शामिल हो गये कहा यही बात तो है सब मिट गये इस जहां से लेकिन कुछ बात यही हैं कि आज भी हमारी नामों निशा बाकी हैं।राहुल की बात सुनकर मुझे लगा की मैं ताज की घटनाओं पर कुछ ज्यादा ही भावूक हो गया था।झटपट में उठा औऱ दूसरे सफर के लिए निकल पङा।
जवाब देंहटाएंआतंकवाद पर वैचारिक युद् जारी रखिये,आपकी रचना पंसद आयी। आतंकवाद को लेकर जारी अभियान की कङी में मैने एक और विस्फोट अपने ब्लांग पर किया हैं।उम्मीद हैं पंसद आयेगा। ई0टी0भी,पटना
जवाब देंहटाएंkoi jawab nahi hai ji
जवाब देंहटाएंक्षमा करना मेरे पूर्वजों, मैं हिजड़ा बन गया हूँ!
देशद्रोही न्यूज चैनलों का बहिष्कार करें… मैंने भी किया है आप भी कीजिये… ये न्यूज चैनल नहीं हैं यह गिद्धों का एक झुंड है… जितनी जल्दी हो सके प्रिंट मीडिया का दामन थामें… नहीं चाहिये "सबसे तेज खबर हमें…"
जवाब देंहटाएं१) भारत की इंटेलिजेंस "रॉ" पर तो मेरा भरोसा कभी रहा ही नहीं। मेरे पैदा होने से पहले ही भारत पर कितने हमले हुये, किसी की खबर भारतीय "इंटेलिजेंस" को नहीं हुयी!
जवाब देंहटाएं२) भारत में कर्मचारियों की नियुक्ति में "जान पहचान" और "अप्रोच" के बोलबाले के चलते निकम्मे लेकिन जुगाड़ू व्यकतियों की चाँदी हो रही है। "देश गया भाड़ में, पहले चाय-पानी तो कर लेने दो"। मुझे अपने देश के इन रखवालों पर पूरा विश्वास है कि वे सारे मिलजुलकर कहीं सो रहे होंगे।
३) होटल में रहनेवालों और काम करनेवालों का रोज़ बहुत से लोगों से संपर्क होता है लेकिन ५-१० मिनट से ज्यादा किसी के पास समय नहीं होता। खासकर बड़े शहरों में वैसे ही आदमी एक-दूसरे से सिर्फ हाय-हैलो करता ही नजर आता है, किसी के दूसरे को सुनने-देखने के लिये न समय है और न ही चाहत। और आतंकियों के माथे पर नहीं लिखा होता कि वे आतंकी हैं। आस्तीन के साँप सामने से हमेशा ही मुस्कुराते हैं, और पीछे से डंक मारते हैं।
४) यह बहन का --- राज ठाकरे अब साला केक पर पाकिस्तान लिखकर उसको तलवार से काटकर तो दिखाये! राज ठाकरे और ISI के एजेंट में कोई फर्क नहीं है - दोनों ही भारत को तबाह करने पर तुले हुये हैं। राज की चुप्पी उनकी सच्चाई उगलती है।
५) गणित देखिये: आदमी - शर्म +लालच = राजनेता
६) बिंदु ५देखें
७) भारत विषमताओं का देश है। इस देश को एक रखना किसी के बस की बात नहीं है, फिर चाहे वह नागरिकों की एकता हो या federal force की। और ऐसी किसी भी एजेंसी का गठन आतंकवाद के जवाब में नहीं, बल्कि राजनीति के चलते ही हो सकता है।
८) इस देश में आम आदमी का यह कसूर है कि हर ५ साल में वह फिर से उन्हीं को वोट डालने पहूंच जाता है जिन्होनें उनका और इस देश का खून पिया है। शर्म आती है मुझे भारत पर जहाँ लोग धर्म के नाम पर सड़कों में तलवार लेकर उतर पड़ते हैं, लेकिन भ्रष्ट सरकार और राजनेताओं की चमचागिरी करते बाज़ नहीं आते।
९) आठ किलो RDX से ताज जैसे बड़े होटल को पूरी तरह से ध्वस्त किया जा सकता है। ध्यान रहे यह वही RDX है जिसे पहाड़ों और चट्टानों को चूर किया जाता है।
१०) "जा के पैर ना फटी बिवाई, वा का जाने पीर परायी" - जिस दिन दर्जन भर राजनेता आतंकवादियों द्वारा मारे जायेंगे, शायद उस दिन राजनेताओं की नींद टूटेगी। लेकिन राज ठाकरे औत मोदी जैसे नेताओं को z-grade security के होते ऐसा कभी नहीं होगा।
११) आम आदमी की जान दो कौड़ी से भी सस्ती होती है। कोई उपाय-वुपाय नहीं निकलेगा। आम आदमी को सड़कों पर उतरना होगा, ताकि राजनीति में आतंक का बोलबाला जड़ से उखाड़ा जा सके।
