'गे' की गैल चलेंगे : दैनिक मिलाप स्तंभ 'बैठे ठाले'' 19 दिसम्बर 2013 में प्रकाशित
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अविनाश वाचस्पति,
गे,
बैठे ठाले,
मिलाप,
समलैंगिक
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कुक्कुर के पीछे लगा, कुक्कुर कहाँ दिखाय |
जवाब देंहटाएंकुतिया भी देखी नहीं, जो कुतिया-मन भाय |
कुतिया के मन भाय, नहीं पाठा को देखा |
पढ़ते उलटा पाठ, बदल कुदरत का लेखा |
पशु से ही कुछ सीख, पाय के विद्या वक्कुर |
गुप्त कर्म रख गुप्त, अन्यथा सीखें कुक्कुर ||