मैं जो इश्क़ वाली क़िताब हूं..

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  • बाल भवन जबलपुर
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  • साभार : श्री अरविंद मिश्रा जी के ब्लाग सेक्वचिदन्यतोSपि...
    मैं जो इश्क़ वाली निगाह हूं तू जो हुस्न वाली कि़ताब है
    जिसे हर निगाह न सह सकी  तू तो आफ़ताबी शबाब है..!

    मुझे ग़ौर से जो निहार ले, मेरा सारा जिस्म संवार दे -
    न तो धूल आंखों में रहे, मेरे दिल की गर्दें उतार दे ...!!
    पाक़ीज़गी पे न शक़ तू कर- हटा दे पर्दे हिज़ाब के !!

      .......................................तू तो आफ़ताबी शबाब है..!

    मेरा इश्क़ बुल्ले शा का ,  तेरा  हुस्न  रब दी राह का
    यूं मुझे न तड़पा मेरी जां, आ बोल मेरा गुनाह क्या ?
    मेरे इश्क़ का मतलब समझ,नहीं  हर्फ़ ये  हैं कि़ताब के !!
      .......................................तू तो आफ़ताबी शबाब है..!

    और मिसफ़िट पर कुछ ताज़ातरीन अवश्य देखिये 

    अछोर विस्तार पाने की ललक ने मुझे इंटरनेट का एडिक्ट बना दिया.

    उफ ! ये चुगलखोरियाँ

    1 टिप्पणी:

    आपके आने के लिए धन्यवाद
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