बोल पाकिस्‍तान तेरे साथ क्‍या सलूक किया जाए : कविता की हालिया संदर्भ में पुर्नप्रस्‍तुति (अविनाश वाचस्‍पति)


कारगिल युद्ध के समय जुलाई 1999 यानी लगभग 10 वर्ष पूर्व यह कविता लिखी गई थी और समाचार पत्रों में छाई रही थी। उस समय ब्‍लॉग का जमाना भी नहीं था। पाकिस्‍तान अपनी करतूतों पर कायम रहा है, घात लगाकर आघात करता रहा है। पिछले बरस दुर्घटित मुंबई कांड ने तो उसकी नीयत के सारे काले पन्‍ने विश्‍वजाहिर कर दिए हैं। पहले स्‍वीकार नहीं रहा था। अब स्‍वीकारने भी लगा है। तो बतलायें कि पाकिस्‍तान के साथ इस समय भारत को क्‍या सलूक करना चाहिए ? इस मसले पर अवाम की बेबाक राय आमंत्रित है। राय कोई भी दे सकता है। चाहे वो पाकिस्‍तान वासी ही क्‍यों न हो, विश्‍व के सुधीजनों के विचार आमंत्रित हैं। शांति की है हमको चाह शीर्षक इस कविता से पाकिस्‍तान हमको कमजोर समझ बैठा है। पाकिस्‍तान को उसकी करतूतों के लिए इस बार अवश्‍य ही मुंहतोड़ जवाब दिया जाना चाहिए। अथवा नेताओं की कारगुजारियों को सेनानी क्‍यों भुगतें, हर पहलू पर विचार कीजिए। पर पहले कविता पढि़ए फिर उसके बाद .... बोल पाकिस्‍तान तेरे साथ क्‍या सलूक किया जाए :-

लगा कर घात किया आघात
देख ली पाक तेरी औकात
घुसपैठियों की तू लाया बारात
हिंद ने दे दी फिर भी मात।

करतूत तेरी चुभो गई शूल
बोता है दिन रात बबूल
पिछली मार गया क्‍यों भूल
जब चटाई थी हमने धूल।

कटा कर के तू अपनी नाक
कश्‍मीर में रहा क्‍यों ताक
हैं नापाक इरादे तेरे पाक
कर ली अपनी इज्‍जत खाक।

पकड़ी बेशर्मी की राह
तुझको क्‍यों है हमसे डाह
दिल की तेरे मिली न थाह
शांति की है हमको चाह।

खामोशी को समझे कायरता
डर से भी तू ज्‍यादा डरता
लालच जो इतना न करता
मर कर बार बार न मरता।

अमल में लाता जो तू शरीयत
बिगड़ती कभी न तेरी तबीयत
सब दे रहे हैं रोज नसीहत
खूब हो रही तेरी फजीहत।

मैल पालते नहीं अशराफ
भारत कर देगा अब भी माफ
पाक कर ले नीयत जो साफ
अवाम को करने दे इंसाफ।

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