भारतीय सिनेमा के जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर प्रख्यात फिल्म
समीक्षक एवं समान्तर कोश के सम्पादक अरविन्द कुमार ने डॉ0 पुनीत
बिसारिया एवं डॉ0 राज नारायण शुक्ला द्वारा सम्पादित पुस्तक भारतीय सिनेमा का
सफरनामा का लोकार्पण कॉलेज के खचाखच भरे सभागार में किया। इस पुस्तक में भारत की
प्रायः सभी भाषाओं में निर्मित फिल्मों का संक्षिप्त इतिहास है। इस अवसर पर बोलते
हुए अरविन्द कुमार ने कहा कि हिन्दी में आज तक ऐसी कोई पुस्तक उपलब्ध नहीं थी
जिसमें भारत की सभी भाषाओं की फिल्मों की जानकारी मिल सके। यह पुस्तक इस अभाव की
पूर्ति करती है और भारतीय सिनेमा के सौंवे वर्ष के उपलक्ष्य में फिल्म जगत को एक
अमूल्य भेंट है। मुम्बई से पधारे स्पर्श, चश्मेबददूर जैसी फिल्मों के सहनिर्देशक
एवं अन्तहीन एवं अनेक डोक्यूमेन्ट्री फिल्मों के निर्देशक दिनेश लखनपाल ने भारतीय
सिनेमा की विभिन्न प्रवृत्तियों की चर्चा करते हुए इस पुस्तक की एक महत्वपूर्ण
उपलब्धि की ओर संकेत करते हुए कहा कि इस पुस्तक के माध्यम से देश की सभी भाषाओं की फिल्मों की
सूची उपलब्ध कराई गई है जो सिनेमा में रूचि रखने वाले लोगों के लिए अत्यन्त उपयोगी
साबित होगी। देश विदेश में हिन्दी की अलख जगाने वाले साहित्यकार डॉ0 सुरेश ऋतुपर्ण ने विदेशों में हिन्दी
सिनेमा की लोकप्रियता तथा भारतीय संस्कारों की व्याप्ति की चर्चा करते हुए अनेक
रोचक संस्मरण सुनाये। डॉ0 धनंजय सिंह ने फिल्मी दुनिया के अपने संस्मरण सुनाते हुए इस
पुस्तक को सिनेमा विमर्श के इतिहास का मील का पत्थर करार दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कॉलेज के प्राचार्य डॉ0 सुशील कुमार ने फिल्मों को समाज का दर्पण करार दिया और फिल्म जगत से यह अपेक्षा की कि वह आने वाले समय में सार्थक तथा समाज के लिए उपयोगी फिल्में बनाकर अपने दायित्व का निर्वहन करेगा। पुस्तक के सम्पादक डॉ0 पुनीत बिसारिया ने इस पुस्तक के तैयार होने में आने वाली समस्याओं की चर्चा की तथा सिने जगत से यह अपेक्षा की कि वह भविष्य में अपने महत्वपूर्ण फिल्मी कोष को आने वाली पीढी तक पहुंचाने में सहायता करेगा। सम्पादक डॉ0 राज नारायण शुक्ला ने भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम इतिहास की चर्चा करते हुए इस पुस्तक की विषय वस्तु की संक्षिप्त जानकारी जन समुदाय के समक्ष रखी तथा फिल्मों के समाज पर पडने वाले प्रभावों का उल्लेख किया तथा फिल्मी भाषा में आये परिवर्तनों की विस्तृत विवेचना की। इस अवसर पर अरविन्द कुमार जी की धर्म पत्नी श्रीमती कुसुम कुमार, समसामायिक सृजन के सम्पादक महेन्द्र प्रजापति, सतरंगी संसार के सम्पादक राम मुरारी, नीरज कुमार, श्रीमती दीप्ति बिसारिया, साहिल कुमार, अशोक कुमार, हेमलता, प्रशस्ति सहित अनेक साहित्यकार एवं फिल्म समीक्षक मौजूद थे। कार्यक्रम का सफल संचालन कॉलेज की हिन्दी प्राध्यापिका डॉ0 पूनम सिंह ने किया। अन्त में डॉ0 राज नारायण शुक्ला ने सभी अतिथियों के प्रति आभार ज्ञापित किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कॉलेज के प्राचार्य डॉ0 सुशील कुमार ने फिल्मों को समाज का दर्पण करार दिया और फिल्म जगत से यह अपेक्षा की कि वह आने वाले समय में सार्थक तथा समाज के लिए उपयोगी फिल्में बनाकर अपने दायित्व का निर्वहन करेगा। पुस्तक के सम्पादक डॉ0 पुनीत बिसारिया ने इस पुस्तक के तैयार होने में आने वाली समस्याओं की चर्चा की तथा सिने जगत से यह अपेक्षा की कि वह भविष्य में अपने महत्वपूर्ण फिल्मी कोष को आने वाली पीढी तक पहुंचाने में सहायता करेगा। सम्पादक डॉ0 राज नारायण शुक्ला ने भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम इतिहास की चर्चा करते हुए इस पुस्तक की विषय वस्तु की संक्षिप्त जानकारी जन समुदाय के समक्ष रखी तथा फिल्मों के समाज पर पडने वाले प्रभावों का उल्लेख किया तथा फिल्मी भाषा में आये परिवर्तनों की विस्तृत विवेचना की। इस अवसर पर अरविन्द कुमार जी की धर्म पत्नी श्रीमती कुसुम कुमार, समसामायिक सृजन के सम्पादक महेन्द्र प्रजापति, सतरंगी संसार के सम्पादक राम मुरारी, नीरज कुमार, श्रीमती दीप्ति बिसारिया, साहिल कुमार, अशोक कुमार, हेमलता, प्रशस्ति सहित अनेक साहित्यकार एवं फिल्म समीक्षक मौजूद थे। कार्यक्रम का सफल संचालन कॉलेज की हिन्दी प्राध्यापिका डॉ0 पूनम सिंह ने किया। अन्त में डॉ0 राज नारायण शुक्ला ने सभी अतिथियों के प्रति आभार ज्ञापित किया।
विशेष : समारोह के चित्र उपलब्ध होते ही लगाए जाएंगे।
बल्ले बल्ले
जवाब देंहटाएं