बजट की टच तकनीक



टच की तकनीक का वर्चस्‍व है। बजट जारी नहीं किया जाता। मंत्री महोदय पीएम महोदय का आदेश पाकर सिर्फ टच करते हैं और बजट जारी हो जाता है। बजट के रिलीज होते ही मंत्री महोदय को तो फारिग हो गए जैसा अहसास होता है जबकि पब्‍लिक जो अभी तक तनाव रहित थी, एकदम से तनाव में आ जाती है। बजट चीज ही ऐसी निकम्‍मी है कि क्‍या कहा जाए और क्‍या पूछा और बतलाया जाए। बजट कभी अपने असली रूप में नहीं आता है। वह सदा ही भेस बदलकर हाजिर आता है। आज वह रेल का रूप धारण करके कहर ढाने आया है। इससे दो दिन पहले उसने पब्‍लिक को लुभाने के लिए सेमी बुलेट ट्रेन का रूप रखा तब सारी फिजां उसकी दीवानी हो गई। उसकी स्‍पीड देख-सुन और पढ़कर सब विस्‍मित रह गए। उनका विस्‍मित होना ही बजट को टच करने पर माकूल नतीजे देता है।

मानो बजट नहीं, मोबाइल फोन हो गया। इस खासियतों से भरे पर छोटे महीने से उपकरण ने बच्‍चों से लेकर बड़े और बूढ़ों के जीवन में उथल-पुथल मचा दी है। यह हंगामा सिर्फ थल नहीं, वायु के सिग्‍नलों के जरिए अपना अधिक दिखला रहा है।  इसकी मिलीभगत महंगाई के साथ मिलकर की गई है। महंगाई के इस षडयंत्र से सभी पूर्व परिचित हैं और उनका यह पुराना अनुभव है पर यह सदा ही उनके झांसे में उलझ जाते हैं और खूब ध्‍यान लगाकर सुलझाने से भी सुलझते नहीं हैं। महंगाई की रेल बजट की पटरी पर स्‍पीड से फर्राटा भर कर पब्‍लिक को कुचलती हुई चली जा रही है। जाहिर ऐसे किया जाता है कि पब्‍लिक और रेल बजट की पटरी के बीच में पिसकर पब्‍लिक की किस्‍मत खुल जाएगी। पर यह मात्र छलावा ही साबित हुआ है। पब्‍लिक हर बार सदा की तरह यूं ही छली जाती है और छली जाती रहेगी।

पब्‍लिक को छलने के लिए सब ताक लगाकर बैठे हैं। पहले उन्‍हें ताक ऐसे दिए जाते हैं, मानो सबको राहत के मसनद बांटे जा रहे हों और वह निश्‍चिंत होकर ताक के सारे आराम से पसर जाते हैं। ताकने वाले इसी फिराक में रहते हैं और इनके पसरते ही इनके उपर रेल बजट की पटरी बिछाकर उस पर महंगाई की सेमी हाई स्‍पीड पब्‍लिक रौंद एक्‍सप्रेस दौड़ा देते हैं। यूं तो पब्‍लिक को इससे कुचले जाने की आदत डाल दी गई है और वह महसूस भी नहीं कर पाती।

इस बार महंगाई रेल का मुखोटा चेहरे पर चढ़ा कर चढ़ाई करने आई है। बच सको तो बच लो कितना बचोगे। नया पीएम अपने मंत्री को अपने सकारात्‍मक विकारों की दौड़ लगवा रहा है, जिसे पब्‍लिक विचारों की दौड़ समझ आंख और दिमाग मूंदकर दौड़ने में बाजी मार लेती है।

यह आंख मूंदना अंधभक्‍ति का द्वार है। द्वार भी ऐसा जो सदा ओपन रहता है और उस पर घातक से घातक वार किए जाते हैं। कभी रेल कि किराए के नाम पर, कभी डीजल, पेट्रोल, गैस के रेट बढ़ाकर और कभी रेट तो वही रहते हैं पर वजन घटा दिया जाता है। यह महाजनी परंपरा की सूदखोर व्‍यवस्‍था है। इसके कुप्रभाव से इसलिए नहीं बचा जा सकता क्‍योंकि इसकी खोरी जमा खोरी, जमा के साथ हरामखोरी का समन्‍वयन है। अकेले से आप पार पा सकते हो, हंगामा कर सकते हो, पर जो जमा है, उसे कैसे घटाओगे। बजट को टच करने का मुहुर्त हो गया है और मंत्री महोदय ने बजट को टच कर दिया है। इससे आपके सिवाय सब खुश हैं। अब तो आप भी खुश हैं न। 

                                -    अविनाश वाचस्‍पति

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