बिना जोखिम का बेमिसाल धंधा

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  • अविनाश वाचस्पति
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  • इंटरनेशनल मार्केट में भीख का धंधा इतना मलाईदार है कि गाढ़े से गाढ़े दूध की मलाई भी इससे होने वाली कमाई को देखकर पानी पानी हो जाए। इतना चमकदार है कि दीवाली की चमक दमक की इसके सामने क्‍या बिसात है और इसमें न हींग लगती है न फिटकरी लगती है पर रंग सदा चोखा ही रहता है क्‍योंकि इसमें निवेश के नाम पर सिर्फ और सिर्फ इज्‍जत गिरवी रखनी होती है वैसे भी जिंदगी भर संभाले रखो पर इज्‍जत मुई आती ही किस काम है। वैसे भी यह एक कड़वी सच्‍चाई है कि इज्‍जतदार का तो यश भी कम होता है। नाम तो उसका होता है जो खूब बदनाम होता है और उसमें किसी के द्वारा भूल जाने का जोखिम भी नहीं होता। तो भीख के इस सनातन अंतरराष्‍ट्रीय व्‍यवसाय में नकद नारायण का निवेश तो होता ही नहीं है पर रिटर्न अच्‍छा मिलता है। इस रिटर्न को देखकर यदि इस लेख से प्रेरित होकर शेयर बाजार में निवेश करके पैसा बढ़ाने की जुगत भिड़ाने वाले लालची लोगों की जमात इस ओर भी रुख कर ले तो क्‍या आश्‍चर्य।

    वो तो कर ही सकते हैं जो अपना सब कुछ नहीं तो बहुत कुछ तो गंवा ही चुके हैं और हर गिरावट पर गंवाना जिनका अधिकार है क्‍योंकि शेयरों के मूल्‍य चढ़ने पर वे लालच के वशीभूत हो प्राफिट तो बुक नहीं कर पाते परन्‍तु गिरने पर लॉस अवश्‍य बुक कर लेते हैं फिर जी भर कर बिसूरते हैं कि काश हमने इतना लालच न किया होता, बढ़े चढ़े बाजार में कमा लिया होता। पर वे कभी अपनी लालची आदत से बाज नहीं आते हैं और उनके साथ हर बार ऐसा ही होता है। आपको एक करोड़ का एक ट्रेड सीक्रेट और बतलाता हूं जिसे जानकर अवश्‍य ही आपका दिल भी बिल्लियों की तरह उछलने लगेगा, पता नहीं बिल्लियों उछलने का मुहावरा कैसे बना जबकि बिल्लियों उछलने का तो खूब जमता है। हम नहीं जानते कि कैसे बल्लियों उछला जाता है जबकि बिल्लियों और बंदरों को खूब उछलते हम सबने बखूबी देखा है। कहीं मैं रौ में बह जाऊं और ट्रेड सीक्रेट , घोर सीक्रेट ही न रह जाए इसलिए पहले यही बतला देता हूं कि इस धंधे में कभी घाटा नहीं होता। मंदी आ सकती है। इस धंधे में लगा व्‍यक्ति कभी खुदकुशी नहीं करता है। जबकि शेयर बाजार की फिलासफी इससे बिल्‍कुल उलट है।

    जब कुछ इंवेस्‍ट ही नहीं किया तो खोने का क्‍या भय, सिर्फ पाने की ही सौगुनी, हजारगुनी उम्‍मीदें। विश्‍वास पर टिका व्‍यवसाय। इसके लिए कभी सरकार को चिंतित नहीं होना पड़ता कि इसमें घपला किया जा रहा है।सेबी और एफ एम तक इससे चिंताग्रस्‍त नहीं होते, और आज तक का रिकार्ड है कि उनके बयान कभी इस संबंध में आए भी नहीं और न आने का पूरा विश्‍वास है। भिखारियों को न तो आयकर देना है, न भीख देने वाला टीडीएस काटता है, न कोई रिटर्न भरने की मजबूरी है। यही तो सरकारी नीतियों की मजबूत कमजोरी है। बिल्‍कुल हार्ड कैश, कोई चैक या ड्राफ्ट का झंझट नहीं। कहीं जमा नहीं कराना। किसी क्लियरिंग का इंतजार नहीं करना। किसी ने दिए और डूब गए। ऐसी भी कोई संभावना नहीं। डॉक्‍टर भी खूब कमाता है, यह डॉक्‍टर्स के पास लगी मरीजों की कतार बतलाती है पर क्‍या वो अपनी सही आय की सूचना सरकार को देता है। ऐसी बहुत सी जगहें हैं जहां पर सरकार बिल्‍कुल नाकाम साबित हो रही है। नाकारा - कहीं कोई आवाज नहीं, कोई सुनने वाला नहीं। और इधर यह हाल है कि बचत चपत बन गाल पर कब और कितनी बार बजती है इसके कोई आंकडे उपलब्‍ध नहीं हैं ।इसमें बड़े बड़े दिग्‍गजों की टें बोल जाती है और नौकरीपेशा बच नहीं सकता सरकार की तीखी कड़वी नजर के मीठे मारक प्रभाव से। और इन भिखारियों पर कोई नजर डाल नहीं सकता। सब तरफ लाभ ही लाभ। और जहां लाभ वहां पर ही रहता है भला।

