साभार : श्री अरविंद मिश्रा जी के ब्लाग सेक्वचिदन्यतोSपि... |
जिसे हर निगाह न सह सकी तू तो आफ़ताबी शबाब है..!
मुझे ग़ौर से जो निहार ले, मेरा सारा जिस्म संवार दे -
न तो धूल आंखों में रहे, मेरे दिल की गर्दें उतार दे ...!!
पाक़ीज़गी पे न शक़ तू कर- हटा दे पर्दे हिज़ाब के !!
.......................................तू तो आफ़ताबी शबाब है..!
मेरा इश्क़ बुल्ले शा का , तेरा हुस्न रब दी राह का
यूं मुझे न तड़पा मेरी जां, आ बोल मेरा गुनाह क्या ?
मेरे इश्क़ का मतलब समझ,नहीं हर्फ़ ये हैं कि़ताब के !!
.......................................तू तो आफ़ताबी शबाब है..!
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जिसे हर निगाह न सह सकी तू तो आफ़ताबी शबाब है.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन.