‘सैनिक समाचार’ का नाम सामने आते ही
एक ऐसा जीवंत दस्तावेज सामने आ जाता है जो गुलामी के दौर से लेकर देश के आज़ाद होकर
अपने पैरों पर खड़े होने और फिर विकास के पथ पर अग्रसर होने का साक्षी है. पत्रकारिता
में गहरी रूचि नहीं रखने वाले लोगों के लिए भले ही यह नाम कुछ अनजाना सा हो सकता
है परन्तु पत्रकारों के लिए तो यह अपने आप
में इतिहास है. आखिर दो विश्व युद्धों से लेकर पाकिस्तान से लेकर बंगलादेश बनने और
फिर भारत के नवनिर्माण की गवाह इस पत्रिका को किसी ऐतिहासिक दस्तावेज से कम कैसे आंका
जा सकता है. आज के दौर में जब दुनिया भर में प्रिंट मीडिया दम तोड़ रहा है या फिर
इलेक्ट्रानिक मीडिया से लेकर न्यू सोशल मीडिया के दबाव में बदलाव के लिए आत्मसमर्पण को मजबूर है तब ‘सैनिक समाचार’ जैसी हिंदी
सहित तेरह भाषाओं में सतत रूप से प्रकाशित किसी सरकारी पत्रिका की कल्पना करना भी
दूभर लगता है जिसने बाजार के बिना किसी दबाव के अपने प्रकाशन के सौ साल पूरे आगे पढ़े:www.jugaali.blogspot.com
सरकारी पत्र-पत्रिकाआें के लिए न पैसा कोई समस्या होता है न पाठक इसलिए इनका चलते रहना आम बात है
जवाब देंहटाएंकाजल जी से पूरी तरह सहमत
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