    जब इस खाकसार ने एक भिखारी से पैन कार्ड के बारे में जानना चाहा तो जो उत्तर मिला वो कम रोचक नहीं है और बुरी तरह हतप्रभ करने वाला है। उसने बतलाया कि उसके पास तो पैंसिल भी नहीं है, और पैन और पैसिलों के भी कोई कार्ड होते हैं, होते भी होंगे तो किस काम आते होंगे, न तो उसे इसकी जानकारी है और न ही यह जानकारी उसके धंधे में लाभकारी होगी क्‍योंकि अगर लाभकारी होती तो उसके खानदान में भीख मांगने का बिजनेस कई पुश्‍तों से चला आ रहा है और उसके इसका कोई इतिहास नहीं मिलता। पर हां मुझे यह जरूर मालूम है कि मोबाइल के रिचार्ज कार्ड, सिम कार्ड होते हैं और उनका भरपूर लाभ होता है। जब कोई कारवाला किसी चौराहे पर भारी भीख देता है तो वो उस कार का नंबर अगले सभी चौराहों पर अपने सभी भिखारी भाईयों को फ्लैश कर देता है कि किसी भी चौराहे पर उस कार के रुकते ही सब उस पर टूट पड़ें।

    वैसे भी मोलतोल डॉट इन नामक इस बेवसाइट को पढ़ने वाले और इस पर विचरने वाले सभी प्राणी पैसे की ताकत से भरपूर परिचित हैं और उसी में बढ़ोतरी के उपाय जानने के लिए यहां पर घूम रहे हैं। पैसा है तो सब कुछ है और पैसा नहीं तो कुछ भी नहीं। शरीर की बड़ी से बड़ी ताकत पैसे की ताकत के आगे बोनी साबित हो रही है। पैसे से भी एक बड़ी ताकत दिमाग की ताकत को माना जाता है। पर उस ताकत में भी कितनी ताकत है यह पैसे वालों के सामने दिमागी तौर पर सर्वोत्तम लोगों को मिल रहा वेतन देखकर ही पता चल जाता है। जिसके पास पैसा है, अकूत पैसा है वो सबसे बलिष्‍ठ है। धनोबल के समक्ष भला कोई इस भौतिक युग में टिक सका है। इस धनोबल की वृद्धि के लिए बड़े बड़े उपाय खोजे गए। एक आदमी जिन्‍दगी में कितनी तरह से पैसा कमा सकता है। कुछ कार्यों में तो पैसा लगाकर पैसा कमाया जाता है। कुछ में बिना पैसा लगाए पैसा कमाया जाता है। इसमें व्‍यक्ति के भाग्‍य का पलड़ा भी पल पल जुड़ा रहता है। जुआ भी पैसा कमाने का एक साधन ही है। लाटरी से भी पैसा कमाया जाता है और लाटरी जीतने का झांसा देकर भी पैसा कमाया जा रहा है। पर यह सब धंधे सरकार को अंधा नहीं बना सकते जैसे कि उपर सुझाया गया धंधा बना रहा है।

    लगता तो ऐसा है कि पैसा कमाना हंसी खेल हो गया है। पर पैसा कमाना कभी हंसी खेल नहीं हो सकता और न कभी हुआ ही है। अगर पैसा कमाना है तो हंसना नहीं है और खेलना तो बिल्‍कुल भी नहीं है। अगर इन दोनों में से ही कोई हरकत शरीर ने दिमाग के कहने पर कर दी तो फिर तो समझ लो कि गई भैंस पानी में, भरी जवानी में। भैंस भी अब वो भैंसे नहीं रहीं जो सिर्फ 10 रुपल्‍ली में आ जाती थीं अब तो 25 या 50 हजार से कम में कोई भैंस नहीं आती। जबकि शेयर आ जाते हैं तो भैंसों से तो शेयर सस्‍ते हैं। भैंस का डूबना शेयर के डूबने से ज्‍यादा भारी भरकम है वैसे भी भैंस तो भारी ही होती है, वो कभी नहीं डुबाने वाले की आभारी होती है।