१२) पाकिस्तान ने खुलेआम भारत पर हमले किये हैं। और आगे भी करता रहेगा। हमारे माननीय नेता संयुक्त राष्ट्र की महफिल में सबूत ही देते रह जाते हैं हर साल। 250 करोड़ संख्या की सेना होने के बावजूद राजनैतिक मूल्यों की कमी होने की वजह से भारत सैन्य दृष्टि से नपुंसक है। दूसरी ओर चीन और अमेरिका जैसे देश अपनी रक्षा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते।
ऐक और टिप्पणी: कुछ महीने पहले श्रीमान महापुरुष नरेंद्र मोदी कह रहे थे कि उन्हें आतंक से लड़ने का "एक मौका" दिया जाये। उन्हीं के गुजरात की परिधि से आतंकी नौका में बैठकर आये थे। और आज वह ही बाकी सबपर लापरवाह होने का दोष मढ़ रहे हैं।
इस समय भारत के लोगों को ज़रूरत है सड़कों पर अराजकता के खिलाफ आंदोलन करने की - "तुम हमें सुरक्षा दो, नहीं तो लात खाओ"
कुमार साहब ! आपके सभी 12 सबाल ज़ायज हैं। किन्तु इस देश की यह विडम्बना है कि हमलोग बहुत जल्दी ही किसी अच्छी-बुरी घटना को भूल जाते हैं। हमारे अंदर का कुछ मर गया है शायद! रहा सबाल इस देश के नेताओं का तो वे तो कब के ज़िन्दा लाश बन चुके हैं। इनके तो अपने भी मर जायं तो इन पर असर परने वाला नहीं। सरकार में बैठे लोग बेशर्मी और हिज़रेपन की ऐसी हालत में पहुँच गये हैं, जहाँ से वापस आना इनके लिये सम्भव नहीं।
जवाब देंहटाएंदेखना यह है कि अब आगे क्या होगा? जनता में समझ कब आएगी? क्योंकि यह् तो लोकतंत्र है ना?
इतने महत्वपूर्ण विषय पर सिर्फ़ आठ ही लोगों के विचार ? आप भी अपनी टिप्पणी दें और अपने विचार से देशवासियों को अवगत करायें !
जवाब देंहटाएंकुछ नहीं होगा यहां, कुछ करने की नौबत आती है तो pseudo धर्म-निरपेक्षता के मारे सब कुछ चौपट हो जाता है.
जवाब देंहटाएंकरनाल की संस्था हिफा के निदेशक पीयूष जी का एसएमएस पढ़ें
जवाब देंहटाएंयह मेरे मोबाइल पर आया
आप सभी में बांट रहा हूं किः-
where is Raaj Thakre ?
Tell him that 200 nsg commondos from delhi (all north indians) being sent 2 fight the terrorists. So that he and his "Marathi Manus" can sleep peacefully.. Now tell him to ask them to leave Mumbai ! Please send this msg to all indians. So atleast Mr. Raj will get this message somehow.
Very well said !
जवाब देंहटाएंउत्तर 1 - इंटेलीजेंस पानी में पानी पानी हो गई।
जवाब देंहटाएं2 - कोस्टल गार्ड अपने लिए पीने के पानी का इंतजाम कर रहे थे।
3 - क्योंकि उनकी जेबें भर दी गई होंगी या उम्मीद होगी कि टिप अच्छी मिलेगी इस बार।
4 - राज ठाकरे के नाम का पहला अक्षर सब राज खोलता है कि उनका राज है, वे चाहे पलंग के नीचे छिपें या उनके कारिन्दे नालियों में - सब जगह उनकी मनमानी है और उनके हिजड़ों का जत्था कहीं पर नाच गा रहा होगा, आखिर राज का राज है।
5 - बेशर्मी का नमूना नहीं रिकार्ड है, इसे गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज किया जाना चाहिये
6 - चरित्र उठे या गिरे, वैसे नंगों का भी कोई चरित्र होता है क्या ? राजनेता तो नंगे ही होते हैं। किसी को आपत्ति हो तो दर्ज कर सकता है।
7 - आवश्यकता है तो आविष्कार भी हो ही जाएगा। धैर्य रखें।
8 - कामन आदमी दूसरों के कसूर देखता है, यही उसका कसूर है।
9 - इसका हिसाब लगाने की जरूरत नहीं है, चैनल पहले से ही हिसाब लगाकर तैयार बैठे हैं। आप एस एम एस भेजने के लिए मोबाइल तैयार रखें।
10 - खून नहीं बहाते तो क्या हुआ मुंह तो चलाते हैं, क्या यह आसान काम है ?
