मैं मरा नहीं, जिंदा हूँ ......अविनाश वाचस्पति

Posted on
  • by
  • नुक्‍कड़
  • in
  • Labels: ,
  • जी हाँ, मैं वही अविनाश हूँ जिसने बीमारी की गोद में बैठकर जिंदगी के साथ खूब आँख-मिचोनी खेला और अब लोग कहते हैं कि मैं मर गया हूँ। मैं मरा नहीं, जिंदा हूँ आपकी-उनकी-सबकी यादों में...। मैं जिंदा रहूँगा उन लोगों के बीच जिन्हें मैंने जान से ज़्यादा प्यार किया है और जिनसे मैंने खुद को बचाए रखने की उम्मीद की है।

    यह सच है कि मेरे व्यंग्य में पितृसत्ता-धर्मसत्ता और राजसत्ता के हर छ्द्म, हर पाखण्ड के खिलाफ अपरम्पार गुस्सा, तीखी घृणा दिखती रही है। मेरी कविताओं में रचा मेरा पाठ हर उस शोषक, हर उस आततायी को तिलमिलाती रही है और रहेगी जिसे अपनी बदमाशियों को छिपाने के लिए संस्कृति की पोशाक चाहिए। मैंने अस्तित्व को तलाशते हिन्दी ब्लॉग की आत्मा में प्रवेश किया और उसकी चाहतों का ऐसा अपूर्व विप्लवी, अछोर संसार रचा जो पूरे हिन्दी ब्लॉगजगत में अनन्य है।

    ठीक से देखो मैं जिंदा हूँ अपनी इकलौती पोती राव्‍या की आँखों में, मासूम गलबहियाँ करते हुये। मैं जिंदा हूँ अपनी पत्नी,अपनी पुत्री और अपने पुत्र की आँखों में जिनकी खुशी में मुझे खुशी मिलती थी और जिनके दुख से मैं दुखी हो जाता था। मैं जिंदा हूँ बतरा अस्‍पताल के डाक्‍टर शरद अगरवाल और उनके नरसिंग स्‍टाफ की आँखों में जिन्होने मेरी साँसों को अपनी जान से ज्यादा हिफाजत से रखी।

    यह अलग बात है कि हम किसी के दिल में धड़कते रहे तो किसी की आँखों में खटकते भी रहे। यह मानव स्वभाव है, एक व्यंग्यकार के नाते मैंने कभी इन बातों को गंभीरता से नहीं लिया। लेने की जरूरत भी क्या है। यह सब न हो तो जिंदगी का मजा भी तो नहीं है। किसी शायर ने ठीक ही कहा है-कर लेता हूँ बर्दाश्त हर दर्द इसी आस के साथ..
    कि खुदा नूर भी बरसाता है … आज़माइशों के बाद”..।

    हिन्दी ब्लॉग जगत ने मुझे बहुत प्यार दिया, यह अलग बात है कि किसी को मैं समझ में आया और किसी को नहीं। लेकिन क्या कहूँ इतना, आसान हूँ कि हर किसी को समझ आ जाता हूँ, मगर जिसने पन्ने छोड़ छोड़ कर पढ़ा है मुझे, वह मुझे शायद नहीं समझ पाया।

    वे मित्र जो मुझसे भावनाओं के साथ जुड़े रहे, अपने को अकेला महसूस न करे। वे भले ही मुझे न देख पा रहे हैं मगर मैं साये की तरह उनके साथ हूँ। मैं मरा नहीं हूँ जिंदा हूँ अपने मित्रों की यादों में।

    यह मत कहना कि नुक्कड़ अनाथ हो गया है। जिस नुक्कड़ के साथ डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल,रवीन्द्र प्रभात, पी के शर्मा, राजीव रंजन प्रसाद, प्रेम जनमेजय, प्रमोद तांबट, पंकज त्रिवेदी, चंडी दत्त शुक्ल, गिरीश बिललोरे मुकुल,रेखा श्रीवास्तव, असीम त्रिवेदी, डॉ कविता वाचक्नवी,उपदेश सक्सेना, नरेंद्र व्यास, शाहनवाज़, इरफान, मयंक, डॉ अशोक शुक्ल, रवीन्द्र पुंज, आशीष खंडेलवाल, विवेक रस्तोगी,वीणा, अजीत वाडनेरकर, प्रतिभा कुशवाहा, श्रीश बेंजवाल शर्मा, अमिताभ श्रीवास्तव,खुशदीप सहगल, संजीव तिवारी, निर्मल गुप्ता, सतीश सक्सेना आदि चर्चित ब्लॉगर जुड़े हों वह ब्लॉग अनाथ कैसे हो सकता है।

    फिर मिलूंगा अपनी भावनाओं के साथ इसी नुक्कड़ पर-
    आपका-
    अविनाश वाचस्पति

    4 टिप्‍पणियां:

    1. हाँ आप जीवित हैं रहेंगे हमेशा ।

      जवाब देंहटाएं
    2. आप बेशक नहीं मरे है अविनाश भाई! आप हमारी यादों में हमेशा ज़िंदा रहेंगे...

      जवाब देंहटाएं
    3. आप हमारी स्मृतियों में सदा जीवित रहेंगे,अविनाश भाई!

      जवाब देंहटाएं

    आपके आने के लिए धन्यवाद
    लिखें सदा बेबाकी से है फरियाद

     
    Copyright (c) 2009-2012. नुक्कड़ All Rights Reserved | Managed by: Shah Nawaz