    अब कमाने को तो जितना भिखारी कमाता है, उतना और कोई नहीं कमाता या कमा पाता। यही इस पूरे लेख का सार है। आपने कई करोड़पति भिखारियों के किस्‍से पढ़े होंगे। इसकी जितनी महिमा मैं बतला चुका हूं उससे ज्‍यादा का लालच मत करो, इसी जानकारी से काम चलाओ। अब अगर मैं तलाश करके दस बीस मिसालें दे भी दूं तो उससे आपकी प्रेरणा में और अधिक इजाफा होने से तो रहा। फिर भी जरूरत हो तो खुद ही ढूंढ ढांढ कर पढ़ लेना। आप सोच क्‍या रहे हैं इसमें दोनों ही तरह के ही लोग आ जाते हैं। वे भी जो करोड़पति रहे पर आज भिखारी हैं, पैसे पैसे के मोहताज हैं। पैसा जिनके पास इतना था कि ये फूले नहीं समाते थे, आज फूल बने घूम रहे हैं पर फूल नहीं पा रहे हैं क्‍योंकि पास में दमड़ी नहीं है। जब दमड़ी नहीं है पास तो चमड़ी में फुलावट आ ही नहीं सकती। क्‍या आपने कभी किसी भिखारी को देखा है जो नेताओं की तरह तोंद और भारी भरकम शरीर लेकर भीख मांगता घूम रहा हो। ऐसा तो पॉसीबल ही नहीं लगता है। भिखारीपने से अपना कैरियर शुरू करने वाले बहुतेरे हैं और करोड़पति भी हैं। भीख ले लेकर या ऐसे भी कह सकते हैं कि हथिया हथियाकर अकूत दौलत के स्‍वामी बन बैठे। भीख हथियाने में जो हथियार काम में लाया जाता है, वो न दिखाई देते हुए भी काफी मारक होता है और उस से जान तो जाती नहीं है पर जान से प्‍यारा पैसा भिखारी की जान से लिपट जाता है । भिखारी भी उसको खर्चता नहीं है।

    खूब फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। पहले तो आदमी धन इंवेस्‍ट करता है ज्‍यादा पाने के लिए, फिर जुगत में लग जाता है निवेश बचाने के लिए। इससे करूण स्थिति और क्‍या हो सकती है। फिर अपने अपने इष्‍टदेव का नाम जपता है कि निवेश ही बचा दे। इसमें भी कुछ तो शेयर खरीदने में लगाई गई कमीशन भी बचाना चाहते हैं और कुछ सोचते हैं कमीशन डूबे तो डूबे, पर धन कमाने का मिशन न डूबे। एक बार जो बाहर निकलेंगे तो फिर तनाव की इस नाव में सवार न होंगे। पर लालच जो न करवाए सो थोड़ा है। तनाव की नाव से उतरते ही फिर दोबारा पूरी उम्‍मीद से घुस जाते हैं। एक दो बार कमा भी लेते हैं धन अपार।

    लेकिन ज्‍यादा डुबकियां तो डूबने की ही लगती हैं और कई बार तो पानी नाक के रास्‍ते गले में घुस बवाले जान बन जाता है। अब भला बतलाइये यह भी कोई बात हुई कि जिसके पास पहले ही धन है खूब, उसे वो और अधिक क्‍यों बढ़ाना चाहता है जबकि वो भी दिन भर में सिर्फ 10 से 15 रोटी खा पाता होगा। एक बार में एक कमीज ही पहनता होगा, एक ही पहनता होगा पैंट। एक बार में एक ही कार में बैठता होगा। एक बार में एक ही घर में रहता होगा। फिर क्‍यों जाता है आदमी पर पैसे से पैसा कमाने का लालच सवार। ज्‍यादा खाएगा तो 25 से 50 रोटी खा लेगा। जिसके पास है खूब पैसा, वो मिष्‍ठान्‍न तो खा ही नहीं पाता क्‍योंकि उसे डायबिटीज या ब्‍लड प्रेशर ने जकड़ रखा होता है। बीमारियों की पकड़ ऐसी होती है कि आदमी को चाय भी फीकी पीनी पड़ती है। मैंने ऐसे ऐसे चीनी के व्‍यापारियों को देखा है जिनकी खुद की कई शुगरमिलें हैं पर वे चाय फीकी पीते हैं। कारण बतलाना जरूरी नहीं है वैसे भी सब जानते हैं। पर पैसा कमाने पर रोक नहीं लगा सकते। और बांट तो सकते ही नहीं हैं।