11 - संकट से कटने का उपाय उसे भूलना ही है, आप ही कौन सा याद रखेंगे और याद रख कर होगा भी क्या, कोई इम्तहान थोड़े ही देना है।
12- निर्णय तो अवश्य लेगी, आश्वासन भी देगी पर
सिर्फ अमल नहीं करेगी।
अनिल, संतोष और बाली जी ने भी सवाल सही उठाये हैं - वैसे सवाल जवाब सभी लाजवाब हैं।
जवाब सभी लाजवाब - समझे आप ?
नारद जी - सवालों के जवाब हैं इसीलिए तो महंगाई है, पर वे जवाब असरदार नहीं हैं।
सुरेश चिपनूलकर जी - चैनलों का बहिष्कार करने के लिए भी चैनलों की दरकार है, नहीं तो कोई सुनेगा देखेगा कैसे ?
नुक्कड़ पर इस ज्वलंत मुद्दे पर पोस्ट के लिए सुशील कुमार जी का और सभी प्रतिभागियों का आभार।
इसी तरह नुक्कड़ पर मौजूद रहिए।
आपका अपना नुक्कड़ ।
बहुत खूब अविनाश भाई ,सुना था किसी कविता में ही कि हर आदमी अपने कपड़े के पीछे नंगा होता है।पर आज पहली बार आप से सुना कि राजनेता कपड़े में भी नंगे हैं आज। बहुत धन्यवाद आपको टिप्पणी के लिये और उपर दर्ज़ करने वाले अपने तमाम नुक्कड़ साथियों को भी।
जवाब देंहटाएं-सुशील कुमार।
भाई
जवाब देंहटाएंएक सवाल और आखिर साला ताज़ होटल कबसे भारत का ताज़ हो गया? भारत क आईकन वह सीएसटी क्यो नही जहाँकि रोज़ हज़ारो भारतीय आते जाते है?
चर्चा के केन्द्र मे अकेला वह ताज़ क्यो जहाँ की एक रात की कीमत करोडो लोगो के साल भर के खर्च से ज़्यादा है।
यह असहमति नही…बस एक सवाल है
बिल्कुल सही सवाल है भाई अशोक कुमार पाण्डेय का ! और यहाँ साथ ही मैं यह जोड़ना चाहूंगा की जब रेस्क्यू आपरेशन हुआ तो उसमें कुछ राजनेता भी बिलबिलाते हुए बाहर आए थे ! उन्ही में से एक साहब 'बस्ती' जैसे उत्तर प्रदेश के छोटे से गुमनाम से प्रदेश से, बी एस पी के सांसद भी थे ....कुछ भला सा नाम था !
जवाब देंहटाएंखैर... सवाल यह है की छोटी छोटी जगहों से , भारत की गरीब जनता का प्रतिनिधित्व करते यह सफेदपोश खद्दरधारी नेता - ताज जैसे महंगे होटल में क्या कर रहे थे ? एक ने कहा - "मुझे तो ज्यादा पता नही लगा , मैं तो अपने चुनावों की रन निति तैयार करता रहा अपने लेप टॉप पर...हाँ अलबत्ता कुछ गोली चलने की आवाजें ज़रूर बीच बीच में आ रही थी और हमें होटल वालों की तरफ़ से यह हिदायत थी की हम अपने कमरे में से बाहर ना निकले....! तो मेरे लिए यह एक अच्छा फुर्सत का समय निकल आया था , सो मैं तो अपनी रैलिओं की रूप रेखा बनाने में बिजी रहा ॥"
तो साहब जब भारत के सेवक अपना चुनावी कार्यक्रम ताज जैसे महंगे होटलों में बैठ कर बनायेंगे तो फ़िर उस जगह को , भारत के गौरव और शान की पहचान का दर्जा देने में हमें क्या आपत्ति हो सकती है भला ???