सोचने वाला गधा



 जी हां, मैं गधा हूं क्‍योंकि अगर मैं अपनी पहचान जाहिर न करता तो आप मुझे किसी का पट्ठा बतलाने से न मानते। यह तो जमाने का दस्‍तूर है। आप जो नहीं होते आप वही हो, यह बोध आपको अपने ही कराते हैं। गधे के चेहरे पर फूल या फल बनने या न बनने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। वे निर्विकार हैं और सदा विकारविहीन ही पाए जाते हैं। मैंने खूब सोच समझकर स्‍वयं को इसलिए गधा स्‍वीकार किया है क्‍योंकि इस सृष्टि पर गधा ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो विकाररहित है, इसे सब जानते हैं। इसे मनाने के लिए अलग से कोशिश करने की जरूरत भी नहीं पड़ती। जिस प्रकार फूल बनता नहीं, खिलता है और गधे खुलकर घूमते हैं।
आप मेरे चित्र पर न जाइये क्‍योंकि आजकल फ्री में एक से बढ़कर एक ऐसी एप्‍लीकेशनों और साफ्टवेयरों की धूम मची हुई है जो मुझे कभी गधा दिखने न दें और आपको दिखने से बचने न दें। गधे को यूं तो देखने की जरूरत ही नहीं पड़ती है लेकिन जब भी देखो तो ऐसा लगता है कि वह आपको ही सहानुभूतिपूर्ण नजरों से देख रहा है और आप इसके उलट सोचकर खुश रहते हैं कि वह आपसे दया की भीख मांग रहा है।  
गधा होना सीधा होना है और आज के जमाने में सीधा होना गुनाह है तो गधा होना भी गुनाह है। अगर आप मोबाइल के दीवाने नहीं है फिर तो आप अवश्‍य ही गधे हैं। जिसने मोबाइल साध लिया, समझ लीजिए उसने समूचा जग साध लिया। पर यह भी सच है कि मोबाइल को साधने वाला गधे को नहीं साध सकता है क्‍योंकि गधा कभी मोबाइल का दीवाना नहीं हुआ है। मोबाइल को साधना, न साधना जानना गधे से बैर नहीं करा सकता है। यही मूल वजह है इसलिए ही सब आपको पट्ठा बतलाने पर उतारू हैं।
एक और सीक्रेट यह है कि आप फेसबुक पर सक्रिय हैं पर गधा नहीं है। आप कार चला लेते हैं, मेट्रो और बस में सफर कर लेते हैं पर गधा इन सबसे परहेज करता है। आप यह समझते हैं कि  गधे के पास पैसे नहीं होंगे, जबकि गधे को सब पसंद होते हुए भी फिजूलखर्ची पसंद नहीं है। स्‍मार्ट फोन खरीदकर स्‍मार्ट गधा भी नहीं दिखना चाहता जबकि बाकी सब यही चाहते हैं, चाहे गधे को कोई गधे की इस सोच के लिए गधा ही कहता रहे। पर गधा इस सच्‍चाई को जानता है कि यह गुण गधे के नहीं हो सकते। आखिर इंसान और गधे में तनिक सा फर्क तो होता ही है। इसे आप अब नहीं समझ रहे हैं पर जब इसे पूरा पढ़ लेंगे तब जरूर समझ जायेंगे।
आपका बैंक खाता है पर गधे का नहीं है। वह दरअसल यह है कि बिना मोबाइल फोन के बैंक खाता खुलना सामान्‍य घटना नहीं है। यह बिल्‍कुल सामान्‍य ज्ञान की बात है। इसके लिए परम ज्ञानी अथवा विज्ञानी होने की जरूरत नहीं है। आप चिंतित हो सकते हैं पर गधा चिंतित नहीं होता। तब भी नहीं जब उसकी पीठ पर रुई लादी जाती है और तब भी नहीं जब उसकी पीठ पर कपड़े अथवा मिट्टी ढोई जाती है। वह तो तब भी चिंता नहीं करता जब उसकी पीठ खाली होती है और उसके दोनों पैरों को एक रस्‍सी से बांध दिया जाता है। तब वह दोनों पैरों से दुलत्‍ती मारने की अपनी कला से जमाने से दो-दो पैर कर लेता है। जब भी गधे या घोड़े की यारी की चर्चा चलती है तो घास उसमें ऐसी प्रेमिका होती है जो प्‍यार में अपने को लुटा देती है। न घास के आंसुओं का कहीं जिक्र आता है और न गधे को ही घास के प्रेम में आंसू टपकाते पाया जाता है। मतलब न नमकीन और न मीठा पानी, कड़वे की तो सोचिए भी मत।
पर आपने अगर दोनों टांगों से इकट्ठे उछलने की कोशिश भी की तो सब आपको तुरंत गधा बतला देंगे। आजकल उल्‍लू दिखाई देने बंद हो गए हैं। उल्‍लुओं को न देख पाने के कारण गौरेया भी उल्‍लू की तरह हाइडमोड में चली गई है। उल्‍लुओं में आत्‍मविश्‍वास की होती गिरावट इंसान की चिंता का सबब बन गई है। इतना होने पर भी उनके पट्ठे बहुत ही सरलता से सब जगह पहचाने जाते हैं। आप कितने ही तथाकथित इंसानों को उल्‍लू का पट्ठा कहकर संबोधन सुनकर हंसते मुस्‍कराते देख सकते हैं। परमात्‍मा ने उन्‍हें सींग नहीं दिए हैं। वैसे खबर मिली है कि कुछ देशों में सींग वाले गधे भी पाए जाते हैं और वे कई बार भारत की सरकारी यात्रा पर आते रहते हैं। उनके दिखाई न देने वाले सींगों से डरकर सरकार उनकी आवभगत में तिजोरी और सिक्‍यूरिटी पूरी तरह खोल देती है।
यह भेद अब जगजाहिर हो चला है कि उल्‍लू का असली पट्ठा ही दूसरे उल्‍लू के पट्ठे को पहचान सकता है। आप इसे सामान्‍य गाली समझकर इस ओर बिल्‍कुल ध्‍यान नहीं देते हैं। सत्‍ताधारी विपक्षियों को पट्ठा मानते हैं और विपक्षी सत्‍ताधारियों को इस सम्‍मान से वंचित नहीं रहने देना चाहते हैं। इसके उलट न गधों और न उनके पट्ठे को आपस में पहचानने का खेल खेला जाता है। अब तो आप समझ गए न कि गधों को पट्ठा कहना कोई हंसी ठट्ठे वाली बात नहीं है। कोई उल्‍लू या उसका पट्ठा भी कभी किसी को गधे का पट्ठा कहते नहीं पाया गया है।

3 टिप्‍पणियां:

  1. ...वैसे आपने अपने आप को गधा बता कर...गधे को खुश कर दिया!...क्या बात है!

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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    इंजीनियर प्रदीप कुमार साहनी अभी कुछ दिनों के लिए व्यस्त है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी चर्चा मंच पर सम्मिलित किया जा रहा है और आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (03-04-2013) के “शून्य में संसार है” (चर्चा मंच-1203) पर भी होगी!
    सूचनार्थ...सादर..!

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  3. बहुत ही रोचक रचना!
    इसे पढ़कर तो यही लग रहा है कि गधा होना कितना सुखदायक होता है...
    ~सादर!!!

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