    इनसे तो वो भला, जो खूब मीठी चाय पीता है ठाठ से, चना गुड़ खाता है पेट भर। काम से जी भी नहीं चुराता। सौ दो सौ किलो लाद लेता है पीठ पर। ज्‍यादा नहीं है दूर, वो है मजदूर। न मजे से दूर, न मेहनत से दूर, न मिठाई पर रोक, न दवाई की खेप, खूब मेहनतकरता है जीता है जीभर कर बिना तनाव के। मोटा खाता है और मोटा पहनता है और जनाब मोटी जमीन पर ही मीठी नींद सोता है। डायबिटीज, ब्‍लडप्रेशर वालों को तो नींद भी मीठी नहीं आ सकती। डरते हैं कि कहीं शुगर बढ़ गई तो। जबकि इनके मूल में है तनाव। तो प्राणी इस तरह की नाव से निकल बाहर। और यदि नाव में सवार होने का इतना ही चस्‍का है तो तसल्‍ली की नाव में होजा सवार। फिर देख जिन्‍दगी जीने का मजा दोगुना कैसे नहीं होता। पर यहां पर दोगुने, चौगुने की तो कौन कहे, मूल जीवन जीने के भी लाले पड़े हुए हैं। सभी देखो डॉक्‍टरों के पास लाइन में खड़े हुए हैं।

    पर ऐसे भी हैं बहुत, जिनके पास पैसा है अकूत। इसलिए उनके पास डॉक्‍टर्स लाइन में खड़े हुए हैं। एक कहता है कि मैं डायबिटीज का डॉक्‍टर हूं, पहला नंबर मरीज को देखने का मेरा है, दूसरा कहता है मेरा है मैं ब्‍लड प्रेशर का डॉक्‍टर हूं, फिर तीसरा, चौथा, पांचवां ........ क्‍या किस्‍मत लेकर आया है मरीज। उसके आगे डॉक्‍टर लाइन लगाए खड़े हैं और एक वे हैं जहां डॉक्‍टर हैं कम और मरीज बेशुमार। लाइन में घुसने की मरीजों में आपा धापी मची हुई है। वैसे मरीज हैं पर लाइन में बेलाइन होकर घुसने के लिए एकदम सतर्क, चौकस - मौका न जाने देंगे। तो एक सत्‍य और सामने आया कि डॉक्‍टर्स के पास मरीजों की लाइनें ही लाइनें और उन लाइनों से बरसते हजार हजार और पांच पांच सौ के नोट। पर जो वे बतलाते हैं उसी पर विश्‍वास करने के सिवाय आयकर विभाग के पास चारा क्‍या है, आयकर विभाग भी लाचार है। डॉक्‍टरी में भी काली कमाई होती है। कमीशन भी होती है, वो ऐसे कि कैमिस्‍टों से सांठ गांठ होती है, लैबोरेट्ररियों से सैंटिंग होती है। हे प्रभु हमारी भी सुन लीजो, ऐसी कोई सैटिंग हमारी भी करा दीजौ। अरे अब और क्‍या पढ़ रहे हैं क्‍या चाहते हैं कि सारी कलई एक ही लेख में खोलकर रख दें तोबाकी लिपाई पुताई अगली बार, हो सकता है कि डिस्‍टैम्‍पर ही करवा दें।

    6 टिप्‍पणियां:

    1. इस रिटर्न को देखकर यदि इस लेख से प्रेरित होकर शेयर बाजार में निवेश करके पैसा बढ़ाने की जुगत भिड़ाने वाले लालची लोगों की जमात इस ओर भी रुख कर ले तो क्‍या आश्‍चर्य।
      ...अविनाश जी सौ टके की बात। बटमारों की देश-दुनिया में आज सचमुच ऐसा हो जाए तो कोई अचंभा नहीं।

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    2. आजकल क्या बात है कि हर धंधे पर दौड़ाई जा रही है-कभी डॉक्टरी, कभी मास्टरी और फिर ये.

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    3. wah guru! How enlightening. I only I had read this early in life I would have achieed my masters in this art by now...Srikala, MS(Beg)! Sounds good isnt it?

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    4. Aapane bilkul sahi kaha!...log apani kamjorion ko jaanate hue bhi sirf laalach ki wajah se...andhi daud lagaate hai!.....lekh pahut pasand aayaa!

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